कोरोना वायरस के खौफ से बेजुबानों से बनाईं दूरियां, घर-घर मांगकर पशु-पक्षियों का पेट भर रहे दोस्त
पीपल फॉर एनिमल्स (पीएफए) संस्था चलाने वाली केंद्रीय मंत्री मेनका गांधी का रामगंगा चौबारी स्थित कई एकड़ में पशु-पक्षी अस्पताल एवं शेल्टर होम है। जहां पीएफए के रेस्क्यू प्रभारी धीरज पाठक और उनके तीन...
पीपल फॉर एनिमल्स (पीएफए) संस्था चलाने वाली केंद्रीय मंत्री मेनका गांधी का रामगंगा चौबारी स्थित कई एकड़ में पशु-पक्षी अस्पताल एवं शेल्टर होम है। जहां पीएफए के रेस्क्यू प्रभारी धीरज पाठक और उनके तीन परम मित्र विक्रांत यादव, राहुल गुप्ता और गौरव अग्रवाल बेजुबानों की सेवा करते हैं।
कोरोना वायरस के चलते सैकड़ों की संख्या में पहुंचने वाले समाजसेवियों ने अब बेजुबानों से दूरियां बना ली हैं। जिससे पशु-पक्षियों के दाना-पानी को लेकर संकट आने लगा है। हालांकि धीरज पाठक और उनके मित्र लोगों के घरों से रोटियां एकत्रित करते हैं। शहर-गांव देहात से गेहूं, चावल,भूसा,चारा एकत्रित करके बेजुबानों का पेट भरते हैं।
धीरज पाठक का कहना है, पिछले एक सप्ताह से उनके सामने यह समस्या आ रही है। इससे पहले हर महीने बड़ी तादाद में खाने-पीने की वस्तुएं शहर के तमाम समाजसेवी उपलब्ध कराया करते थे। कोरोना वायरस के चलते लॉक डाउन होने से लोगों ने पशु शेल्टर होम पर आना छोड़ दिया।
अब एक-दो ही लोग आते हैं, जो अपने हिसाब से बेजुबानों के लिए दाना पानी देते हैं, जो इतनी बड़ी सँख्या में पशु पक्षियों को पर्याप्त नहीं होता। मैंने जिला प्रशासन से जनता कर्फ्यू पास बनवा लिया। जिससे हम सभी को बेजुबानों के लिए दाना-पानी एकत्रित करने में कोई दिक्कत न हो। घर-घर जाकर एकत्रित करते हैं। मेनका गांधी जी का बिशेष सहयोग रहता है।
पशु-पक्षी अस्पताल बन चुका है चिड़ियाघर
यह कई एकड़ में बना हुआ है। 2014-15 में मेनका गांधी के प्रयास से बेजुबानों के लिए अस्पताल की स्थापना कराई गई। इसमें तत्काल डीएम अभिषेक प्रकाश का विशेष सहयोग रहा था। यहां बीमार, घायल होने वाले पक्ष-पक्षियों का इलाज किया जाता है।
यहाँ वर्तमान में बेजुबानों की संख्या
- 35-40 कुत्ते
- 50-60 गांव वंशीय
- 150-200 तोते
- 15 से 20 नीलकंठ
- 60-70 बन्दर
- 5-7 नीलकंठ
बिथरी विधायक बनवा रहे हैं पशु-पक्षियों के शेड
धीरज पाठक का कहना है, बिथरी विधायक राजेश मिश्र पप्पू भरतौल जी में भी पशु- प्रेम की भावना है। वह यहां अक्सर आते हैं। बेजुबानों का अपने हाथों से दाना-पानी खिलाते है। उन्होंने गौ वंशीय,कुत्तों और पक्षियों के लिए अलग-अलग शेड बनवाए हैं। अभी काम चल रहा है।
अटूट दोस्त बन गए बेज़ुबां
धीरज पाठक के पशु प्रेम को देखते हुए उनके कई दोस्त भी बेजुबानों की सेवा में तत्पर रहते हैं ।विक्रांत यादव, राहुल गुप्ता और गौरव अग्रवाल जो प्रतिदिन अपने कार्यों को पूर्ण करने के बाद अस्पताल जाकर पशु-पक्षियों की सेवा करते हैं।
बेजुबान प्यार की भाषा समझते हैं बेजुबान
धीरज पाठक का कहना है, पिछले चार-पांच सालों से अस्पताल में कई हजार घायल पशु पक्षियों की सेवा की गई। जो ठीक हो गए उन्होंने भी अस्पताल को नहीं छोड़ा। 200 से अधिक तोता हैं, जो अब यहां से नहीं जा रहे। यही पेड़ों और जमीन पर घूमते रहते हैं जैसे ही खाने पीने की कोई वस्तु देते हैं, तो सिर पर आकर बैठने लगते। बंदरों का भी यही हाल है। 25-30 बंदर है,जो पिंजरे में बंद रहते है, जबकि 50 से 60 बंदर ऐसे ही खुले में यहां घूमते हैं। आवारा कुत्ता, बंदर सब की दोस्ती हो गई। कोई किसी से कुछ नहीं बोलता। पूरे दिन ऐसे ही सब अस्पताल में घूमते हुए देखे जा सकते हैं।