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पितृपक्ष 2017: पितरों को तर्पण करते समय रखे इन बातों का ध्यान

पितृ पक्ष में पितरों को तर्पण करते समय कई बातों का ध्यान रखना जरूरी है। शास्त्रों की मान्यता है कि विधि विधान से पिंडदान करने से ही श्राद्ध पूरा होता है। तर्पण करते समय पिता-पितामह आदि के नाम का...

पितृपक्ष 2017: पितरों को तर्पण करते समय रखे इन बातों का ध्यान
हिन्दुस्तान टीम,बरेलीWed, 06 Sep 2017 06:52 PM
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पितृ पक्ष में पितरों को तर्पण करते समय कई बातों का ध्यान रखना जरूरी है। शास्त्रों की मान्यता है कि विधि विधान से पिंडदान करने से ही श्राद्ध पूरा होता है। तर्पण करते समय पिता-पितामह आदि के नाम का स्पष्ट उच्चारण करना चाहिए। उनके नाम के उच्चारण में एक भी शब्द गलत नहीं होना चाहिए। बालाजी ज्योतिष संस्थान के पंडित राजीव शर्मा के मुताबिक, शास्त्रों में पिंडदान की विधि लिखी है। उसमें कई बातों पर विशेष ध्यान रखना चाहिए।

नदी के किनारे करें तर्पण
महाभारत में लिखा है कि श्राद्ध हमेशा नदी के किनारे तर्पण करने से ही पूरा होता है। पितरों को पिंडदान और तर्पण किसी नदी के किनारे ही करना चाहिए। पहले अपने कुल के पितरों को जल से तृप्त करना चाहिए और उसके बाद ही मित्रों, संबंधियों को जलांजलि देनी चाहिए। कुल के पितरों के पहले रिश्तेदारों और संबंधियों को जल से तृप्त करना सही नहीं है।

बैलों के पूछ से तर्पण
चितकबरे बैलों से जुती हुई गाड़ी में बैठकर नदी पार करते समय बैलों की पूंछ से पितरों का तर्पण करना चाहिए। मान्यता है कि पितर ऐसे तर्पण की अभिलाषा रखते हैं और इससे तृप्त होते हैं।

अमावस्या पर जरूर करें श्राद्ध
कृष्णपक्ष में जब महीने का आधा समय बीत जाए, उस दिन अमावस्या तिथि मानी जाती है और इस दिन पितरों का श्राद्ध अवश्य करना चाहिए। निमि ने शुरू की श्राद्ध की परंपरा महाभारत में श्राद्ध की परंपरा का वर्णन है। इसमें लिखा है कि सबसे पहले श्राद्ध का उपदेश महर्षि निमि को महातपस्वी अत्रि मुनि ने दिया था। इस प्रकार पहले निमि ने श्राद्ध का आरंभ किया, उसके बाद अन्य महर्षि भी श्राद्ध करने लगे। धीरे-धीरे चारों वर्णों के लोग श्राद्ध में पितरों को अन्न देने लगे।

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