ना डीजे, ना जुलूस; उर्स से पहले बरेली दरगाह ने कहा, बीमार लोगों पर खर्च करो पैसा
उर्स में चादर चढ़ाने के लिए डीजे के साथ जुलूस लेकर आने वालों से बरेली की दरगाह आला हजरत ने अपील की है कि वो इस पर खर्च करने के बदले किसी जरूरतमंद बीमार आदमी के इलाज में मदद करें।

मजहबी आस्था और समाज सेवा जब एक साथ चले तो समाज में नई रोशनी आती है। कुछ ऐसा ही बरेली शहर की दरगाह आला हजरत से देखने को मिल रहा है। दरगाह के सज्जादानशीन मुफ्ती अहसन मियां ने परंपरा में बदलाव कर डीजे, चादर और जुलूस पर खर्च होने वाले पैसे को बीमार और जरूरतमंद लोगों की दवा के लिए देने का संकल्प लिया है। नई सोच की शुरुआत इस बार दरगाह आला हजरत से हुई है, जहां हर साल आला हजरत उर्स में बड़ी संख्या में लोग चादर और जुलूस के साथ आकर अकीदत पेश करते हैं।
इस बार दरगाह के सज्जादानशीन ने अपील जारी कर कहा है कि शोर नहीं, सुकून दो और दवा की जरूरत है, दिखावे की नहीं। उन्होंने समाज के हर वर्ग से इसका पालन करने के लिए कहा है। उन्होंने कहा कि केवल उर्स ही नहीं बल्कि पैगंबरे इस्लाम के जुलूस ए मोहम्मदी जश्न में भी इसे लागू किया जाए। सज्जादानशीन ने अंजुमन कमेटियों से कहा कि जुलूस में लगने वाला डीजे, बैनर और फूलों का खर्च उन लोगों की मदद में लगाया जाए जो बीमारी से जूझ रहे हैं और खर्च नहीं उठा पा रहे हैं। इस फैसले को शहर के लोगों से समर्थन मिल रहा है।
सैकड़ों लोगों ने दिया सहयोग का भरोसा: सज्जादानशीन ने यह पहल की तो तमाम लोगों ने खुद आगे बढ़कर इलाज में मदद के लिए आर्थिक सहयोग करने का वादा किया है। कुछ लोगों ने अपने या अपने बच्चों के जन्मदिन पर चादर चढ़ाने की जगह, उस दिन किसी जरूरतमंद की मदद करने की बात कही।
समाज में बढ़ेगी जागरुकता: दरगाह से जुड़े नासिर कुरैशी ने बताया कि धार्मिक आस्था का सबसे सुंदर रूप इंसान की मदद है। अगर हर आयोजन में थोड़ा-थोड़ा हिस्सा भी जरूरतमंदों को समर्पित कर दिया जाए तो समाज से बहुत सारी तकलीफें खुद-ब-खुद कम हो जाएंगी। इस नेक पहल ने न सिर्फ धर्म को एक नई दिशा दी है बल्कि सेवा भावना को मजबूत किया है। बरेली की दरगाह ने एक मिसाल दी है जिस पर अमल की उम्मीद बाकी से भी है।




