Bus Drivers in Banda Depot Face Corruption and Exploitation Issues बोले बांदा: दिन-रात सफर करते हैं..हम भी थकते हैं.., Banda Hindi News - Hindustan
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बोले बांदा: दिन-रात सफर करते हैं..हम भी थकते हैं..

Banda News - बांदा डिपो में 116 बसें हैं, जिनमें से 95 विभिन्न रूटों पर चलती हैं। 21 बसें कंडम हैं। चालक-परिचालक अपनी बेबसी और तनाव के बारे में बताते हैं। उन्हें रूट चेंज करने के लिए घूस देनी पड़ती है, और बिना टिकट...

Newswrap हिन्दुस्तान, बांदाThu, 27 Feb 2025 06:01 PM
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बोले बांदा: दिन-रात सफर करते हैं..हम भी थकते हैं..

बांदा। चित्रकूटधाम परिक्षेत्र के बांदा डिपो में 116 बसें हैं। इनमें 95 कानपुर, दिल्ली, आगरा, फतेहपुर, लखनऊ, हमीरपुर, चित्रकूट, प्रयागराज, अयोध्या आदि रूट पर संचालित होती हैं। 21 बसें कंडम होने से डिपो में खड़ी हैं। 456 चालक-परिचालक डिपो में कार्यरत हैं। ज्यादातर चालक-परिचालक संविदा और आउटसोर्सिंग पर हैं। आपके अपने अखबार 'हिन्दुस्तान' के साथ बातचीत में उनकी समस्याएं बेबसी के रूप में सामने आईं। तेज प्रताप और शुभम शुक्ला का कहना है कि रोडवेज की नौकरी बेबसी में कर रहे हैं। अगर अन्य रोजगार का कोई इंतजाम हो जाए तो अलविदा कह देंगे। विभाग के अफसर समस्याओं को सुनने के बजाए आंखें दिखाते हैं। एक रूट की बसें ले जाने के बाद चालक-परिचालक को पर्याप्त आराम नहीं मिल पाता है। थकाऊ ड्यूटी, लंबी दूरी, तनाव समेत ऐसे कारण हैं, जिनसे सामाजिक ही नहीं पारिवारिक तानाबाना भी बिगड़ रहा है। नींद पूरी न होने पर भी यात्रा करना सिर्फ हमारे लिए ही नहीं बल्कि सवारियों के लिए भी घातक हो सकता है यह समझने को कोई तैयार नहीं है। बसों में कोई टूट-फूट होने पर हमसे ही जुर्माना वसूला जाता है। डिपो और तय स्टापेज में डग्गामार हावी हैं। ऐसे में लोड फैक्टर कम मिलना लाजिमी है पर इसके लिए भी हमें ही दोषी ठहराया जाता है। जुर्माना और वसूली से पूरी तनख्वाह भी घर तक नहीं पहुंच पाती है।

रूट चेंज कराने के लिए देनी पड़ती है घूस: चालकों-परिचालकों ने बताया कि अधिक दिन तक लंबी दूरी पर आने-जाने से मानसिक तनाव बन रहता है। इससे निजात के लिए अफसरों से रूट चेंज की बात कहने पर पहले तो फटकार मिलती है फिर नौकरी से हटाने की धमकी भी दी जाती है। फिर चुपके से कहा जाता है, क्या दोगे। नजराना देने पर रूट चेंज किया जाता है। अगर नजराना नहीं दिया तो लंबी दूरी पर ही बसें ले जानी होती हैं। चाहे कोई पारिवारिक समस्या ही क्यों न हो।

रोडवेज के घाटे के लिए भ्रष्टाचार जिम्मेदार:विकास कुमार और विनय कुमार कहते हैं कि चेकिंग दस्ते को बस में कोई यात्री बिना टिकट मिलता है तो टिकट का दस गुना जुर्माना परिचालक से वसूला जाता है। जबकि विभागीय जिम्मेदार खुद ही जेब भरने के लिए परिचालकों से चोरी करवाते हैं। हर रूट पर चलनेवाली बसों से अफसर तय वसूली करते हैं। इस भ्रष्टाचार पर नकेल लग जाए तो किसी भी बस में कोई भी यात्री बिना टिकट सफर नहीं कर सकेगा। विभागीय कर्मचारी चालकों से संचालन के अलावा बसों की साफ-सफाई के काम में भी लगा देते हैं। मना करने या विरोध पर काम से निकाल दिए जान की धमकी दी जाती है।आउटसोर्सिंग परिचालकों ने बताया कि न तो बीमा होता है, न ही चिकित्सा सुविधा दी जाती हैं

बोले कर्मचारी

हम महत्वपूर्ण अंग हैं। सुविधा के नाम पर खानापूरी ही देखने को मिलती है। बसों में नुकसान होने पर जुर्माना होता है। - राज नारायण

मानदेय तय न होनेसे जितनी बस चलाते हैं। उसी हिसाब से तनख्वाह मिलती है। परिवार पालना मुश्किल होता है। -शिवम गुप्ता

मेंटीनेंस के अभाव में ज्यादातर बसों में कोई न कोई कमी रहती है। अनफिट बसें यात्रा के दौरान आधे रास्ते में ही बंद हो जाती हैं। -अनिल द्धिवेदी

कहने को संविदा चालकों का दुर्घटना व स्वास्थ्य बीमा कराया जाता है लेकिन आज तक बीमा लाभ किसी को भी मिला है। -अनुज कुमार

बोले जिम्मेदार

एआरएम बांदा डिपो मुकेश बाबू गुप्ता कहते हैं कि चालक-परिचालक से अगर कोई वसूली करता है तो वह सीधे आकर उन्हें जानकारी दे। यही नहीं अगर बिना टिकट यात्री ले जाने का दबाव भी उन पर बनाया जाता है तो लिखकर दें। संबंधित के खिलाफ कार्रवाई की जाएगी।

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