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चार साल बाद भी चालू नहीं हो सका ट्रामा सेंटर, साल 2016 में 1.57 करोड़ से तैयार हुई थी बिल्डिंग

करीब तीन साल से ट्रामा सेंटर बनकर तैयार है, लेकिन उसमें इलाज आज तक शुरु नहीं हो सका। करोड़ों की लागत से बनी बिल्डिंग के खिड़की दरवाजे टूटने लगे, जबकि अन्य कीमती सामान चोरी हो रहे है। हालांकि ट्रामा...

चार साल बाद भी चालू नहीं हो सका ट्रामा सेंटर, साल 2016 में 1.57 करोड़ से तैयार हुई थी बिल्डिंग
हिन्दुस्तान टीम,बलियाFri, 06 Nov 2020 06:01 PM
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करीब तीन साल से ट्रामा सेंटर बनकर तैयार है, लेकिन उसमें इलाज आज तक शुरु नहीं हो सका। करोड़ों की लागत से बनी बिल्डिंग के खिड़की दरवाजे टूटने लगे, जबकि अन्य कीमती सामान चोरी हो रहे है। हालांकि ट्रामा सेंटर कब तक चालू होगा यह स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों को भी नहीं पता है।

जिले में ट्रामा सेंटर का निर्माण शुरु हुआ तो लोगों को लगा कि उन्हें बेहतर स्वास्थ्य सुविधाएं अब यही पर मिलेगी। करोड़ों की लागत से बिल्डिंग बनकर तैयार हो गयी जिसका पूरे तामझाम के साथ उद्घाटन हुआ। हालांकि संसाधनों व सुविधाओं के अभाव में ट्रामा सेंटर चालू नहीं हो सका। लम्बे इंतजार के बाद जिला अस्पताल परिसर में ट्रामा सेंटर के निर्माण का प्रस्ताव तैयार हुआ। शासन से हरी झंडी मिलने के बाद साल 2014-15 में भवन निर्माण का काम शुरु हो गया। उत्तर प्रदेश आवास एवं विकास परिषद ने करीब 157.43 लाख रुपये की लागत से वर्ष 2016 में भवन को खड़ा कर दिया। 20 दिसम्बर 2016 को प्रदेश के तत्कालिन स्वास्थ्य मंत्री शिवाकांत ओझा ने ट्रामा सेंटर का उद्घाटन किया। इसके बाद लगा कि महीने-दो महीने में लोगों को बेहतर इलाज मिलने लगेगा, लेकिन उनका यह सपना तीन साल बाद भी पूरा नहीं हो सका। साल-दर-साल बीतने लगा तथा अधिकारी-दर-अधिकारी बदलने लगे, बावजूद इसके ट्रामा सेंटर को लेकर किसी ने भी गंभीरता नहीं दिखायी। करोड़ों रुपये की लागत से तैयार इस बिल्डिंग में झाड़ु-पोछा लगता रहे इसके लिये जिला अस्पताल के ही दो डॉक्टरों की ओपीडी ट्रामा सेंटर के दो कमरों में चलती है।

...तो कईयों की बच जाती जान

ट्रामा सेंटर में अगर इलाज होता तो शायद कई लोगों की जान भी बच गयी होती। सड़क दुर्घटनाओं तथा मारपीट की घटनाओं में घायल लोगों को आम तौर पर जिला अस्पताल से वराणसी रेफर किया जाता है। अस्पताल सूत्रों की मुताबिक हर माह औसतन डेढ़ से दो दर्जन लोगों को बीएचयू भेजा जाता है। हालत गंभीर होने के कारण कईयों की जान या तो रास्ते में चली जाती है, अथवा अस्पताल की चौखट पर पहुंचने के बाद मौत हो जाती है। लोगों का कहना है कि ट्रामा सेंटर में उपचार की व्यवस्था होने के बाद इस प्रकार की मौत के आंकड़ों में काफी कमी आ जाती।

एक साल से रखी है कीमतीं मशीनें

जिले के लोगों को बेहतर स्वास्थ्य सुविधाएं मिल सके इसके लिये करोड़ों रुपये की लागत ट्रामा सेंटर का निर्माण हुआ। लाखों रुपये की कीमत से मशीनें खरीदी गयी। हालांकि मशीनों को दो साल बाद भी चालू नहीं किया जा सका है। करीब एक सप्ताह पहले सांसद विरेन्द्र सिंह मस्त ने स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों संग बैठक कर ट्रामा सेंटर को चालू कराने को लेकर चर्चा किया। पूरे मामले की जानकारी लेने के बाद उन्होंने पत्र बनाकर शासन को भेजने का निर्देश दिया। अस्पताल प्रशासन ने चिट्ठी बनाकर शासन को भेज भी दिया है। अब सभी को पत्र के जबाब का इंतजार है।

कोट:

ट्रामा सेंटर चालू करने के लिये डॉक्टर, कर्मचारी व संसाधनों की जरुरत है। न्यूरों सर्जन, आथार्े सर्जन, एनेस्थिसिया व अन्य स्टाफ का जब तक इंतजाम नहीं हो जाता है ट्रामा सेंटर को शुरु करना मुमकिन नहीं है। शासन को अब तक कई बार पत्र भेजा जा चुका है।

डॉ. बीपी सिंह, सीएमएस, जिला अस्पताल

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