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Hindi News उत्तर प्रदेश बलिया...तो पूर्वांचल की पहचान बनेगी अपनी इत्र-बिंदी

...तो पूर्वांचल की पहचान बनेगी अपनी इत्र-बिंदी

0 सिकंदरपुर में बड़े पैमाने पर होती थी फूल की खेती

...तो पूर्वांचल की पहचान बनेगी अपनी इत्र-बिंदी
हिन्दुस्तान टीम,बलियाWed, 13 May 2020 10:05 PM
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बलिया। निज संवाददाता

वैश्विक महामारी कोरोना के चलते पैदा हुए संकट को अवसर के रूप में लेते हुए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने आत्मनिर्भरता पर जोर दिया है। प्रदेश सरकार भी महानगरों में रोजगार गंवाकर लौटे कामगारों को अपने ही जिले में रोजी-रोटी का इंतजाम करने की बात कर रही है। ऐसे में हमारे परम्परागत कारोबार व उद्योग-धंधे कारगर साबित हो सकते हैं। सिकंदरपुर का इत्र किसी जमाने में देश-विदेश में अपनी पहचान रखता था। लगातार होती उपेक्षा के चलते समय के साथ यह उद्योग मंदा पड़ गया। फूलों की खेती से जुड़े लोगों ने या तो अपना कारोबार समेट लिया या फिर जैसे-तैसे उसे आगे बढ़ा रहे हैं। समय-समय पर इसकी बेहतरी की बात तो हुई लेकिन धरातल पर कुछ नहीं हो सका। ऐसी ही स्थिति मनियर के बिंदी को लेकर भी है। हालांकि इस कारोबार को प्रदेश सरकार की महत्वाकांक्षी ‘वन डिस्ट्रिक्ट वन प्रोडक्ट में चयनित किया गया है लेकिन इस दिशा में काम बहुत आगे तक नहीं हो सका है। इसके अलावा द्वाबा क्षेत्र में बड़े पैमाने पर सब्जी की खेती होती है, हनुमानगंज में बड़े पैमाने पर सिन्होरा का निर्माण होता है। यदि इन सभी को उत्पादों को बढ़ावा देने की दिशा में ठोस पहल हो तो न सिर्फ पूर्वांचल व प्रदेश-देश में अपनी पहचान बना सकते हैं बल्कि रोजगार के द्वार भी खोलेंगे।गुलाब की नगरी को ‘आक्सीजन की दरकार बलिया। गुलाब की नगरी सिकंदरपुर में इत्र उद्योग की बेहतरी के ठोस प्रयास नहीं होने से इसकी खुशबू दम तोड़ने लगी है। कभी यहां गुलाब, चमेली व बेला की खेती एक उद्योग के रूप में जानी जाती थी। हजारों एकड़ में इन फूलों की खेती होती थी। जिसके पास थोड़ी सी भी जमीन थी, वह गुलाब की खेती जरूर करता था। हालांकि अब यह मात्र 5 से 10 एकड़ में ही सिमट गया है। इनसे बने इत्र ने देश-दुनिया में अपनी धाक बनायी तो किसानों का मुनाफा भी बढ़ा। लेकिन समय के साथ शासन-प्रशासन की उदासीनता ने इस उद्योग को ही निगल लिया। किसान फूलों की खेती से अपना मुंह मोड़ने लगे और पैदावार घटती चली गयी। सिकंदरपुर का गुलाब जल, केवड़ा जल व गुलाब सकरी के साथ इत्र भारत में ही नहीं बल्कि अन्य देशों में अपनी खुशबू बिखेरता था। जिम्मेदार लोगों की उदासीनता का आलम यह हुआ कि लोग फूलों की खेती की बजाय मजदूरी करना बेहतर समझने लगे। फूलों की खेती करने वाले किसानों को सरकारी मदद के लिए अनुदान आये तो जरूर लेकिन वह किसानों तक पहुंचने की बजाय बिचौलियों की जेब भरने लगे। कई बार किसानों ने इसके लिए आवाज भी बुलंद की लेकिन नतीजा सिफर ही रहा। अधिकारी केवल कागजों में ही जांच करते रह गये। इनसेट200 से 15 कुंतल पर सिमट गया कारोबार तीन दशक पहले तक सिकंदरपुर में गुलाब की खेती बड़े पैमाने पर होती थी। आज तमाम संसाधनों के बावजूद फूलों की खेती से मुंह मोड़ रहे हैं। किसी जमाने में यहां इत्र के करीब एक दर्जन कारखाने चलते थे। आज मात्र चार दुकानदार तथा दो कारखाने ही रह गए हैं। किसान अवधेश, दुकानदार मदन व कारखाना चलाने वाले फरहत मोइद की मानें तो तीन दशक पहले यहां रोजाना करीब 200 कुंतल फूल का उत्पादन होता था। अब यह सिमटकर 10 से 15 कुंतल रह गया है। उनके मुताबिक फरवरी व मार्च के महीने में जब एक साथ दर्जनों कारखाने चलने लगते थे तो पूरे सिकंदरपुर में नालियां भी खुशबू बिखेरने लगती थीं। कारण कि कारखानों द्वारा गुलाब जल व इत्र निकालने के बाद बचे हुए पानी को नाला-नालियों में गिरा दिया जाता था। ‘डाबर के लिए होती थी गुलबरी की सप्लाईगुलाबों की नगरी सिकंदरपुर में गुलाब सकरी इतनी प्रसिद्ध थी कि अन्य जिलों व प्रदेश के साथ ही विदेशों तक में इसकी सप्लाई होती थी। फरवरी से जून माह तक इसकी जबरदस्त बिक्री होती थी। डाबर कम्पनी के लिए गुलबरी की सप्लाई भी यहां से होती थी। कारोबार से जुड़े लोगों के अनुसार पहले गर्मी के दिनों में लोग ठंडई के रूप में इसका इस्तेमाल करते थे। आज भी इसका इस्तेमाल लोग भरपूर मात्रा में करते हैं। कारखाने के मालिक फरहत के अनुसार शासन की उदासीनता के कारण यह उद्योग समाप्ति की ओर है। यह हो पहल तो बिखरने लगेगी खुशबू 0 बिचौलियों के हस्तक्षेप के चलते किसानों को उनके फूलों की अच्छी कीमत नहीं मिल पाती। इसे खत्म कर किसानों को सीधे बाजार उपलब्ध कराना होगा। 0 अन्य फसलों की तरह गुलाब का न्यूनतम मूल्य तय हो।0 किसानों को गुलाब की खेती को बढ़ावा देने के लिए नयी प्रजाति के बीज उपलब्ध कराने की जरूरत।0 प्रोसेसिंग प्लांट की स्थापना। खादी ग्रामोद्योग विभाग या अन्य एजेंसियों के माध्यम से किसानों के उत्पादन की सीधी खरीददारी यहां से हो तो किसानों को उचित मूल्य मिल सकेगा।0 ऐसा प्रयास हो कि कुछ बाहर के लोग भी यहां आकर यूनिट स्थापित कर सकें।0 फूलों की खेती के लिए आसान तरीके से अनुदान उपलब्ध कराया जाय। 0 बेहतर खेती के लिए किसानों को प्रशिक्षण दिया जाय। 0 कन्नौज की तरह यहां भी सरस व सुगंध केन्द्र स्थापित किये जाएं। पीएम के आह्वान से लौटेगी बिंदी की चमक!बलिया। प्रदेश में छोटे उद्योगों को बढ़ावा देने तथा जिलों में स्वरोजगार को प्रोत्साहित करने के उद्देश्य से प्रदेश सरकार ने दो वर्ष पहले ‘एक जिला एक उत्पाद (ओडीओपी) योजना शुरू की। अपने यहां मनियर के बिंदी उद्योग को इसमें शामिल किया गया है। हालांकि तमाम प्रयासों के बाद भी अबतक यह उद्योग रफ्तार नहीं पकड़ सका है। सितम्बर 2019 में इस उद्योग समेत कई अन्य स्थानीय उद्योगों को गति देने के लिए टाउन हाल में बिजनेस मीट भी आयोजित हुई लेकिन वह भी अभी आकार नहीं ले सका है। प्रधानमंत्री के आह्वान के बाद यदि इस उद्योग पर नजर दौड़ा दी गयी तो निश्चित ही जिले में रोजगार का एक बड़ा अवसर पैदा होगा और अपने यहां की बिंदी प्रदेश व देश की महिलाओं के शरीर पर चमकने लगेगी।जिला उद्योग विभाग के आंकड़ों के अनुसार इस धंधे में लगभग 600 से 700 महिलाएं काम करती हैं। कानपुर व वाराणसी के व्यापारी भी रेडीमेड बिंदी लेकर मनियर आते हैं, कुछ कस्बा के भी व्यापारी हैं जो दिल्ली या गाजियाबाद से बिंदी सामग्री लाते हैं और बिंदी कारोबार से जुड़ी महिलाओं में बांट देते हैं। महिलाएं घर का काम निपटाने के बाद उसे कागज के पत्ते पर साटकर बंडल बना देती हैं। जिला उद्योग केंद्र की मानें तो मनियर के बिंदी उद्योग को बढ़ावा देने के घर-घर घूम कर यह प्रयास किया गया कि सभी लोग इस धंधे को ऊंचाई देने के क्रम में कम्प्यूटर से डिजाइन निकालें। लघु उद्योग स्थापित कर मशीन का प्रयोग करें। सिर्फ पत्ता बनाने से उनकी कमाई अच्छी नहीं होगी। जब वे खुद नए डिजाइन के बिंदी का निर्माण करेंगे तो देश भर में उनका नाम होगा और यहां की बिंदी को तरक्की का रास्ता भी मिल जाएगा। दर्जन भर लोगों को उद्योग के लिए दिया लोन पिछले वर्ष लखनऊ के इंदिरा गांधी प्रतिष्ठान में आयोजित वन डिस्ट्रिक्ट-वन प्रोडक्ट समिट कार्यक्रम का सीधा प्रसारण जिले के विकास भवन सभागार में किया गया, जिसे डीएम संग अधिकारियों ने देखा। कार्यक्रम के बाद तत्कालीन डीएम भवानी सिंह खंगारौत ने उद्योग विभाग की ओर से संचालित प्रधानमंत्री रोजगार सृजन कार्यक्रम के तहत मनियर के छह लाभार्थियों को बिंदी उत्पाद को बढ़ावा देने के लिए पांच-पांच लाख रुपये की धनराशि स्वीकृत की गयी। समिट में मनियर के बिंदी उत्पाद को बढ़ावा देने के लिए यहां के भी छोटे कारीगर शामिल हुए थे। 100 से अधिक लोगों को दिया प्रशिक्षणजिला उद्योग केंद्र के उपायुक्त के अनुसार मनियर के बिंदी उद्योग को बढ़ावा देने के लिए इस कारोबार से जुड़े लोगों को चिह्नित किया गया है और उन्हें प्रशिक्षण देने के लिए काम जारी है। यह भी बताया कि अभी तक 100 से अधिक कारोबारियों को प्रशिक्षण दिया गया है। बताया कि बिंदी प्रोडक्ट को बेचने के लिए अभी किसी कंपनी से कोई करार नहीं हुआ है। अगर कोई कारोबारी बिंदी उद्योग के लिए ऋण को आवेदन करता है तो उसका भरपूर सहयोग किया जाएगा।समय संग बदलाव नहीं होने से बिगड़े हालात मनियर कस्बा दशकों से बिंदी (टिकुली) उद्योग के लिए मशहूर है। बिंदी के बहुत से कुटीर उद्योग यहां पर वर्षों से चल रहे हैं। यह उद्योग जनपद के लिए आय का एक बहुत बड़ा स्रोत है। बताया जाता है कि मनियर में बिंदी उद्योग की शुरुआत 1950 के करीब हुई थी। उस समय शीशे को गलाकर बिंदी बनती थी। उस पर सोने व चांदी का पानी चढ़ाकर खूबसूरत बिंदी बनायी जाती थ्ी। उद्योग को बढ़ावा देने के लिए यहां के लोगों ने दूसरे शहरों में जाकर नयी डिजाइन भी सीखी थी। कुछ वर्षों बाद शीशे की बिंदी का चलन समाप्त हुआ और बाजारों में नए किस्म की बिंदी आने लगी। बदलते समय के अनुसार मनियर का बिंदी उद्योग तरक्की की राहों में इसलिए पीछे रह गया क्योंकि इस ओर कारीगर अपना पांव ही आगे नहीं बढ़ाना चाहते। जिम्मेदारों ने भी इस ओर कोई ध्यान नहीं दिया। एक जिला एक उत्पाद योजना में बिंदी उद्योग के शामिल होने से उम्मीद जगी। कोरोना चलते हुए लॉकडाउन से पैदा हुए हालात को अवसर के रूप में लेते हुए इस उद्योग में सांस फूंकने की जरूरत है।इनसेट फीकी नहीं होने देंगे बिंदी की चमक ओडीओपी में जिले के बिंदी उद्योग का चयन हुआ है। हालांकि अबतक इस उद्योग में उल्लेखनीय प्रगति नहीं हो सकी है। ज्वाइंट मजिस्ट्रेट विपिन जैन ने माना कि इसके विकास में कुछ रूकावटें आईं। उन दिक्कतों को चिह्नित किया गया है। यदि वह दूर हो जाएंगी तो निश्चित ही लोग इस उद्योग को लगाने को प्रेरित होंगे। कहा कि बिंदी की चमक फीकी न पड़े, इसके लिए जरूरी कदम उठाए जाएंगे। तकनीक को अपग्रेड करने के साथ ही रॉ मैटेरियल बैंक गठित किया जाएगा। ताकि उद्योग से जुड़े लोगों को एक ही जगह से सभी सामान उपलब्ध हो सके। साथ ही बिंदी उत्पाद की बिक्री के लिए मार्केटिंग के सोर्स उपलब्ध कराने की व्यवस्था होगी। जमीन लेने पर रजिस्ट्री फ्री, 90 फीसदी सब्सिडीपिछले दिनों ओडीओपी की बेहतरी को लेकर हुई बैठक में ज्वाइंट मजिस्ट्रेट विपिन जैन ने कहा था कि जिले में उद्योग की स्थापना के लिए पूंजी निवेश करने वाले विशिष्ट उद्यमियों व व्यापारियों को आमंत्रित किया जाएगा। उन्हें आश्वस्त किया जाएगा कि उनको यहां कोई दिक्कत नहीं होगी। यदि भूमि की जरूरत होगी तो माधोपुर या जिगनी खास में इंडस्ट्रियल एरिया है, वहां रियायती दरों पर कुछ औपचारिकताएं पूरी कर भूमि आवंटित की जाएगी। इसके अलावा भी कई अन्य क्षेत्रों में जमीन चिह्नित की जा रही है। अगर उद्यमी भूमि खरीदना चाहें तो उसे रजिस्ट्री पर शत-प्रतिशत स्टाम्प ड्यूटी फ्री मिलेगी। इसके अलावा 90 फीसदी तक की सब्सिडी दी जाएगी। यही नहीं, बकायदा उनके साथ एक अनुबंध होगा, जिसमें वे यह बताएंगे कि कितने समय में वे उद्योग में कितना निवेश करेंगे। --------------------------------------------------------

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