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अचानक बढ़ा जलस्तर, सब्जी के खेतों में घुसा पानी

घाघरा नदी का जलस्तर अचानक बढ़ने से खैराखास गांव के दियारा में बोई गयी सब्जी के साथ ही तरबूज व खरबूज की सैकड़ों एकड़ खेती के खराब होने का संकट गहरा गया है। इससे सब्जी उत्पादक किसानों के माथे पर चिंता की...

घाघरा नदी का जलस्तर अचानक बढ़ने से खैराखास गांव के दियारा में बोई गयी सब्जी के साथ ही तरबूज व खरबूज की सैकड़ों एकड़ खेती के खराब होने का संकट गहरा गया है। इससे सब्जी उत्पादक किसानों के माथे पर चिंता की...
1/ 2घाघरा नदी का जलस्तर अचानक बढ़ने से खैराखास गांव के दियारा में बोई गयी सब्जी के साथ ही तरबूज व खरबूज की सैकड़ों एकड़ खेती के खराब होने का संकट गहरा गया है। इससे सब्जी उत्पादक किसानों के माथे पर चिंता की...
घाघरा नदी का जलस्तर अचानक बढ़ने से खैराखास गांव के दियारा में बोई गयी सब्जी के साथ ही तरबूज व खरबूज की सैकड़ों एकड़ खेती के खराब होने का संकट गहरा गया है। इससे सब्जी उत्पादक किसानों के माथे पर चिंता की...
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हिन्दुस्तान टीम,बलियाMon, 22 Apr 2019 05:09 PM
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घाघरा नदी का जलस्तर अचानक बढ़ने से खैराखास गांव के दियारा में बोई गयी सब्जी के साथ ही तरबूज व खरबूज की सैकड़ों एकड़ खेती के खराब होने का संकट गहरा गया है। इससे सब्जी उत्पादक किसानों के माथे पर चिंता की लकीरें उभरने लगी हैं। लगान पर खेत लेकर खेती करने वाले किसानों पर तो दोहरी मार पड़ रही है।

घाघरा के दियारे में बड़े पैमाने पर खरबूज-तरबूज, नासपाती, ककड़ी, खीरा के साथ ही मौसमी सब्जी परवल, भिंडी, लौकी, टिंडा आदि की सैकड़ों एकड़ में खेती हर वर्ष होती है। फसल बोने के लिए जिन किसानों को अपनी जमीन नहीं है वह नदी के किनारे खेत मालिक से तय राशि तीन से चार हजार रुपये पर मौसमी फसल के लिए खेत लगान पर लेते हैं। इसके बाद लगभग 20 हजार रुपये प्रति बीघे की लागत से बुआई करते हैं। इनमें से कुछ किसान तो खेतों में से ही अपनी ऊपज व्यापारियों के हाथ बेच देते हैं, जबकि कुछ स्वयं बाजार में अपनी दुकान लगाकर बेचते हैं, जिससे उनकी आमदनी और ज्यादा होती है।

इस वर्ष समय से पहले ही अचानक घाघरा नदी का जलस्तर बढ़ जाने से फसल डूबने लगी है, जिससे किसान परेशान हैं। किसानों ने बातचीत में बताया कि इस वर्ष लागत भी निकलना मुश्किल है। हम किसानों को सरकार से कोई सहयोग भी नहीं मिलता है।

यही उत्पादन ही है जीवन का सहारा

खैराखास ग्रामसभा के मधुबनी मौजा निवासी किसान शिवप्रसाद तुरहा, भोला तुरहा, सुरेश तुरहा, गामा तुरहा, लालमुनि तुरहा, तूफानी तुरहा आदि दर्जनों किसानों ने आपबीती सुनायी। कहा कि हम लोग किसी तरह अपने पास से लागत लगाकर खेत की जुताई-कुड़ाई, बीज, खाद आदि लगाकर पैदावार करते हैं। उत्पाद को बेचकर ही अपना जीवन यापन करते हैं। इस साल समय से पहले खेतों में घाघरा का पानी आ गया है। इससे भारी नुकसान का सामना करना पड़ रहा है। कहा कि नदी ने कुछ दिनों की राहत दे दी तो उत्पाद खेत से बाहर निकल जाता।

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