बोले बलिया : बांस पर लटके बिजली के तार, सड़क-पानी को भी लाचार
Balia News - मिश्र नेवरी के निवासी नगरपालिका क्षेत्र में रहते हुए भी बुनियादी सुविधाओं के अभाव से जूझ रहे हैं। जलनिकासी, बिजली, और सड़क जैसी समस्याओं के चलते लोग बरसात के दिनों में बांस के पुल बनाकर आवाजाही करते...
एनएच-31 से सटे वार्ड नम्बर पांच का हिस्सा मिश्र नेवरी। कहने को तो यह नगरपालिका क्षेत्र में है लेकिन यहां की सुविधाएं ‘सिस्टम को मुंह चिढ़ा रही हैं। जलनिकासी की कोई सुविधा नहीं है। इस कारण बरसात के दिनों में लोग बांस का पुल बनाकर आवाजाही करते हैं। बिजली के कनेक्शन तो हैं लेकिन बांस के खम्भों के सहारे तार दौड़ रहे हैं। पेयजल आपूर्ति के लिए पाइपलाइन का अता-पता नहीं है। रास्ते ऐसे कि गंभीर मरीज को ले जाने के लिए एम्बुलेंस भी नहीं पहुंच सकती। चारपाई पर लेटाकर मरीज को सड़क तक पहुंचाना पड़ता है। मिश्र नेवरी स्थित एक अहाते में ‘हिन्दुस्तान से कालोनी के लोगों ने बातचीत शुरू की तो शिकायतों की फेहरिस्त लम्बी होती चली गयी। विद्याशंकर मिश्र ने बताया कि चार दशक से भी अधिक समय पहले नगरपालिका के सीमा विस्तार में इस मुहल्ले को शामिल किया गया। ‘गंवई से ‘शहरी बनने का तमगा मिला तो लगा कि सबकुछ चकाचक हो जाएगा। बेहतर लाइफस्टाइल की उम्मीद में घर बनते गए और आबादी बढ़ती गयी। बच्चों की पढ़ाई-लिखाई व अन्य कारणों से गांवों के लोग महंगी जमीनें खरीदकर यहां शिफ्ट होते चले गए। अफसोस, कि उम्मीदें धरी की धरी रह गयीं। हम नगरपालिका में हैं, यह कहते हुए भी तकलीफ होती है। जलनिकासी का कोई इंतजाम नहीं होने से घरों का पानी नहीं निकल पाता। हर वर्ष बरसाती बाढ़ का सामना करना पड़ता है। बरसात शुरु होते ही लोग बचने में उपाय में जुट जाते हैं। घरों के सामने लकड़ी व बांस के छोटे-छोटे पुल आपको दिखने लगेंगे। हर वर्ष तीन से चार महीने तक अधिकांश घर पानी से घिरे होते हैं। महिलाओं व बच्चों का निकलना मुश्किल हो जाता है। बेटा-बेटियों का स्कूल जाना भी संभव नहीं हो पाता। लकड़ी के पुल से पैदल तो आते-जाते हैं लेकिन वाहन नहीं निकल पाते हैं। संक्रामक बीमारियों का भी डर बना रहता है। लगातार बारिश होने पर चंदा लगाकर पम्पिंग सेट से पानी निकासी कराते हैं।
संदीप पांडेय ने कहा कि रास्ता के नाम पर केवल जहां-तहां कोरम ही पूरा हुआ है। बलिया-बैरिया मुख्य मार्ग से मोहल्ले में जाने के लिए मुख्य रास्ते पर भी वर्षों से अतिक्रमण है। इसके चलते वाहनों के आने-जाने में दिक्कत होती है। सड़क से महज 20 मीटर तक रास्ता बना, उसके बाद से बाधित है। किसी गंभीर रोगी को लेने के लिए एंबुलेंस भी नहीं आ पाती है। रोगी को चारपाई पर लादकर सड़क तक ले जाना पड़ता है। रोजाना के घरेलू सामान लाने में भी परेशानी होती है। ई-रिक्शा वाले भी मोहल्ले में आने की हिम्मत नहीं जुटा पाते। उनका दोष भी नहीं है। रिक्शा कहां पलट जाए, कुछ पता नहीं। भवन निर्माण सामग्री ट्रैक्टर के सहारे जैसे-तैसे पहुंच पाता है। गणेश गुप्त ने कहा कि दशकों बाद भी न तो पानी टंकी लगी है और न ही पानी की आपूर्ति के लिए पाइपलाइन ही बिछ सकी है। कई बार जिम्मेदारों से गुहार भी लगाई गयी लेकिन इसे अनसुना किया जाता रहा। मोहल्ले के लोग खुद ही पानी का इंतजाम करते हैं। जबकि नगरपालिका की ओर से हर महीने आवास कर का निर्धारण किया जाता है।
‘जुगाड़ के सहारे बिजली की आपूर्ति : मनोज चौबे ने बताया कि पूरे मोहल्ले में जुगाड़ से ही बिजली की आपूर्ति होती है। कहीं भी न तो पोल हैं और न केबल। विभाग ने आंख मूंदकर कनेक्शन भी दे दिया है। खम्भे के अभाव में बांस के सहारे पांच सौ से एक हजार मीटर दूर तक केबल खींचकर लोग बिजली का उपयोग कर रहे हैं। कई जगह तो तारों का जाल बन गया है, जिसके नीचे से गुजरने में भी डर लगता है। गर्मी के दिनों में तो केबल जलकर गिर भी जाते हैं जिससे हादसे की संभावना रहती है। कनेक्शन जांचने, मीटर रीडिंग करने के लिए विभाग के कर्मचारी आते तो हैं लेकिन यहां की दुश्वारियां उन्हें शायद नहीं दिखतीं। शिवानंद ने कहा कि मोहल्ले में कहीं भी स्ट्रीट लाइट भी नहीं है। लिहाजा शाम होते अंधेरा छा जाता है। आसपास जंगल, झाड़ व कूड़ा आदि होने से विषैले जीवों का भी डर सताता है। अंधेरा होने के कारण महिलाएं भी घरों से बाहर नहीं निकलतीं। भोर में टहहना भी मुश्किल हो जाता है। कभी-कभी तो लगता है कि ग्राम सभा ही रहती तो कुछ सुविधाएं नसीब हो जातीं।
ईंट-भट्ठा का क्षेत्र होने का खामियाजा
दयानंद ने बताया कि यह इलाका दशकों पहले ईंट-भट्ठा का क्षेत्र था। ईंटों को बनाने के लिए मिट्टी की कटाई होने के कारण यहां की जमीन सड़क से काफी नीचे है। अब इस भू-भाग पर आबादी बस चुकी है, लेकिन आज भी इस क्षेत्र में एक ईंट-भट्ठा का संचालन हो रहा है। इसके चलते रोज धुंआ-धूल से सामना होता है। ईंटों के निकालते समय उड़ने वाला धूल मोहल्ले के घरों तक पहुंचता है, जिससे खासकर बुजुर्गों को परेशानी होती है। शुद्ध हवा नहीं मिलने से लोग बीमार भी हो रहे हैं।
झाड़ू न कूड़ा कलेक्शन, फॉगिंग का भी पता नहीं
संदीप पांडेय व रोहित कुमार मिश्र ने बताया कि नगरपालिका हमें अपना हिस्सा मानती भी है या नहीं, यह भी वही जाने। न तो यहां कभी झाड़ू लगता है और न ही कूड़ा कलेक्शन का कोई इंतजाम है। फॉगिंग की बात पूछिए ही मत। मोहल्ले में कूड़े का अंबार लगा रहता है। नगरपालिका ने न तो कूड़ेदान रखवाए हैं और न ही कूड़ों का उठान ही होता है। बताया कि कुछ वर्ष पहले डोर-टू-डोर कूड़ा उठाने वाले कर्मचारी आते थे लेकिन पिछले दो-तीन सालों से कर्मचारी ‘लापता हो गए हैं। सफाईकर्मी तो शायद ही कभी दिखते हों। कूड़ा डम्प करने का कोई स्थान भी तय नहीं है। इस कारण लोग खाली प्लॉट या जहां-तहां फेंकने को विवश हैं।
यहां बारिश में चलती है ‘रबड़ की नाव
नित्यानंद उपाध्याय ने कहा, इस कॉलोनी में ‘डल झील का नजारा देखना हो तो बारिश के मौसम में आपसका स्वागत है। कुछ दिनों तक लगातार बरसात होने पर पूरी कालोनी लबालब हो जाती है। सुनकर आपको शायद भरोसा न हो लेकिन यहां जमा पानी में कालोनी से मुख्य सड़क तक जाने के लिए ‘नाव चलानी पड़ती है। दादा-बाबा के जमाने की तरह बच्चे व युवा बाइक या जीप के रबड़ ट्यूब की नाव बनाकर आवाजाही करते हैं। बाइक या अन्य वाहन अपने मित्र-रिश्तेदारों के यहां खड़ी करनी पड़ती है। जान सांसत में डालकर बच्चे उसी विशेष नाव से सड़क तक पहुंचकर स्कूल आते-जाते हैं। महिलाएं महीनों तक घरों में कैद रहती हैं।
सुझाव :
घरों के साथ ही बारिश के पानी की निकासी का इंतजाम होना चाहिए। नालियों का निर्माण प्राथमिकता से कराया जाय।
बिजली की आपूर्ति के लिए मोहल्ले में खम्भे व केबल लगाए जाने चाहिए। बांस के सहारे बिजली की आपूर्ति खतरनाक है।
मोहल्ले में रास्तों का निर्माण जरुरी है। एनएच से कालोनी में आने वाली सड़क को पूरा कराएं।
मोहल्ले में जगह-जगह कूड़ेदान लगने चाहिए। डोर टू डोर कूड़ा कलेक्शन की भी व्यवस्था सुनिश्चित हो।
ईंट भट्ठा को आबादी से दूर करने की व्यवस्था होनी चाहिए। इससे लोगों को धुंआ-धूल से राहत मिलेगी और शुद्ध हवा में सांस ले सकेंगे।
शिकायतें :
मुहल्ले में जलनिकासी का कोई इंतजाम नहीं है। तीन से चार माह तक बरसाती बाढ़ का सामना करना पड़ता है।
बिना खम्भे व केबिल के ही बिजली विभाग ने कनेक्शन दे दिया है। बांस के सहारे तार खींचकर आपूर्ति से हादसे का भय रहता है।
अधिकांश घरों के सामने रास्ते तक नहीं बने हैं। मुख्य मार्ग से कालोनी तक आने वाली सड़क पर अतिक्रमण के कारण एंबुलेंस तक नहीं आते।
मोहल्ले में कूड़ेदान कहीं नहीं लगे हैं। डोर टू डोर कूड़ा कलेक्शन भी नहीं होता।
मोहल्ले में संचालित ईंट-भट्ठा का धुंआ-धूल बेहाल करता है। खासकर बुजुर्गों को अधिक परेशानी होती है।
बोले लोग :
मोहल्ले में पानी निकासी की बड़ी समस्या है। जगह-जगह पानी डम्प हो जाता है, जिससे संक्रामक बीमारियों का खतरा रहता है।
संदीप पांडेय
बरसात के सीजन में मोहल्ले में घुटने तक पानी लग जाता है। लोग तीन से चार माह तक पानी से होकर गुजरते हैं। कुछ स्थानों पर ‘चाचर लगाकर लोग घरों से बाहर निकलते है।
रवि प्रकाश
मोहल्ले में न तो बिजली के पोल लगे हैं और न ही तार ही खींचा गया है। उपभोक्ता मजबूर होकर चार से पांच सौ मीटर दूरी से बांस के सहारे केबल खींचकर लाइन जला रहे हैं।
विद्याशंकर मिश्र
कालोनी में पेयजल आपूर्ति के लिए आज तक पाइप लाइन भी नहीं बिछाई गई है। जिससे मोहल्ले के लोगों को शुद्ध पेयजल नसीब नहीं हो पाता है।
गणेश गुप्ता
मोहल्ले में आने-जाने के लिए पक्की सड़क तक नहीं है। चार पहिया वाहन मुख्य मार्ग से कालोनी तक लाना आसान नहीं है। सड़क निर्माण होना चाहिए।
शिवानंद गुप्ता
मोहल्ले में पुलिस रात में गश्त नहीं करती है। जिससे कई घरों में चोरी की घटनाएं हो चुकी हैं। मोहल्ले के लोग पांच-पांच की टोली बनाकर रात में भ्रमण करते थे।
मनोज चौबे
बिजली विभाग के अधिकारी व कर्मचारी मीटर की जांच और विद्युत विच्छेदन करने आते रहते हैं लेकिन तार व पोल की व्यवस्था करना जरूरी नहीं समझते हैं।
पप्पू खरवार
नगरपालिका ने कभी इस मुहल्ले में फागिंग नहीं करायी। कूड़ों का न तो कलेक्शन होता है और न ही उठान ही होता है।
दयानंद उपाध्याय
नगर क्षेत्र में ईंट-भट्ठा चल रहा है, जिससे प्रदूषण के साथ ही धूल-धक्कड़ की समस्या होती है। शासनादेश के अनुसार नगरपालिका व आबादी वाले क्षेत्र में ईट-भट्ठा नहीं चलना चाहिए।
रोहित कुमार मिश्रा
मुहल्ले में किसी की तबियत खराब हो जाय तो एम्बुलेंस नहीं आ पाती है। सड़क के अभाव में मरीज को चारपाई पर लादकर मुख्य मार्ग तक ले जाना पड़ता है।
नित्यानंद उपाध्याय
मोहल्ले में कहीं भी सूखा व गीला कूड़ा डालने के लिए डस्टबीन नहीं लगवाया गया है। जिससे लोग खाली जमीनों में कूड़ा फेंक देते हैं। इसे लेकर विवाद भी हो जाता है।
अरविंद ओझा
कुछ वर्ष पहले डोर-टू-डोर कूड़ा उठाने कर्मचारी आते थे। दो-तीन वर्षों से कर्मचारियों का अता-पता नहीं है। सफाई का कोई इंतजाम नहीं है।
रोहित गुप्ता
कालोनी में आवास बढ़े और आबादी भी बढ़ी, लेकिन पूरी व्यवस्था दशकों पुरानी ही है। मुहल्ला विकास से कोसो दूर है। लगता ही नहीं कि हम नगर क्षेत्र में हैं।
राजकुमार शर्मा
मिश्रनेवरी के लोगों से नगर पालिका टैक्स तो वसूलती है लेकिन मूलभूत सुविधाएं भी प्रदान नहीं करती। सड़क, बिजली, पानी जैसी जरूरतें भी पूरी नहीं होतीं।
लवकुश पांडेय
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