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बीज महंगा होने से आलू उत्पादकों के सामने संकट, तीन हजार रुपये प्रति कुंतल खरीदने की लाचारी

आलू उत्पादन के लिये मशहूर द्वाबा क्षेत्र के किसानों को आलू का बीज खरीदने में पसीने छूट रहे हैं। पहली बार आलू का बीज तीन हजार रुपये प्रति कुंतल के रेट से बिक रहा है। आलम यह है कि जिन किसानों ने कोल्ड...

बीज महंगा होने से आलू उत्पादकों के सामने संकट, तीन हजार रुपये प्रति कुंतल खरीदने की लाचारी
हिन्दुस्तान टीम,बलियाThu, 29 Oct 2020 06:11 PM
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आलू उत्पादन के लिये मशहूर द्वाबा क्षेत्र के किसानों को आलू का बीज खरीदने में पसीने छूट रहे हैं। पहली बार आलू का बीज तीन हजार रुपये प्रति कुंतल के रेट से बिक रहा है। आलम यह है कि जिन किसानों ने कोल्ड स्टोरेज में बीज के लिये आलू नहीं रखा है उन्हें आलू बोआई के लिये बीज खरीदना भारी पड़ रहा है।

दरअसल आलू के सीजन में जब आलू एक हजार रुपये प्रति कुंतल खेत में ही बिक रहा था, तब ज्यादातर किसानों ने खेत में ही आलू बेच दिया। उन्हें नहीं पता था कि आलू का रेट इतना बढ़ जायेगा कि बीज के लिए आलू की खरीददारी भी उनके बूते के बाहर हो जायेगी।

आलू उत्पादक राजनाथ सिंह, रामजी यादव, बाल्मीकि वर्मा, विजय वर्मा, रणजीत वर्मा, विजय शंकर तिवारी आदि ने बताया कि यदि उन्हें यह अंदाजा होता कि आलू का रेट इतना अधिक बढ़ जायेगा तो हम अपने आलू की बिक्री खेतों में करने की बजाय कोल्ड स्टोरेज में रख देते। किसानों ने बताया कि अब जिनके पास बीज नहीं हैं, वे चाहकर भी इतना महंगा बीज खरीदकर आलू की खेती नहीं कर सकते।

गौरतलब है कि द्वाबा क्षेत्र में बड़े पैमाने पर किसान आलू की खेती करते हैं। यहां से बड़े पैमाने पर आलू पड़ोसी राज्य बिहार में भेजा जाता है। आलू का अधिक उत्पादन होने की वजह से ही इस क्षेत्र में चार कोल्डस्टोरेज बने हैं जो लगभग हरेक वर्ष इसी क्षेत्र के किसानों के आलू से भर जाते हैं। बिहारी व्यापारी यहां से सीजन में बड़े पैमाने पर आलू खरीदकर बिहार ले जाते हैं।

महंगी हुई आलू की खेती

किसानों ने बताया कि एक एकड़ आलू की खेती करने पर 45 से 50 हजार रुपये का खर्चा आ रहा है। एक एकड़ खेत बोने में 12 से 14 कुंतल आलू का बीज लगता है। केवल बीज खरीदने में ही 35 से 40 हजार रुपये का खर्च आ रहा है। यदि इसमें खाद-पानी व मजदूरी जोड़ दिया जाय तो यह खर्च 50 हजार प्रति एकड़ पहुंच रहा है।

पिक सीजन में डीएपी का भी अभाव

आलू बोआई के पिक सीजन में क्षेत्र के किसी भी साधन सहकारी समिति पर डीएपी उपलब्ध नहीं है। किसान डीएपी के लिये समितियों की परिक्रमा कर रहे हैं। किसानों ने बताया कि बाजार में खाद की दुकानों पर समितियों के रेट पर ही डीएपी उपलब्ध है लेकिन उन्हें समिति के डीएपी पर जितना भरोसा है, उतना बाजारों में उपलब्ध डीएपी पर नहीं है। क्षेत्र में बैरिया, कोटवा, चाईछपरा, हनुमानगंज, श्रीनगर समेत कुल 8 साधन सहकारी समिति हैं, जिससे सैकड़ों किसान जुड़े हैं। इस बावत साधन सहकारी समिति कोटवां के सचिव अलीमुद्दीन ने बताया कि डीएपी के लिये समितियों से चेक भेजा गया है, उम्मीद है कि जल्द ही डीएपी उपलब्ध हो जायेगी।

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