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ट्रीटमेंट प्लांट न बनने से लोग पी रहे आर्सेनिकयुक्त जल

बलिया में आर्सेनिक से प्रभावित गंगा तटीय 310 गांवों में लोग तिल-तिल कर मर रहे हैं। इससे उन्हें चर्मरोग समेत कई रोगों का सामना करना पड़ रहा...

ट्रीटमेंट प्लांट न बनने से लोग पी रहे आर्सेनिकयुक्त जल
हिन्दुस्तान टीम,बलियाMon, 08 Mar 2021 03:05 AM
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बलिया। आर्सेनिक से प्रभावित गंगा तटीय 310 गांवों में लोग तिल-तिल कर मर रहे हैं। चर्म रोग इतना भयावह होता है कि कोई दवा काम नहीं करतीं। मनुष्य के लीवर-गुर्दे की क्या बात की जाय-इस पानी का प्रयोग करने वाले मवेशियों के गोबर से कंडे तक जलाने में आंख खराब हो जाती है। मुरलीछपरा, हनुमानगंज और सोहांव विकास खण्ड क्षेत्र में भूमिगत जल आर्सेनिक से तबाही का ब्योरा फिर वैज्ञानिकों ने सुनाया तो संयुक्त निदेशक समेत सभी दहल गए। मगर जल निगम की ओर से तैयार की गई गंगा ट्रीटमेंट प्लांट को कैसे केन्द्रीय ग्रामीण विकास मंत्रालय से हरी झंडी मिले, इसका कोई हल नहीं ढूंढा जा सका।

डब्ल्यूएचओ के मानक के मुताबिक जिले में आर्सेनिक युक्त पेयजल से करीब-करीब सभी जूझ रहे हैं लेकिन भारत के मानक के मुताबिक बलिया के 310 गांवों को आर्सेनिक प्रभावित चिह्नित किया गया है। इन गांवों में महामारी जैसी स्थिति है। सैकड़ों लोग आर्सेनिकजनित बीमारियों से जूझ रहे हैं, जबकि दर्जनों की मौत हो चुकी है।

मामले की गंभीरता को देखते हुए केन्द्र सरकार ने आर्सेनिक से निपटने के लिए स्थायी समाधान की दिशा में प्रयास शुरू किया। सरकार के निर्देश पर मई 2008 में जल निगम के मुख्य अभियंता (गोरखपुर) के नेतृत्व में यहां आयी टीम ने गंगा नदी के रामगढ़ व पचरूखिया के बीच तथा घाघरा नदी के चांदपुर व दतहां के बीच सतही स्रोत स्थापित करने की संस्तुति उत्तर प्रदेश शासन को दी थी। शासन ने रिपोर्ट को अपनी सहमति के साथ केन्द्रीय ग्रामीण विकास मंत्रालय को भेजा। करीब सात अरब की लागत वाली प्रस्तावित योजना जब मंत्रालय में पहुंची तो वहां से हैदराबाद की एक विशेष सर्वे टीम बलिया भेजी गयी। 10 मई 2008 को आयी इस टीम ने भी रामगढ़ व पचरूखिया के बीच गंगा में ‘इंटेक वेल व गंगा ‘ट्रीटमेंट प्लांट की मंजूरी दे दी।

इतना सब होने के बाद जब प्रस्ताव अंतिम रूप से ग्रामीण मंत्रालय को गया, तो उसने यह कहते हुए इसे नामंजूर कर दिया कि बलिया के लिए यह प्लांट उपयुक्त नहीं है। हालांकि सूत्रों की मानें तो केन्द्र सरकार इस योजना में प्रदेश सरकार की साझेदारी चाहती थी। ऐसा नहीं होने पर योजना खटाई में पड़ गयी।

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