बलियाः कटान की त्रासदी के बीच 'मुस्कराते रहो श्रीनगर'
महान साहित्यकार सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन अज्ञेय ने ‘मृत्यु से साक्षात्कार’ को विषय बनाकर मनुष्य के जीवन व उसकी नियति का बहुत ही कम शब्दों में मार्मिक व भव्य विवेचन अपने उपन्यास...
महान साहित्यकार सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन अज्ञेय ने ‘मृत्यु से साक्षात्कार’ को विषय बनाकर मनुष्य के जीवन व उसकी नियति का बहुत ही कम शब्दों में मार्मिक व भव्य विवेचन अपने उपन्यास ‘अपने अपने अजनबी’ में किया है। मृत्यु को सामने पाकर कैसे प्रियजन भी अजनबी हो जाते हैं और अजनबी पहचाने हुए। उपन्यास के मुख्य पात्रों ‘योके व सेल्मा’ के जरिए ही उन्होंने अपनी पूरी कहानी का ताना-बाना बुना है। अज्ञेय के इस उपन्यास की पृष्ठभूमि गंगा के कटान की विभीषिका झेल रहे बाढ़ पीड़ितों का दर्द देखने के बाद अनायास ही आंखों के सामने उभरने लगी। उपन्यास में बात बर्फ गिरने की है, जिसमें योके व सेल्मा फंसी हैं लेकिन यहां बाढ़ है, जिसमें हजारों परिवार अपने अस्तित्व के संकट से जूझ रहे हैं।
बाढ़ या कटान एनएच-31 के किनारे बसे गांवों के लिए कोई अचम्भे की बात नहीं है। शायद बाढ़ का न आना ही इनके लिए असाधारण बात होती है लेकिन दशकों से अपने पुश्तैनी मकानों में रह रहे लोगों ने यह सपने में भी नहीं सोचा होगा कि बाढ़ का कहर एक दिन यूं उनपर ही टूट पड़ेगा और वे इस कदर बेघर हो जाएंगे। केहरपुर गांव में इस समय चौतरफा धड़ाम-धड़ाम व छपाक की आवाजें ही सुनायी पड़ रही हैं। कोई खुद के हाथों अपना आशियाना तोड़कर उसके ईंट, चौखट-दरवाजा, खिड़की सुरक्षित कर रहा है तो किसी का पूरा का पूरा मकान गंगा की लहरों में समा रहा है।
छोटी सी नाव के सहारे केहरपुर में घूमते समय हम प्रभुनाथ ओझा के दरवाजे पर पहुंचे तो मकान को परिवार के लोग खुद ही तोड़ रहे थे। उनसे बात हो ही रही थी कि उनके पीछे रमाशंकर चौबे का आशियाना छपाक से लहरों की भेंट चढ़ गया। बगल में मकान तोड़ रहे मजदूरों का भी कलेजा कांप रहा था। कब कौन सा मकान नदी में विलीन हो जाएगा, कुछ ठिकाना नहीं था। प्रभुनाथ के घर के सामने अनिल ओझा व उनके बेटे भी गंगा की प्रलंयकारी लहरों से आंख मिलाते हुए अपनी तबाही का साक्षात्कार खुद ही करने को विवश दिखा।
इस विनाशलीला के बीच एक दीवाल पर लिखा एक स्लोगन ही शायद आपदा से लड़ रहे पीड़ितों को हौसला दे रहा था। ऊपर से हथौड़े व नीचे से गंगा की कहर झेल रहे दो मकानों के बीच में खड़े एक एएनएम सेंटर की दीवार पर लिखा स्लोगन ‘मुस्कराते रहो श्रीनगर’ कटान से जूझते लोगों की जीवटता को प्रमाणित कर रहा था। कटान की त्रासदी से कुछ ही दूरी पर दुर्गा पूजा के लिए बन रहे पंडाल, गीत-संगीत आदि की तैयारियां इसकी गवाही भी दे रही थी।