Lack of Subjects in Degree Colleges After 78 Years of Independence बोले बहराइच: एक ही महिला डिग्री कॉलेज, कैसे मिलेगी सभी छात्राओं को नॉलेज , Bahraich Hindi News - Hindustan
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बोले बहराइच: एक ही महिला डिग्री कॉलेज, कैसे मिलेगी सभी छात्राओं को नॉलेज

Bahraich News - आजादी के 78 वर्ष बाद भी जिले के डिग्री कॉलेजों में विषयों की कमी बनी हुई है। छात्र-छात्राओं को उच्च शिक्षा के लिए अन्य जिलों या लखनऊ जाना पड़ता है। महिला डिग्री कॉलेजों की संख्या भी बहुत कम है, जिससे...

Newswrap हिन्दुस्तान, बहराइचTue, 16 Sep 2025 04:58 PM
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बोले बहराइच: एक ही महिला डिग्री कॉलेज, कैसे मिलेगी सभी छात्राओं को नॉलेज

आजादी के 78 वर्ष बाद तमाम डिग्री कॉलेज खुले हैं, लेकिन उनमें विषयों की कमी है। एक ही डिग्री कॉलेज में कम कोर्सेज के अभाव में छात्र-छात्राओं को अन्य जिले या राजधानी लखनऊ जाना पड़ता है। आर्थिक रूप से सही हालात वाले युवक-युवतियां उच्च शिक्षा प्राप्त कर पाते हैं। अधिकांश कमजोर वर्ग के छात्र-छात्राओं के अभिभावक उनका खर्चा नहीं वहन कर पाते। यही नहीं जिले में महिला डिग्री कॉलेज तो न के बराबर है। जो कुछ महिला डिग्री कॉलेज खुले भी थे। छात्राओं की संख्या में कमी के कारण सह शिक्षा की राह पर चल पड़े। जिले के नानपारा स्थित एक डिग्री कॉलेज ने तो छात्र-छात्राओं का इस बार एडमिशन ही नहीं लिया है।

इसलिए इस डिग्री कॉलेज के भविष्य को लेकर लोगों में संशय पैदा हो गया है। जबकि छात्र-छात्राएं सोंच रहे हैं कि अब उन्हें उच्च शिक्षा के लिए रुपईडीहा या शहर जाना पड़ेगा। जिले की साक्षरता दर आज भी 50 फीसदी है। उसकी वजह जिले में उन्नत शिक्षा ढांचे की कमी रही है। माध्यमिक स्तर से निकले छात्र-छात्राओं को उच्च शिक्षा के लिए पूर्व में मुख्यालय स्थित किसान पीजी कॉलेज व महिला डिग्री कॉलेज ही थे। बाद में शिक्षा क्रान्ति में जागरूकता आई और जिले के तमाम तहसील स्तर के इलाकों में डिग्री कॉलेज खुले। उसके बावजूद तमाम डिग्री कॉलेज में सभी विषय नहीं हैं। छात्र-छात्राओं की बाध्यता है कि वह अपने रुचिकर विषय को लेकर जिला मुख्यालय स्थित डिग्री कॉलेज में प्रवेश लें। यहां भी सीटें निर्धारित हैं। वह सीटें पूरी होने पर छात्र-छात्राओं को अन्य जिले के डिग्री कॉलेजों की ओर जाना पड़ता है। सबसे दयनीय स्थिति महिला महाविद्यालयों को लेकर है। जिले में केवल एक मुख्यालय पर ही महिला डिग्री कॉलेज है। जिले के तमाम इलाकों में अनुदान प्राप्त महिला डिग्री कॉलेज खुले, लेकिन बाद में उन्हें सह शिक्षा में बदल दिया गया। अब हालात ये हैं कि ग्रामीण इलाकों में खुले डिग्री कॉलेजों में छात्राओं की कमी, वहीं दूसरी ओर तमाम अभिभावक आज भी ऐसे हैं जिनकी बेटियां उच्च शिक्षा ग्रहण करना चाहतीं, लेकिन उनके परिजन उन्हें सह शिक्षा वाले डिग्री कॉलेज में नहीं भेजना चाहते। तमाम छात्र-छात्राएं ऐसे हैं, जो लंबी दूरी तय कर उच्च शिक्षा लेने की स्थिति में नहीं हैं। यदि वह किसी प्रकार से प्रवेश भी ले लें और उन्हें जो छात्रवृत्ति मिलती है वह इतनी नहीं होती कि वे शहर में किराए पर कमरा लेकर शिक्षा ग्रहण कर सकें। रोजाना डिग्री कॉलेज सफर कर आना जाना हर छात्र-छात्रा के वश की बात नहीं है। शिक्षा व अनुशासन के मामले में जिला है अग्रणी : आबादी का घनत्व बढ़ने के साथ जिले में डिग्री कॉलेजों की संख्या बढ़ी है। लगभग 45 डिग्री कॉलेजों में लगभग 42 हजार छात्र-छात्राएं शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं। शहर के किसान पीजी कॉलेज में ही लगभग 5000 छात्र-छात्राएं शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं। जबकि छात्राओं की संख्या कम है। अनुशासन को लेकर किसान डिग्री कॉलेज की हमेशा चर्चा रही है। जिले में कभी भी ऐसी कोई घटना नहीं हुई जिससे जिला शर्मशार हो। तमाम डिग्री कॉलेजों में आए दिन रैगिंग, सीनियर छात्र-छात्राओं का जूनियर छात्र-छात्राओं से अभद्र व्यवहार की खबरें आती रहती हैं। उसकी एक वजह भी है। आजादी के बाद ठाकुर हुकुम सिंह ने शिक्षा संस्थाओं को लेकर महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। केडीसी में पूर्व प्राचार्य व सचिव मेजर डॉ.एसपी सिंह के अनुशासन को लेकर महत्वपूर्ण स्थान रखता है। विगत दिनों बीएड परीक्षा में विद्यालय के उड़ाका दल ने तीन साल्वरों को पकड़ा था। इससे समझा जा सकता है कि पठन-पाठन के मामले में केडीसी का एक अपना स्थान रहा है। यही वजह है कि इस महाविद्यालय में जिले के ही नहीं अन्य जिलों के छात्र-छात्राएं भी शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं। यही स्थिति शहर स्थित महिला डिग्री कॉलेज की रही है। पठन-पाठन के मामले में इसे भी छात्राओं की शिक्षा का अग्रणी स्थान माना जाता रहा है। एक मात्र महिला डिग्री कॉलेज होने की वजह से छात्राएं यहां प्रवेश पाने से वंचित रह जाती हैं। सामाजिक व सांस्कृतिक गतिविधयों में रहती है सहभागिता शहर के केडीसी व महिला डिग्री कॉलेज के छात्र-छात्राओं को एनएसएस के माध्यम से विभिन्न सामाजिक गतिविधियों में सहभागिता की जाती है। महिला डिग्री कॉलेज में छात्राओं को अतिरिक्त रूप से संगीत की शिक्षा भी दी जा रही है। साथ में प्रशिक्षित कोच छात्राओं को ताइक्वांडों का भी अभ्यास कराते हैं। जिन छात्राओं को इनमें रुचि है उन्हें इसके लिए किसी अन्यत्र नहीं जाना पड़ता है। केडीसी व महिला डिग्री कॉलेज में कम्प्यूटर की भी शिक्षा दी जा रही है। महिला डिग्री कॉलेज में होम साइंस व भूगोल विषय की मान्यता मिली है। शिक्षण कार्य भी शुरू हो गया है। किसान डिग्री कॉलेज में शिक्षण कार्य के अलावा एनसीसी की सुविधा है। केडीसी रंगमंच के लिए मशहूर रहा है। देश के नामचीन रंगकर्मियों ने यहां रिहर्सल व प्रस्तुति की है। अभी भी जिले की आबादी को देखते हुए यूनिवर्सिटी बनाए जाने की आवश्यकता को लोग हमेशा उठाते रहे हैं। लोग उम्मीद कर रहे हैं कि इस ओर सांसद व विधायक ध्यान देंगे। केडीसी हो या महिला डिग्री कॉलेज जिन मानकों में प्रयोगशाला होती है उतनी सुविधाएं छात्र-छात्राओं को मयस्सर नहीं हैं। पहले से काफी बेहतर प्रयास हुए हैं। प्रयोगशाला में प्रकाश, पेयजल आदि समस्या को दूर किया जा रहा है। महिला महाविद्यालय में स्ट्रीट लाइट, वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम की बड़ी आवश्यकता है। इसके अलावा यहां के छात्राओं की ओपेन जिम की मांग की जा रही है। इसके अलावा चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी की बड़ी कमी है। कई असिस्टेंट प्रोफेसरों के पद भी रिक्त हैं प्रस्तुति: प्रमोद सोनी,ध्रुव शर्मा, अनीस सिद्दीकी डिग्री कॉलेजों में अभी भी बना है विषयों का अभाव शहर स्थित किसान महाविद्यालय में स्थाना के बाद से तमाम विषय बढ़े हैं। शहर के रेडीमेड कपड़ा व्यवसाई भगवानदास लखमानी बताते हैं कि उन्हें एम कॉम करना था। शहर में तब ये व्यवस्था नहीं थी। इसके लिए उनको रिसिया स्थित गायत्री पीजी कॉलेज जाकर पढ़ाई करनी पड़ी। आज समय बदला है। पूर्व विधायक जटाशंकर सिंह व सचिव मेजर डॉ.एसपी सिंह ने अपने समय में तमाम कोर्से बढ़वाए हैं। अब यहां बीए, बीएससी, डी फार्मा, मिलिट्री साइंस आदि विषय पढ़ाए जाते हैं। छात्र-छात्राओं का कहना है कि अभी भी यहां बी फार्मा, एलएलबी, एडेड पॉलीटेक्निक, बीसीए, एमसीए, बी-टेक, एम-टेक आदि अभी भी सपना है। इसी प्रकार शहर के महिला महाविद्यालय में पूर्व प्रबंधक मदन लाल अग्रवाल के प्रयास से यहां विषय तो बढ़े लेकिन अभी भी सभी विषयों की पढ़ाई नहीं हो रही है। हालांकि महिला कॉलेज में एमएससी की सुविधा नहीं है। जनपद में नहीं है संगीत व महाविद्यालय जिला कृषि प्रधान है। यहां लगभग 5.50 लाख किसान हैं। जिनकी जीविका का स्रोत कृषि है। ऐसे में कृषि शिक्षा के जरिए तराई के विद्यार्थियों को उच्च शिक्षा ग्रहण करने के लिए एक भी महाविद्यालय नहीं है। ऐसे में कृषि माध्यम से पढ़ाई करने वाले छात्र-छात्राओं को गैर प्रांतों या फिर महानगरों में जाना पड़ रहा है। प्रगतिशील किसान जयंकर सिंह कहते हैं कि कृषि प्रधान जिले के अधिकांश छात्र-छात्राओं की रुचि कृषि शिक्षा की ओर बढ़ी है। लेकिन अन्य प्रांतों में जाने के लिए मजबूर होना पड़ता है। जबकि किसानों की स्थिति ऐसी नहीं है कि वे अपने बच्चों को दूर भेजकर शिक्षा ग्रहण करा सकें। जिले में महाविद्यालयों की बाढ़ आई हुई है, लेकिन कृषि शिक्षा की व्यवस्था कहीं नहीं है। यही हालात संगीत को लेकर है। प्रसिद्ध रंग कर्मी सरदार जसवीर सिंह का कहना है कि जिले में तमाम रंग कर्मी देश को दिए हैं। प्रसिद्ध रंग कर्मी जगदीश केसरी, राजेश मलिक, जय प्रकाश सिंह आदि शिखर पर रहे रंगकर्मियों को शहर इसलिए छोड़ना पड़ा कि जिले में संगीत का कोई महाविद्यालय नहीं है। भातखंडे लखनऊ या अन्य प्रांत में जाना पड़ता है। संगीत की उच्च शिक्षा का कोई केन्द्र न होने की वजह से नवोदित कलाकारों को शहर छोड़ना पड़ रहा है। सुझाव शहर में छात्राओं के कोचिंग सेंटरों के आस-पास पुलिस सुरक्षा की अत्यंत आवश्यकता है। ग्रामीण अंचलों में प्रत्येक तहसील स्तर पर एक महिला महाविद्यालय की स्थापना होनी चाहिए। जिले के सभी महाविद्यालयों में आधुनिक लैब बनाया जाना चाहिए जिससे प्रेक्टिकल में आसानी हो। महिला महाविद्यालय में प्रकाश का अभाव है स्ट्रीट लाइट लगाए जाने की आवश्यकता है। शहर स्थित महिला महाविद्यालय में असिस्टेंट प्रोफेसर व तृतीय श्रेणी कर्मचारियों की नियुक्ति हो। आपातकालीन स्थिति से निपटने के लिए महिला महाविद्यालय में वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम लगाने की जरूरत। शिकायतें कोचिंग सेंटरों के आस-पास शोहदे महंडराते रहते हैं कार्रवाई नहीं हो रही है। छात्र-छात्राओं के अनुपात में शहर में हॉस्टलों की कमी है। इसे पूरा नहीं किया जा रहा है। शहर के महाविद्यालयों में एलएलबी सहित प्रोफेशनल कोर्सेज नहीं चलाए जा रहे हैं। ग्रामीण इलाकों में महाविद्यालय सुनसान इलाके में हैं जबकि उन्हें बस्ती के आस-पास होना चाहिए। बाढ़ग्रस्त इलाकों में स्थित महाविद्यालयों की बाढ़ के चलते पढ़ाई बाधित होती है। तमाम महाविद्यालयों में बुनियादी विषयों की कमी से पढ़ाई बाधित हो रही है। इस क्षेत्र का इकलौता स्वायत्तशासी महाविद्यालय किसान पीजी कॉलेज है। 13 हजार से अधिक विद्यार्थी विभिन्न कक्षाओं में अध्ययनरत हैं। पाठ्यक्रम के साथ व्यावसायिक शिक्षा से छात्रों को जोड़ने का निरंतर प्रयास किया जा रहा है। डिजिटल लाइब्रेरी के माध्यम से छात्र-छात्राओं को विभिन्न लेखकों की आधुनिक पुस्तकें पढ़ने को मिल रही हैं। कई अन्य पाठ्यक्रम शुरू करने को लेकर भी औपचारिकताएं पूरी हो रही हैं। शिक्षा संस्था व अनुशासन महाविद्यालय की रीढ़ है। -प्रो. डॉ. विनय सक्सेना, प्राचार्य किसान पीजी कॉलेज जिले में एक भी संगीत महाविद्यालय नहीं है। रंगमंच या संगीत में रुचि रखने वाले प्रतिभागियों को लखनऊ या अन्य प्रांतों में जाना पड़ता है। जबकि जिले के तमाम वॉलीवुड, टॉलीवुड व रंगमंच पर अपनी प्रतिभा के जलवे बिखेरे हैं। सरदार जसवीर सिंह महाविद्यालयों में विधि की क्लास नहीं है। न ही महिला डिग्री कॉलेज में एलएलबी की पढ़ाईहोती है, जबकि रोजगार के क्षेत्र में महिलाओं में भी वकालत को लेकर ग्लैमर है। वकालत के क्षेत्र में महिलाओं को रोजगार के तमाम अवसर हैं। -अमन लखमानी जिले में एक संगीत महाविद्यालय की महती आवश्यकता है। इसकी मांग लगभग पांच दशक से हो रही है। शहर की तमाम संगीत की प्रतिभाएं अन्य प्रांत जाकर शिक्षा ग्रहण करने की स्थिति में नहीं है। इस ओर जिम्मेदारों को ध्यान देने की आवश्यकता है। -अनीषा सिंह महिला महाविद्यालय में अभी भी तृतीय श्रेणी के कर्मियों की कमी है। आठ के बजाए पांच ही कर्मी तैनात हैं। जिसकी वजह से शिक्षण कार्य प्रभावित होता है। रिक्त स्थानों पर नियुक्ति की जानी चाहिए। ताकि शिक्षण व्यवस्था प्रभावित न हो। -परमीत कौर तहसील स्तर पर महिला डिग्री कॉलेज की अत्यंत आवश्यकता है। जो महिला डिग्री कॉलेज खुले हैं वह भी सह शिक्षा में बदल गए हैं। ग्रामीण अंचल के अभिभावक छात्राओं को शिक्षा के लिए दूर भेजने से हिचकिचाते हैं। -जीनत

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