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बहराइच: परम्परागत उद्योगों को तकनीकों से मिल रहा नया आकार

भारतीय संस्कृति की विरासत व परम्परागत माटी कला उद्योग को नए तकनीकों की मदद से नया आकार मिल रहा है। कुम्हारों ने प्लास्टिक की टोटी वाले घड़ों को बनाकर खुद को बाजार में प्रतिस्पर्धी तो बनाया ही है, यह...

बहराइच: परम्परागत उद्योगों को तकनीकों से मिल रहा नया आकार
हिन्दुस्तान टीम,बहराइचTue, 19 May 2020 09:13 PM
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भारतीय संस्कृति की विरासत व परम्परागत माटी कला उद्योग को नए तकनीकों की मदद से नया आकार मिल रहा है। कुम्हारों ने प्लास्टिक की टोटी वाले घड़ों को बनाकर खुद को बाजार में प्रतिस्पर्धी तो बनाया ही है, यह घड़े बाजार की खूबसूरती भी बढ़ा रहे हैं। कोरोना संकट में जब चिकित्सकों ने फ्रिज के पानी को नुकसानदेह बताया, तो अमीर भी इन घड़ों के मुरीद हो गए।

कोरोना संकट ने सब कुछ बदलने के साथ ठण्डा पानी पीने का माध्यम भी बदल दिया। इस संकट से निपटने के लिए शहर की बाजारों में मिट्टी के घड़े बिकने शुरू हो गए हैं। इन घड़ों में प्लास्टिक की टोटी लगाकर इसे आकर्षक बनाने के साथ इसके प्रयोग को आसान भी बना दिया है। कोरोना से बचाव में फ्रिज के पानी तथा एसी के प्रयोग की भी मनाही है। इस बार जेठ का महीना चल रहा है लेकिन किसी न तो एसी उस तरीके से चलाए जा रहे हैं और न ही पिछले साल जैसी गर्मी ही पड़ रही है। फ्रिज के पानी को घातक बताए जाने के बाद से इस बार मिट्टी के बने घड़ों की बिक्री भी बढ़ गई है। घड़ा विक्रेता राजेश कुमार प्रजापति ने बताया कि अब तक वह लगभग तीस घड़ा बेच चुके हैंं।

उन्होंने बताया कि इसके खरीददार कमजोर आय वर्ग के नहीं बल्कि मोटर कार से चलने वाले हैं। अचानक घड़े के बढ़े क्रेज से राजेश काफी उत्साहित हैं। उनका कहना है कि हम लोगों का परम्परागत व्यवसाय कुम्हारी कला को डिस्पोजबल गिलास, दोना व पत्तल ने समाप्त कर दिया था। अब भला हो कोरोना का जिसने हमारे व्यवसाय के महत्व को लोगों को बताया।

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भारतीय परम्परा के पुन: विकसित होने के शुभ संकेत

बहराइच। माटी कला उद्योग में नए तकनीकों के प्रयोग व लोगों की पसंद बन रहे मिट्टी के आकर्षक घड़े भारतीय संस्कृिति के पुनर्विकसित होने की दिशा में शुभ संकेत है। चिकित्सक राकेश चौधरी का मानना है कि घड़े का पानी प्राकृतिक रूप से ठण्डा होता है जबकि फ्रिज का पानी कृत्रिम रूप से ठण्डा किया जाता है। हमारा शरीर प्राकृतिक पेय व खाद्य पदार्थ को सहर्ष स्वीकार करता है लेकिन अप्राकृतिक वस्तुओं का नकारात्मक परिणाम हमारे शरीर पर पड़ सकता है। ऐसे में व्यक्ति को प्राकृतिक वस्तुओं का ही सेवन करना चाहिए। कुल मिलाकर बाजारों में मिट्टी के घड़े की बिक्री ने यह स्पष्ट कर दिया है कि कोरोना संकट के दौरान हम तमाम भारतीय परम्पराओं को अपनाने के साथ ही पेयजल के माध्यम में अपनी पुरानी परम्परा को अपना लिया है।

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