बहराइच: मध्य यूपी की कवयित्रियों के बीच सेतु बनी रुचि मटरेजा
कवयित्री रुचि मटरेजा में बचपन से संगीत के प्रति अभिरुचि रही है। वह जुझारू युवती हैं और सामाजिक विसंगतियों से जूझती रही हैं। सामाजिक अथवा व्यवस्थागत खामियों के विरुद्ध वे हमेशा आवाज बुलंद करती रही...
कवयित्री रुचि मटरेजा में बचपन से संगीत के प्रति अभिरुचि रही है। वह जुझारू युवती हैं और सामाजिक विसंगतियों से जूझती रही हैं। सामाजिक अथवा व्यवस्थागत खामियों के विरुद्ध वे हमेशा आवाज बुलंद करती रही हैं। परिस्थितियों से समझौता करने के बजाय वह उसका डटकर मुकाबला करती रही हैं। उनके साथ आए अथवा नहीं, वे इतनी निडर हैं कि अपना कदम कभी पीछे नहीं हटातीं, समझौता करना तो उनके स्वभाव में ही नहीं है। महिलाओं पर होने वाले अत्याचार वह बर्दाश्त नहीं कर पातीं। उनके मन की पीड़ा कविता के रूप प्रवाहित होने लगती है।
रुचि मटरेजा का जन्म स्टेशन रोड स्थित हनुमान पुरी कालोनी में हुआ था। पंजाबी परिवार में जन्मी रुचि की मां कमलेश मटरेजा एक अच्छी भजन गायिका थीं। उनके पिता वेद प्रकाश अरोरा व्यवसाई हैं। संगीत उन्हें मां से विरासत में मिला था। बचपन से ही संगीत में उनकी रुचि थी, जो समय के साथ बढ़ती गई। रुचि में साहित्य के प्रति आकर्षित होने की कहानी बड़ी ही विचित्र है। तत्कालीन संगीत के मर्मज्ञ पं. पारस नाथ मिश्र भ्रमर के यहां वह सितार की शिक्षा लेने जाती थीं। शहर के और भी बच्चे वहां आते थे। एक दिन खत्री सभा का समारोह था, जिसमें चार पांच सौ लोगों का जमावड़ा था। कुछ कानपुर के मेहमान भी आए हुए थे।
गुरुवर भ्रमर जी ने उनसे कहा कि सितार पर राग सिन्दूरा बजाओ। इसके बाद मंच पर राग यमन गाना है। दो दिन रियाज के बाद कार्यक्रम प्रस्तुत किया। दूसरे दिन अखबार में पुरस्कार प्राप्त करते हुए फोटो छपी, साथ में लिखा था कि रुचि मटरेजा ने सबका मन मोह लिया। जब वह गुरु जी के यहां गईं, तो उन्होंने बताया कि तुम मशहूर हो गई हो, और तुम्हारा नाम मनमोहनी पड़ गया है। तुम्हें और सीखने की आवश्यकता है। यह सुनकर वह सन्न रह गईं। इसके फलस्वरूप 11 लाइन की कविता लिखकर प्रस्तुत कर दी। कविता पढ़कर वे बोले अच्छा तो तुम लिखती भी हो। अब तुम कविता भी लिखा करोगी। तब से उनके काव्य सृजन का सिलसिला चल पड़ा।
रुचि की पर्दा क्षणिकाएं देखिए
आंख का परदा, कान का परदा/मुंह का पर्दा, हालात पर परदा/परदे के पीछे इतना गन्द/ ढूंढते रह जाओगे दुनिया के रंग।
पृथ्वी का रंग भूरा, पत्तियों का रंग हरा/आकाश का रंग नीला, मनुष्य का रंग - रंग बदलू।
बेटी दिवस पर उनकी रचना: बेटी, बेटी परी होती है, पर हमेशा से डरी डरी होती है / जहां पैदा होती है, उसकी जड़ों का विस्तार होता है / तभी उसे उखाड़ कर, दूसरी जगह रोप दिया जाता है /विदा होते हुए भी खुशहाली रूपी चावल झोली में डाल जाती है/और जन्मे घर से उसे पराया कर दिया जाता है/ दुल्हन रूप में पुनः अपने जड़ों का विस्तार करती है/ पूरी जिंदगी निकल जाती है, पर क्या सुकून से रह पाती है/ अपने आपको को गुम कर, न ये घर अपना रह जाता है, और न वह घर अपना बनने दिया जाता है/ बेटी परी होती है, तभी तो हर परिस्थितियों में खरी होती है/ उसके हाथों में जादू की छड़ी जो होती है।
कोरोना काल में हो रही आन लाइन काव्य गोष्ठी
बहराइच। रुचि मटरेजा मंचीय कवयित्री हैं। कोरोना काल में सारे कार्यक्रम बन्द होने के कारण उन्होंने मध्य उत्तर प्रदेश के महिला काव्य मंच का गठन किया। जिसकी वह बहराइच ईकाई की अध्यक्ष हैं। मंच की ओर से होने वाली आन लाइन काव्य गोष्ठियों में प्रयागराज सहित मध्य उत्तर प्रदेश के विभिन्न जिलों की नामचीन कवयित्रियों को जोड़ कर उन्होंने काव्य सेतु का निर्माण किया है। इसके माध्यम से विभिन्न अवसरों पर आनलाइन काव्य गोष्ठियों का आयोजन किया जा रहा है। इसके साथ ही वे समाज सेवा से भी जुड़ी हुई हैं। जीविकोपार्जन के लिए वह अपना गारमेंट चला रही हैं। मंच से अर्पिता मिश्रा, रश्मि प्रभाकर, रुचि बंका, आंचल बंका, तमन्ना बहराइची, रंजन आदि कवयित्रियां जुड़ी हैं।