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बहराइच: खूंखार जानवरों के हमले में घायलों को नहीं मिलता समुचित इलाज

कतर्नियाघाट जंगल व उसके आस-पास के गांवों में आए दिन खूंखार जानवरों के हमले में लोग घायल हो रहे हैं। जंगली हमलों में घायल लोगों व अन्य को बेहतर स्वास्थ्य सुविधाएं मुहैय्या कराने के लिए क्षेत्र में एक...

कतर्नियाघाट जंगल व उसके आस-पास के गांवों में आए दिन खूंखार जानवरों के हमले में लोग घायल हो रहे हैं। जंगली हमलों में घायल लोगों व अन्य को बेहतर स्वास्थ्य सुविधाएं मुहैय्या कराने के लिए क्षेत्र में एक...
1/ 2कतर्नियाघाट जंगल व उसके आस-पास के गांवों में आए दिन खूंखार जानवरों के हमले में लोग घायल हो रहे हैं। जंगली हमलों में घायल लोगों व अन्य को बेहतर स्वास्थ्य सुविधाएं मुहैय्या कराने के लिए क्षेत्र में एक...
कतर्नियाघाट जंगल व उसके आस-पास के गांवों में आए दिन खूंखार जानवरों के हमले में लोग घायल हो रहे हैं। जंगली हमलों में घायल लोगों व अन्य को बेहतर स्वास्थ्य सुविधाएं मुहैय्या कराने के लिए क्षेत्र में एक...
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हिन्दुस्तान टीम,बहराइचTue, 29 Sep 2020 10:12 PM
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कतर्नियाघाट जंगल व उसके आस-पास के गांवों में आए दिन खूंखार जानवरों के हमले में लोग घायल हो रहे हैं। जंगली हमलों में घायल लोगों व अन्य को बेहतर स्वास्थ्य सुविधाएं मुहैय्या कराने के लिए क्षेत्र में एक सीएचसी व छह पीएचसी हैं, फिर भी लोगों को समुचित इलाज नहीं मिल पाता है। दवाओं व उपकरणों के अभाव में घायलों को मेडिकल कॉलेज रेफर किया जाता है। मेडिकल कॉलेज काफी दूर होने के कारण अक्सर लोगों की मौत भी हो जाती है।

मिहींपुरवा तहसील क्षेत्र में स्थित कतर्नियाघाट जंगल व उसके आस-पास के गांवों के ग्रामीणों पर आए दिन बाघ, तेंदुआ, मगरमच्छ के हमले होते रहते हैं। लोगों को स्वास्थ्य सुविधाएं देने के लिए तहसील क्षेत्र में एक सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्र व छह प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र हैं। सीएचसी को छोड़कर अन्य प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्रों पर एआरबी वैक्सीन की अक्सर किल्लत बनी रहती है। खूंखार जानवरों के हमले के बाद शरीर में जहर न फैले इसके लिए एआरबी वैक्सीन लगाई जाती है। सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्र में 7 डॉक्टर हैं। कर्मचारी भी पर्याप्त मात्रा में हैं। वहीं सभी छह प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्रों में एक-एक डॉक्टर की हैं। कर्मचारियों की भी कमी है। इससे स्वास्थ्य सेवाएं बेहतर नहीं मिल पा रही हैं। इसके अलावा सिर्फ सीएचसी में एक सर्जन की तैनाती है, किन्तु कोविड- 19 के कारण किसी का ऑपरेशन नहीं किया जा रहा है।

कतर्नियाघाट जिला मुख्यालय से 130 किमी दूर है। यहां एक प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र ,सिर्फ नाम मात्र के लिए है। यहां कोई इलाज नहीं मिल पाता है। वन्यजीवों के हमले के बाद कतर्नियाघाट से 60 किमी दूर घायलों को मिहींपुरवा रेफर किया जाता है। मिहींपुरवा में प्राथमिक इलाज के बाद फिर 65 किमी दूर मेडिकल कॉलेज बहराइच रेफर कर दिया जाता है। इस 130 किमी की दूरी में गंभीर घायलों की अक्सर मौत हो जाती है। जिनकी किस्मत अच्छी होती है उन्हीं को वन्य जीवों के हमले के बाद नई जिन्दगी मिलती है।

सात रेंज वाले कतर्नियाघाट जंगल में सुजौली के कारीकोट में व आम्बा न्याय पंचायत के 12 गांवों में सबसे ज्यादा वन्य जीवों के हमले होते हैं। इन गांवों की एक लाख जनसंख्या पर सिर्फ एक एम्बुलेंस है वह भी धक्का लगाने पर स्टार्ट होती है। जबकि पूरे क्षेत्र में चार एम्बुलेंस हैं, जिसमें 2 को जिला मुख्यालय स्थित कोविड-19 अस्पताल में लगाया गया है, जबकि दो से किसी तरह काम चल रहा है।

मगरमच्छ के हमले में घायल का काटा गया हाथ

बहराइच। चफरिया निवासी पवन कुमार ने बताया कि 13 सितम्बर को वह चफरिया नहर के किनारे मवेशी चरा रहा था। तभी नहर से निकले मगरमच्छ ने हमला कर एक हाथ चबा लिया था। उसे मेडिकल कॉलेज में भी अच्छा इलाज न मिलने पर ट्रामा सेंटर लखनऊ रेफर किया गया। कोरोना जांच आदि के कारण 15 सितम्बर तक इलाज नहीं मिला सका, इस बीच उसका हाथ सड़ गया और कीड़े पड़ गए। पीड़ित के परिजनों ने बताया कि इलाज न मिलने पर उसे ललखनऊ के इण्डिया हॉस्पिटल लेकर गए, जहां हाथ कटवाने के बाद 70 हजार रुपए इलाज में लग गए। रुपए खत्म होने पर डॉक्टरों ने अस्पताल से छुट्टी दे दी। अब लखीमपुर स्थित एक निजी अस्पताल में इलाज कराया जा रहा है, लेकिन वन विभाग व बहराइच स्वास्थ्य विभाग की तरफ से कोई सुविधा नहीं मिली। उन्होंने बताया कि ऐसे ही न जाने कितने लोग हैं, जो इलाज के अभाव में जिन्दगी मौत से संघर्ष कर रहे हैं।

मगरमच्छ के हमले में बालिका घायल

बहराइच। मोतीपुर रेंज के जालिमनगर गांव निवासी राधारानी पत्नी दयाराम की 11 वर्षीय पुत्री रोशनी नहर पार कर अपने खेत जा रही थी। तभी मगरमच्छ ने उस पर हमला कर दिया। बालिका ने शोर मचाने पर लोगों ने कड़ी मशक्कत के बाद मगरमच्छ से छुड़ाया। उसे सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्र मोतीपुर भर्ती कराया। परिजनों का कहना है कि अस्पताल में घायलों का ठीक से इलाज नहीं हो रहा है, जिससे बड़ी परेशानी हो रही है।

बाघ व तेंदुए के हमले में घायल हुए लोगों पर एक नजर

-21 सितम्बर- सुजौली के बर्दिया गांव निवासी 12 वर्षीय आफरीन पुत्री मैनुद्दीन परिजनों के साथ काम कर रही थी तभी जंगल से निकले बाघ ने अपना निवाला बना लिया।

25 सितम्बर- सुजौली के भोलापुरवा नौसरकोठी निवासी आठ वर्षीय सलोनी पुत्री रामजी अपने घर के सामने बैठी थी, तभी तेंदुए ने हमला कर उसे भी किया घायल

-27 सितम्बर- सेमरी घटही निवासी जनार्दन को अमृतपुर सिवरहा पुल के पास बाघ ने हमला कर किया घायल

कोट

मिहींपुरवा क्षेत्र में एक सीएचसी व 6 पीएचसी हैं। इनमें 13 डॉक्टरों की तैनाती है। सीएचसी में ऑपरेशन की सुविधा उपलब्ध है। वन्य जीवों के हमले में घायलों को एआरबी वैक्सीन लगाने के लिए पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध है। यहां चार एम्बुलेंस भी हैं।

डॉ.रोहित कुमार, सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्र मिहींपुरवा

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