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धूमधाम से मनाया धूप दशमी, श्री चौसठ ऋद्धि की हुई विधान

-अजितनाथ दिगंबर जैन प्राचीन मंदिर मंडी बड़ौत में दसलक्षण पर्व के सातवें दिन गुरुवार को धूपदशमी पर्व धूमधाम से मनाया गया। जैन श्रद्धालुओं के द्वारा...

धूमधाम से मनाया धूप दशमी, श्री चौसठ ऋद्धि की हुई विधान
हिन्दुस्तान टीम,बागपतFri, 17 Sep 2021 04:10 AM
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अजितनाथ दिगंबर जैन प्राचीन मंदिर मंडी बड़ौत में दसलक्षण पर्व के सातवें दिन गुरुवार को धूपदशमी पर्व धूमधाम से मनाया गया। जैन श्रद्धालुओं के द्वारा मंदिर में धूप चढ़ाई गई। उत्तम तप धर्म की पूजन की गई तथा श्री चौसठ ऋद्धि विधान का आयोजन किया गया।

विधानाचार्य द्वारा बोले गए दिव्य मंत्रों के मध्य इंद्रगणों ने जिनेन्द्र भगवान की प्रतिमा का प्रासुक जल से अभिषेक किया। शांतिधारा का सौभाग्य सोधर्म इंद्र सौरभ जैन को प्राप्त हुआ। नित्य नियम पूजन में समुच्चय पूजन, दसलक्षन पूजन,सोलहकारण पूजन,शांतिनाथ भगवान पूजन और नंदीश्वर दीप की पूजन की गई।संगीतकार अनुपमा जैन ग्वालियर के मधुर भजनों ने भक्तगणों को नाचने पर मजबूर कर दिया। उनके द्वारा गाए भजन बरसा दाता सुख बरसा,आंगन आंगन सुख बरसा को विशेष रूप से सराहा गया। श्री चौसठ ऋद्धि विधान की पूजन में सोधर्म इंद्र सौरभ जैन द्वारा जिनेन्द्र भगवान की अष्ट द्रव्यों से पूजन की गई और मांडले पर 108अर्ध समर्पित किए गए। पंडित चंद्रप्रकाश ग्वालियर ने उत्तम तप धर्म के विषय में ,विधान के मध्य प्रवचन दिया।उन्होंने कहा कि तप चाहे सुर राय कर्म शिखर को वज्र है। कहा कि इच्छाओं का निरोध, उन पर अंकुश लगाकर उन्हें शुभ की और परिवर्तित करना तप है।मन ,वचन , काय को एकाग्रचित करना तप है। विषय लोलुपता को त्यागकर ज्ञान,ध्यान की आराधना तप है।विनय,सेवा,स्वाध्याय और उपवास तप है।जिस प्रकार अग्नि ईंधन को भस्म करती है,उसी प्रकार तप की अग्नि कर्मो के ईंधन को भस्म करती है। मात्र तन की तपस्या जीवन को तमाशा और तन मन की तपस्या जीवन को तीर्थ बना देती है। विधान में मुकेश जैन, प्रदीप जैन,वरदान जैन,अमित जैन,अरुण जैन,संजय जैन,अशोक जैन,अनिल जैन,इंद्राणी जैन,त्रिशला जैन,रश्मि जैन,डिंपल जैन,सरला जैन आदि उपस्थित थे।

पर्यूषण माहपर्व सातवें दिन उत्तम तप धर्म किया अगिंकार

बड़ौत। श्री 1008 पाश्र्वनाथ मन्दिर कमेटी नेहरू रोड के तत्वावधान में जैन धर्म का महापर्व पर्वधिराज पर्यूषण महापर्व के सातवें दिन श्री 1008 पाश्र्वनाथ मन्दिर नेहरु रोड में तेरह द्वीप महामण्डल विधान के अंतर्गत पण्डित नेमचंद ने कहा कि आज पर्यूषण महापर्व का सातवें दिन उत्तम तप धर्म है उन्होंने कहा कि उत्तम तप सब माही बखाना, कर्म शैल को व्रज समाना,, जो साधक जो व्यक्ति उत्तम तप धर्म अपनाते हैं उनको उत्तम क्षमा जैसे गुण धर्म भी अपनाना अनिवार्य होता हैं तभी धर्म का स्वरूप सज पाता है। धर्म आत्मा में उतरता है अपनी इच्छाओं को समिति करना उन पर नियंत्रण करना भी तप है तथा तप भी वही साधक या व्यक्ति कर सकता है, जो अपनी इच्छाओं को नियंत्रित कर लेता है। तप का पालन मुनिराज समता पूर्वक धूप बारिश जाड़ा की परवाह किये बिना तप में लीन रह कर करते हैं उनके ही अनुसरण श्रावक भी यथा शक्ति अनुसार कर तप धर्म को अंगीकार करते है।

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