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रोडवेज की गाढ़ी कमाई में सेंध लगा रही प्राइवेट बसें

रोडवेज की गाढ़ी कमाई पर मिलीभगत से प्राइवेट बस संचालकों ने सेंध मारी कर दी है। इसके चलते रोडवेज को प्रतिमाह लाखों रुपए का नुकसान उठाना पड़ रहा है। सरकारी आदेशानुसार रोडवेज बस स्टैंड से 500 मीटर से लेकर...

रोडवेज की गाढ़ी कमाई में सेंध लगा रही प्राइवेट बसें
हिन्दुस्तान टीम,बदायूंSat, 22 Dec 2018 01:32 AM
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रोडवेज की गाढ़ी कमाई पर मिलीभगत से प्राइवेट बस संचालकों ने सेंध मारी कर दी है। इसके चलते रोडवेज को प्रतिमाह लाखों रुपए का नुकसान उठाना पड़ रहा है। सरकारी आदेशानुसार रोडवेज बस स्टैंड से 500 मीटर से लेकर दो किलोमीटर की दूरी तक कोई भी निजी बस स्टैंड नहीं होगा और न ही इस दूरी पर निजी बसों का संचालन होगा।

दूसरी ओर पुलिस व परिवहन विभाग की मिलीभगत के चलते रोडवेज बस स्टैंड के चारों ओर निजी बसों का जमावड़ा लगा रहता है। प्रतिमाह 60 लाख का नुकसानरोडवेज बस स्टैंड परिसर के बाहर निजी बसों के खड़े रहने और सवारियां उठाने के कारण रोडवेज को हर महीने करीब 60 लाख का आर्थिक नुकसान होता है। वहीं रोडवेज की आय प्रभावित होने से बसों का संचालन कम कर दिया गया है। इससे ग्रामीण क्षेत्रों के लोगों को ज्यादा तकलीफ होती है।जाम रहता है बस स्टैंड का प्रवेश द्वाररोडवेज बस स्टैंड के प्रेवश द्वार पर हमेशा ट्रैफिक का दबाव रहता है। इससे रोडवेज बसों को स्टैंड परिसर में जाने में दस से पंद्रह मिनट तक का समय लग जाता है।

जिन पुलिसकर्मियों को रोडवेज और यात्रियों की सुरक्षा के लिए तैनात किया गया है, वह तो निजी बसों में सवारियां बैठाने में खलासियों की मदद करने में लगे रहते हैं। लगता है कि इसके एवज में उन्हें सुविधा शुल्क मिलता है। इससे रोडवेज की आय पर विपरीत असर पड़ रहा है।आए दिन होती है मारपीटनियमों का खुला उल्लंघन करते हुए प्राइवेट बस ऑपरेटर अपनी बसों को रोडवेज के आसपास ही खड़ी करते हैं और सवारियों को जबरन बैठाते हैं। यह मारा-मारी खासतौर से बरेली की ओर जाने वाली बसों में रहती है।

सवारी के चक्कर में कई बार प्राइवेट और सरकारी कर्मचारियों के बीच मारपीट भी हो चुकी है। प्राइवेट बस चालकों का साथ पुलिस वाले और एआरटीओ के कुछ कर्मचारी भी दे रहे हैं।निजी बसों में नहीं होता बीमारोडवेज में बैठने वाले यात्रियों का बीमा होता है, लेकिन निजी बसों में यह सुविधा नहीं है। साथ ही रोडवेज में कई प्रकार की यात्रा में किराए में रियायत व नि:शुल्क यात्रा का भी प्रावधान है।कौन करे पार्सल की जांचनिजी बस संचालक सवारियों की सहुलियत की जगह एक से दूसरी जगह पार्सल पहुंचाने वालों को ज्यादा तरजीह दे रहे हैं। जो पार्सल आगे भेजा जा रहा है उसमें क्या सामान है और देने वाला कौन है इसकी कोई पूछताछ नहीं होती।

रास्ते में जांच या पकड़े जाने का भय भी नहीं रहता है। जिला मुख्यालय से चलने वाली लगभग सभी निजी बसों के चालक और परिचालक यह काम बिना किसी रोक-टोक के कर रहे हैं।गांव का परिमिट चलाते हैं रोडवेज के आगे-पीछेसरकार की नीति का लाभ उठाते हुए कई निजी बस संचालकों ने ग्रामीण मार्गों के परमिट जारी करा लिए, लेकिन वह अपनी बसें परमिट वाले ग्रामीण रूटों के बजाए ऐसे मुख्य मार्गों पर दौड़ा रहे हैं, जहां रोडवेज बसों का पर्याप्त संख्या में संचालन हो रहा है। इसका नुकसान सरकार व ग्रामीण दोनों को ही उठाना पड़ रहा है।

शिकायत की, कार्रवाई नहीं हुईप्राइवेट बस चालक रोडवेज के पास ही गाड़ी खड़ी कर सवारी भरते हैं। इन्हें रोडवेज परिसर से दूर करने के लिए कई बार पुलिस व आरटीओ को लिखित शिकायत की गइर्, लेकिन कोई कार्रवाई नहीं हुई। प्राइवेट बसों की वजह से आमदनी भी प्रभावित हो रही है। पुलिस वालों की मिलीभगत से प्राइवेट आपरेटर यह काम कर रहे हैं।प्रशासन गंभीर नहींनिजी बसों की मनमानी पर पुलिस और परिवहन विभाग को रोक लगानी चाहिए।

प्रशासन इस मामले को गंभीरता से नहीं ले रहा है, इस वजह से यह सब हो रहा है। निजी बसों में पहले किराया कम लेते हैं, ऐसे में रोडवेज घाटे से बंद हो जाती है, फिर मजबूरी में यात्रियों से अधिक किराया वसूला जाता है।

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