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हिन्दुस्तान मिशन शक्ति : मासूमों को बालिका वधू बनने से बचा रहीं समीक्षा

खुद न जाने कितने तूफानों से लड़कर अधिवक्ता बनीं समीक्षा मासूमों को बालिका वधू बनने से बचाती हैं। आमगांव की रहने वाली समीक्षा सुबोध शर्मा संघर्षो...

खुद न जाने कितने तूफानों से लड़कर अधिवक्ता बनीं समीक्षा मासूमों को बालिका वधू बनने से बचाती हैं। आमगांव की रहने वाली समीक्षा सुबोध शर्मा  संघर्षो...
1/ 3खुद न जाने कितने तूफानों से लड़कर अधिवक्ता बनीं समीक्षा मासूमों को बालिका वधू बनने से बचाती हैं। आमगांव की रहने वाली समीक्षा सुबोध शर्मा संघर्षो...
खुद न जाने कितने तूफानों से लड़कर अधिवक्ता बनीं समीक्षा मासूमों को बालिका वधू बनने से बचाती हैं। आमगांव की रहने वाली समीक्षा सुबोध शर्मा  संघर्षो...
2/ 3खुद न जाने कितने तूफानों से लड़कर अधिवक्ता बनीं समीक्षा मासूमों को बालिका वधू बनने से बचाती हैं। आमगांव की रहने वाली समीक्षा सुबोध शर्मा संघर्षो...
खुद न जाने कितने तूफानों से लड़कर अधिवक्ता बनीं समीक्षा मासूमों को बालिका वधू बनने से बचाती हैं। आमगांव की रहने वाली समीक्षा सुबोध शर्मा  संघर्षो...
3/ 3खुद न जाने कितने तूफानों से लड़कर अधिवक्ता बनीं समीक्षा मासूमों को बालिका वधू बनने से बचाती हैं। आमगांव की रहने वाली समीक्षा सुबोध शर्मा संघर्षो...
हिन्दुस्तान टीम,बदायूंSat, 02 Jan 2021 03:06 AM
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बदायूं। खुद न जाने कितने तूफानों से लड़कर अधिवक्ता बनीं समीक्षा मासूमों को बालिका वधू बनने से बचाती हैं। आमगांव की रहने वाली समीक्षा सुबोध शर्मा संघर्षो के बीच पली बढ़ी हैं। अब तक वह आठ-10 बाल विवाह होने से भी रुकवा चुकी हैं। साथ ही वह बालिका शिक्षा पर जोर देती हैं। अब तक वह 100 से अधिक बालिकाओं का स्कूलों में दाखिला करा चुकी हैं। समीक्षा जीवन में कितनी भी बाधाएं आएं उन सबसे लड़ते हुये आगे बढ़ने के लिये प्रेरित करती हैं। उन्होंने खुद संघर्ष किया है। उनकी पढ़ाई के लिये घर में रुपये नहीं थे तो पार्ट टाइम नौकरी कर खुद की पढ़ाई की। स्कूल जाते वक्त गांव के अराजकतत्व भी लड़की होने के नाते परेशान करते थे, इन सबका का भी सामना किया और उन्हें सबक सिखाया और एलएलबी तक की पढ़ाई की। आज वह अपराध पीड़ित बालिकाओं को न्याय दिलाने के साथ ही बालिका शिक्षा पर जोर दे रही हैं। समीक्षा कहती हैं कि जीवन में मुसीबत कितनी भी आयें हिम्मत नहीं हारना चाहिये, सामना करने पर जीत होती है।

स्कूल ड्रेस का काम कर 22 महिलाओं को जोड़ा

बदायूं।

बदायूं। शहर के कटरा ब्राह्मपुर की रहने वाली सरिता गांधी पति के निधन के बाद कुछ समय तक तो सदमे में रहीं, लेकिन यह सोचकर कि जब जीना है तो कुछ करना पड़ेगा, उन्होंने हिम्मत बटोरी। फिर रोजगार के लिए मार्केटिंग का काम चुन लिया। वह स्कूल ड्रेस तैयार कर सप्लाई करने का काम करती हैं। उन्होंने अपने इस कार्य में 22 और महिलाओं को जोड़ रखा है। वह कपड़ा देकर ठेके पर सिलाई का कार्य कराती हैं और इसके बदले में उन्हें तय रुपये देती हैं। सरिता को यह कार्य करते हुए करीब दो वर्ष हो गये हैं। वह कहती हैं कि हिम्मत नहीं हारना चाहिये। कोशिश के बल पर रुकी हुई जिंदगी की गाड़ी फिर चल पड़ती है। वह प्रधानमंत्री प्रचार प्रसार योजना से भी जुड़ी हैं। इसके माध्यम से सरकार की योजनाओं का बखान कर महिलाओं को लाभान्वित कराने का काम करती हैं।

सिलाई-कढ़ाई ने कल्पना के जीवन में भरा उजाला

सिलाई कढ़ाई कर महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाना पेशा चुन लिया है। इस कार्य में म्याऊ की शीतल कुमारी लगी हुयीं है। शीतल अब 60 महिलाओं एवं लड़कियों को सिलाई, कढ़ाई के कार्य में निपुण बना चुकी हैं।

शीतल श्री लक्ष्मी माता स्वयं सहायता समूह में अध्यक्ष की भूमिका निभा रही हैं। उन्होंने समूह के माध्यम से ड्रेस सिलकर स्कूलों में सप्लाई की। अब समूहों का गठन कराने के साथ ही इच्छुक महिलाओं के लिये फ्री में सिलाई, कढ़ाई सिखाती हैं। अब तक शीतल 10-12 समूहों का गठन करा चुकी हैं। वह कहती हैं कि महिलाओं का आत्मनिर्भर बनना बहुत जरूरी है। उन्होंने बताया कि समूह के माध्यम से मिलने वाले काम से घर की आजीविका चल रही है। पहले से परिवार की आर्थिक स्थिति मजबूत होती जा रही है।

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