बदायूं। समरेर के प्राथमिक विद्यालय दियोनी की प्रधानाध्यापिका स्वीटी निगम महिला सशक्तिकरण का मजबूत उदाहरण बन गयीं हैं। वह स्कूल में बच्चों को पढ़ाने के साथ महिलाओं के स्वाबलंबी बनाने पर जोर देती हैं। उनके द्वारा स्कूल की पढ़ाई से समय बचने के बाद महिलाओं और लड़कियों को सिलाई, कढ़ाई का कार्य सिखाया जाता है। इसके साथ घरों में बैठी लड़कियों को स्कूल में दाखिला दिलवातीं हैं साथ ही उन्हें पढ़ने के लिये किताबों संग जरूरी सामान खुद के वेतन से देती हैं। स्वीटी ने कटरी क्षेत्र के गांव में तैनाती के दौरान कक्षा पांच एवं आठ की पढ़ाई के बाद घर बैठ चुकी छात्राओं को आगे की पढ़ाई के लिये प्रेरित किया। अब तक करीब 60-70 ऐसी छात्राओं को उनके अभिभावकों को प्रेरित कर आगे की पढ़ाई के लिये समरेर एवं दातागंज के स्कूलों में दाखिला दिलाया। वह बतातीं हैं कि उन्होंने खुद की पढ़ाई भी आर्थिक समस्याओं के बीच की। ऐसे में वह लड़कियों की समस्याओं को अच्छे से समझती हैं। वह कहती हैं कि बेटी का शिक्षित होना बहुत जरूरी है। बेटी के शिक्षित होने से दो कुल में उजियारा होता है।
दूसरी महिलाओं के रोजगार को दिशा दे रहीं बबिता
छोटी सी आशा के साथ शुरू किये गये काम ने बबिता की जिंदगी बदल दी। यह संभव हुआ एनआरएलएम के जरिये जुड़कर। खुद को आर्थिक रूप से सबल बनाने के बाद आज बबिता दूसरी महिलाओं को रोजगार की दिशा में ले जाने का कार्य कर रही हैं।
बिसौली के गांव मलिकपुर की रहने वाली बबिता गुरू नानक स्वयं सहायता समूह से जुड़ी हुई हैं। उन्होंने सीआईएफ की धनराशि से 40 हजार लेकर गांव में दुकान खोल ली। इस दुकान से हर महीने घर बैठे आठ से 10 हजार रुपये की कमाई हो रही है। त्योहारी सीजन में आमदनी बढ़ जाती है। बबिता को जब समूह के माध्यम से रोजगार मिलना शुरू हो गया तो उन्होंने अन्य महिलाओं को भी समूह गठित कराना शुरु कर दिया। वह अब तक करीब 12 समूहों का गठन करा चुकी हैं। दुकान पर सेल्समैन तैनात किए हैं। बबिता कहती हैं कि जब से दुकान खोली है तब से तरक्की होनी लगी है।
खुद कक्षा पांच पढ़ीं, दूसरों के लिये कर रही जद्दोजहद
बदायूं। कहने के लिये तो अंगूरवती कक्षा पांच पास हैं, लेकिन वह महिलाओं को रोजगार की राह दिखाने का कार्य कर रही हैं। उनके द्वारा गांव की महिलाओं के लिये सरकारी योजनाओं का लाभ दिलाने का प्रयास किया जाता है। जरूरत पड़ने पर महिलाओं के साथ खुद भी सरकारी दफ्तरों में जाती हैं।
उझानी के गांव गुराई की रहने वाली अंगूरवती की आर्थिक स्थिति खराब थी, इसी बीच किसी ने समूह से जुड़ने की सलाह दी। वह राधे-राधे स्वयं सहायता समूह से जुड़ गयीं और इससे रकम लेकर ऑटो खरीद लिया। अब वह ऑटो चलवाकर परिवार की आजीविका चला रही हैं। जब से उनकी आजीविका का जरिया बना है तब से उन्होंने अन्य महिलाओं को भी सशक्त बनाने का काम शुरू कर दिया है। अंगूरी बबाती हैं कि वे महिलाओं के लिये उनके हित में संचालित सरकारी योजनाओं का लाभ दिलाने का कार्य करती हैं। वह अब तक मदद कर पंजाब नेशनल बैंक के प्रशिक्षण संस्थान आरसेटी से 50 से अधिक महिलाओं को ब्यूटीशिएन एवं डेयरी फार्मिंग की ट्रेनिंग करा चुकी हैं।