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अमरोहा-से...आधी आबादी की आर्थिक तरक्की की नई उम्मीद

कोरोना महामारी के जिस दौर में वैश्विक स्तर पर आर्थिक संकट गहरा रहा है ठीक उसी वक्त अमरोहा में आधी आबादी ने आर्थिक तरक्की का नया रास्ता खोला है।...

अमरोहा-से...आधी आबादी की आर्थिक तरक्की की नई उम्मीद
हिन्दुस्तान टीम,अमरोहाFri, 23 Oct 2020 03:10 AM
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अमरोहा। कार्यालय संवाददाता

कोरोना महामारी के जिस दौर में वैश्विक स्तर पर आर्थिक संकट गहरा रहा है ठीक उसी वक्त अमरोहा में आधी आबादी ने आर्थिक तरक्की का नया रास्ता खोला है। अमरोहा-से नाम की स्वयं सहायता समूह से जुड़ीं 31 महिलाओं ने तीन महीने में आठ हजार से ज्यादा मास्क बनाकर लाखों का कारोबार किया। बचत हुई तो मुश्किल वक्त में अपनी गृहस्थी को अच्छे से चलाने की पूरी जिम्मेदारी भी उठाई।

महिलाओं को स्वावलंबी और आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में अमरोहा-से स्वयं सहायता समूह बड़ी मिसाल बना है। हुनरमंद महिलाओं के हुनर को जरूरी संसाधनों के बल पर लगातार तराशने की कवायद यहां जारी है। समूह से जुड़ी महिलाओं के उत्पादों को बाजार तक पूरी ब्रांडिंग के साथ पहुंचाने की कुशल रणनीति ने पूरी मुहिम और पहल को लॉकडाउन के बुरे वक्त में भी चार चांद लगा दिए। लॉकडाउन के चलते जहां हर कोई कारोबार छिन जाने की उलझन में उलझा था तब इन महिलाओं ने निराशा के भंवर से बाहर निकलने के लिए अनूठी पहल की। वर्क फार्म होम का पालन किया और घर पर ही पारिवारिक जिम्मेदारियों के साथ मास्क बनाने में जुट गईं। तीन महीने में करीब आठ हजार मास्क 31 महिलाओं ने तैयार किए। इसमें लागत आई 11 रुपये से 14 रुपये तक प्रति पीस और मुनाफा हुआ तीन से पांच रुपये। सोशल मीडिया के जरिए समूह और उससे जुड़ीं महिलाओं के प्रयास की गूंज देश के कोने-कोने में गूंज गई। नतीजा अमरोहा के अलावा दिल्ली जैसे दूर स्थानों से भी सामाजिक संगठनों ने उनसे मास्क खरीद को तरजीह दी। देखते ही देखते स्टॉक क्लीयर हो गया। कामयाबी से उत्साहित महिलाओं ने इसके बाद अपने सामाजिक दायित्वों का निर्वहन करते हुए शहर की झुग्गी-झोपड़ियों में भी फ्री मास्क बांटे। समूह से जुड़ी लीना यादव, खुशनुमा, नेहा, रुकैय्या, लता, सावित्री आदि महिलाएं कहती हैं कि हर इंसान में कोई न कोई हुनर छुपा है। उसको पहचान कर कोई भी व्यक्ति बुरे वक्त में भी अपनी किस्मत को खुद बुलंद कर सकता है। समूह स्तर पर एक साथ किए गए प्रयासों के जरिए नतीजे जल्द और बेहतर मिलने की बात कही। फिलहाल शहर की हुनरमंद महिलाओं की ये कोशिश अब हर किसी के लिए मिसाल बनी है।

इंसेट :

छात्राओं से लेकर बुजुर्ग महिलाओं तक सबने थामी उम्मीद की डोर

अमरोहा। समूह में 18 वर्ष की छात्राओं के साथ ही 75 वर्षीय बुजुर्ग महिला तक शामिल हैं। भविष्य की संभावनाओं पर चर्चा करते हुए सभी कहती हैं कि आने वाले वक्त में अपने ऐसे प्रयासों को वह और ज्यादा धार देंगी। खुद के हाथ से जुड़े हर एक हुनर को सबके सामने लाएंगी। आर्थिक सशक्तिकरण की अलख अपने जैसी दूसरी महिलाओं के बीच जगाने को ही लक्ष्य बताया।

अमरोहा-से...मतलब कुछ कहना चाहता है अमरोहा

अमरोहा। समूह से जुड़ी महिलाएं अमरोहा-से नाम के पीछे भी बड़ा तर्क देती हैं। कहती हैं इस नाम के जरिए वह कहना चाहती हैं कि अमरोहा और उसकी आधी आबादी पूरी दुनिया से कुछ कहना चाहती है और कहना सिर्फ यही है कि मुश्किलों को पार करने से जुड़े रास्ते बेहद आसान होते हैं, बशर्ते आपका दृष्टिकोण पूरी तरह साफ हो।

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