The Importance of Ramlila in Ambedkarnagar Challenges and Cultural Significance बोले अम्बेडकरनगर-जरूरी संसाधनों से जूझ रहीं हैं कई रामलीला समितियां, Ambedkar-nagar Hindi News - Hindustan
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बोले अम्बेडकरनगर-जरूरी संसाधनों से जूझ रहीं हैं कई रामलीला समितियां

Ambedkar-nagar News - अम्बेडकरनगर जिले में रामलीला का आयोजन ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में बड़े पैमाने पर होता है। कलाकारों की कमी और आर्थिक दिक्कतों के बावजूद लोग अपनी परंपरा को बनाए रखने के लिए प्रयासरत हैं। कई समितियों...

Newswrap हिन्दुस्तान, अंबेडकर नगरMon, 29 Sep 2025 05:26 PM
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बोले अम्बेडकरनगर-जरूरी संसाधनों से जूझ रहीं हैं कई रामलीला समितियां

जिले में रामलीला की महत्ता अभी भी कायम है। ग्रामीण व शहरी दोनों क्षेत्रों में रामलीला जैसी परंपरा को सहेजने व उसके आदर्शों को आत्मसात करने के लिए अलग अलग समय पर मंचन होता है। हालांकि व्यावहारिक तौर पर कई दिक्कतें भी इसमें पेश आती हैं। एक तरफ जहां कलाकारों का अभाव होता जा रहा है तो वहीं आर्थिक तौर पर मुश्किलें आयोजन में व्यवधान उत्पन्न करती हैं। ग्रामीण क्षेत्र में अभी भी चंदा व पदाधिकारियों के सहयोग से रामलीला का आयोजन हो रहा है। सरकारी स्तर पर आर्थिक मदद समितियों के पदाधिकारियों को नहीं मिलता है। कई समितियां तो ऐसी हैं, जो जरूरी संसाधनों से जूझ रही हैं।

स्थानाभाव के चलते कई स्थानों पर रामलीला का मंचन ही बंद हो गया। मंचन में भाग लेेने वाले कलाकारों को न तो सम्मानित किया जाता है और न ही उन्हें मंचन के बदले धनराशि ही मिलती है। कई स्थानों पर रामलीला मंच न उपलब्ध होने के चलते वैकल्पिक व्यवस्था कर मंचन कार्य किया जाता है। जहां तक सुरक्षा व्यवस्था की बात है तो शहरी क्षेत्र में पुलिस की तैनाती रहती है, लेकिन ज्यादातर ग्रामीण क्षेत्रों में ऐसा कुछ भी देखने को नहीं मिलता है। अम्बेडकरनगर। जिले में रामलीला की धूम अभी भी बरकरार है। प्रत्येक वर्ष अलग अलग समय पर गांवों व शहरों में मंचन का दौर चलता है। कलाकार अपनी कला से दर्शकों का खूब मनोरंजन भी करते हैं। लेकिन जरूरी संसाधन न होने से उन्हें मुश्किलें भी खूब झेलनी पड़ती है। फिर भी अपनी परंपरा को सहेजने की उत्सुकता कलाकारों को प्रेरित करती हैं। रामलीला का आयोजन जिले में बड़े पैमाने पर होता है। इसका दौर भी शुरू हो चुका है। नगर के गांधीनगर के अलावा मालीपुर, जलालपुर नगर समेत कई अन्य स्थानों पर मौजूदा समय में रामलीला का मंचन किया जा रहा है। कलाकार अपनी कला के जरिए दर्शकों का मनोरंजन करते हैं। हालांकि मंचन में जरूरी संसाधनों का अभाव उन्हें परेशान भी करती हैं। कई समितियां तो ऐसी हैं, जहां कलाकारों के लिए पर्याप्त डे्रस ही उपलब्ध नहीं होते हैं। अन्य जरूरी सामान भी नहीं होते हैं। ऐसे में उन्हें वैकल्पिक व्यवस्था के जरिए मंचन कार्य करना पड़ता है। इसके अलावा कई स्थानों पर स्थाई तौर पर कोई मंच नहीं होता है। जिस पर रामलीला का मंचन किया जाए। ऐसे में समिति के लोग वैकल्पिक व्यवस्था करते हैं। इसके बाद भी रामलीला का आयोजन हो पाता है। चंद्रलोक रामलीला समिति के पदाधिकारी आनंद तिवारी कहते हैं कि रामलीला मंचन की प्रसांगिकता अभी कम नहीं हुई। लेकिन आर्थिक तंगी के चलते रामलीला मंचन में अब कठिनाई होती है। यदि इसके लिए कोई मदद सरकार की तरफ से मिले तो कलाकारों को भी प्रोत्साहन मिलेगा, साथ ही मंचन में आर्थिक दिक्कत भी पेश नहीं आएगी। फिलहाल जो भी हो, लोग अपनी परंपरा को संजोए रखने के लिए उत्सुक रहते हैं। जिससे रामलीला मंचन हो पाता है। रामलीला मंचन से दूर होती जा रही युवा पीढ़ी:रामलीला का आयोजन तो हो रहा है, लेकिन कलाकारों के अभाव के चलते खासी परेशानी भी हो रही है। युवा पीढ़ी ऐसे कार्योंे में कोई खास दिलचस्पी नहीं दिखाती है। कुछ युवा मंचन कार्य में भाग तो लेते हैं, लेकिन प्रत्येक वर्ष उनकी उपस्थिति नहीं होती है। ऐसे में पुराने लोगों को ही मंचन की जिम्मेदारी सम्हालनी पड़ रही है। मौजूदा दौर में युवा पीढ़ी रामलीला मंचन से नहीं जुड़ पा रही है। कारण यह कि ज्यादातर युवा रोजी रोटी के लिए अलग अलग प्रदेशों में निवास करते हैं तो तमाम युवा पढ़ाई लिखाई के चक्कर में महानगरों में रहते हैं। दूसरा कारण यह कि जो युवा मंचन कार्य से जुड़ते भी हैं, उन्हें न तो वेतन के तौर पर कोई राशि मिलती है और न ही अन्य प्रोत्साहन। ऐसे में उनका भी मनोबल कम हो जाता है, जिससे वे मंचन में रुचि नहीं दिखाते हैं। ऐसे में सारी जिम्मेदारी पुराने लोगों पर रहती है। उन्हें मंचन का कार्य सम्हालना पड़ता है। नतीजा यह है कि कई समितियां कलाकारों के अभाव के चलते अब अयोध्या, वाराणसी व मथुरा से टीमें बुलाकर रामलीला का मंचन कराती हैं। हालांकि इसमें पैसा भी खूब लगता है। लेकिन मजबूरन उन्हें किसी न किसी प्रकार से व्यवस्था करना पड़ता है। बहोरिकपुर रामलीला समिति से जुड़े प्रदीप श्रीवास्तव, भूपेंद्र मोहन कहते हैं कि रामलीला मंचन को लेकर उत्सुकता तो रहती है। लेकिन कलाकारों के अभाव के चलते एक ही व्यक्ति को पूरे रामलीला में कई पात्रों का रोल अदा करना पड़ता है। ऐसे में लोग पीछे हट जाते हैं। युवाओं को प्रोत्साहित तो किया जाता है, लेकिन वे मंचन कार्य में रुचि नहीं दिखाते हैं। कलाकारों के अभाव में कई रामलीला समितियां सात दिन की बजाए अब तीन दिन ही मंचन कार्य करती हैं। सरकारी स्तर पर समितियों को नहीं मिलता आर्थिक मदद अम्बेडकरनगर। रामलीला मंचन को आगे ले जाने में समितियों को सरकारी स्तर पर कोई आर्थिक सहयोग नहीं मिलता है। ग्रामीण क्षेत्रों में तो समिति के लोग चंदा लगाने के साथ ही कई जनप्रतिनिधियों से मदद लेते हैं। इसके बाद ही मंचन का कार्य पूरा हो पाता है। यदि सरकारी स्तर पर कोई सहयोग मिले तो बात बने। जिले के ग्रामीण व शहरी क्षेत्रों में रामलीला का मंचन होता है। अकबरपुर नगर के अलावा, टांडा, जलालपुर, मालीपुर, जहांगीरगंज की बाजारों व गांवों में रामलीला का मंचन किया जाता है। इसके अलावा बसखारी का भरत मिलाप का आयोजन काफी दूर तक प्रसिद्ध है। हालांकि कई समितियां ऐसी हैं, जिन्हें प्रत्येक वर्ष आर्थिक तौर पर जूझना पड़ता है। शासन प्रशासन की तरफ से उन्हें कोई मदद नहीं मिलता है। इससे काफी परेशानी होती है। हालांकि कई प्रतिनिधि रामलीला में पहुंचकर सहयोग करते हैं, लेकिन वह भी काफी नहीं होता है। सामाजिक कार्यकर्ता मनोराम मिश्र कहते हैं कि रामलीला जैसी परंपरा को कायम रखने के लिए सरकार को आर्थिक सहयोग करना चाहिए। इसके लिए भी एक पैकेज घोषित किया जाना चाहिए। जिससे रामलीला का मंचन होता रहे। साथ ही कलाकारों को भी प्रोत्साहित करने के लिए उन्हें आर्थिक मदद देनी चाहिए। इससे यह परंपरा कायम रहेगी। स्थानाभाव के चलते मंचन कार्य में होती है दिक्कत:रामलीला मंचन में एक बड़ी समस्या स्थान को लेकर भी है। कई स्थानों पर जहां पहले रामलीला का मंचन होता था, वह निजी भूमि होने के चलते वहां घर बन गए हैं। ऐसे में मंचन को लेकर दिक्कतें खासी मुश्किलें होती हैं। कुछ समितियों ने तो स्थानाभाव के चलते मंचन कार्य ही बंद कर दिया। रामलीला की धूम अभी गांवों में बरकरार है। प्रत्येक वर्ष अलग अलग समय पर रामलीला का दौर चलता है। इसके बाद बाकायदा मेले का आयोजन कर रावण के पुतला का दहन भी किया जाता है। हालांकि कई समितियों के पास न तो स्थाई तौर पर कोई मंच है और नही पर्याप्त स्थान। ऐसे में उन्हें रामलीला मंचन करने में खासी दिक्कतें होती हैं। दूसरी तरफ कुछ गांवों में रामलीला का मंचन जहां पहले होता था, वह निजी भूमि होने के चलते वहां अब मकान बना लिए गए हैं। कुछ गांव ऐसे भी हैं, जहां रामलीला का आयोजन ही इसीलिए बंद हो गया कि उनके पास पर्याप्त स्थान ही नहीं है। बाल रामलीला समिति के मनोज व दिवाकर कहते हैं कि प्रशासन को जहां जहां रामलीला मंचन के लिए मंच उपलब्ध नहीं है, वहां मंच की व्यवस्था करें। साथ ही आर्थिक मदद भी दिलाएं, जिससे यह परंपरा अनवरत चलती रहे। समय के साथ बदल चुका है मंचन का स्वरूप:रामलीला में भगवान राम के चरित्रों का मंचन होता है। हालांकि अब रामलीला मंचन का स्वरूप पहले से कहीं बदल चुका है। अब नए नए तौर तरीकों से मंचन कार्य किया जाता है, जिसका दर्शक भी भरपूर आनंद लेते हैं। रामलीला मंचन का स्वरूप पहले से कहीं अधिक बदल चुका है। पहले जहां सीमित संसाधनों में रामलीला का मंचन होता था, वहीं अब संसाधनों का दायरा तो बढ़ा ही है, कई अन्य बदलाव भी हुए हैं। पहले लाइट के लिए पेट्रोमैक्स का सहारा लिया जाता था। साज सजावट भी इतने बेहतर नहीं होते थे। कलाकारों के पास वस्त्र भी सीमित होते थे। मनोरंजन के नाम पर चंद डांसर निर्गुण गीतों से लोगों को मनोरंजन करते थे। हालांकि बदलते दौर में अब सब कुछ अपडेट हो गया है। अब साज सजावट के नाम पर ही हजारों रुपये खर्च कर दिए जाते हैं। प्रकाश व्यवस्था के नाम पर हाइलोजन व अन्य लाइटें लगाई जाती हैं। कलाकारों के साज सजावट के लिए जरूरी संसाधनों के साथ ही वस्त्र भी बेहतर होते हैं। जिससे मंचन का आकर्षण तो बढ़ता ही है, साथ ही दर्शक भी उत्साहित होते हैं। नगर के बुजुर्ग गोकुल वर्मा व हरीराम सिंह कहते हैं कि पहले के दौर में किसी तरह से रामलीला का मंचन हो जाना बड़ी सफलता होती थी, लेकिन अब तो बहुत कुछ बदल चुका है। बोले लोग-- रामलीला मंचन जिले में बड़े पैमाने पर होता है। कलाकार अपनी कला से दर्शकों का खूब मनोरंजन करते हैं। हालांकि कई जरूरी संसाधनों की उपलब्धता न होने से मंचन कार्य में बाधा उत्पन्न होती है। फिर भी किसी तरह से लोग अपनी परंपरा को जीवंत रखने के लिए अपने उत्साह को कायम रखे हुए हैं। -अमन कुमार झा कुछ समितियां तो ऐसी हैं, जिनके पास कलाकारों के लिए पर्याप्त वस्त्र व अन्य जरूरी संसाधन उपलब्ध नहीं होते हैं। इससे दिक्कतें पेश आती है। फिर भी कलाकार अपनी कला से मंचन को जीवंत बनाए रखते हैं। यदि इसमें सामाजिक संस्थाएं कुछ मदद करें तो बेहतर रहेगा। इसके लिए उन्हें आगे आना चाहिए। -रामकुमार मंचन का स्वरूप अब पहले से कहीं ज्यादा बदल चुका है। जिससे दर्शकों का भी आकर्षण रामलीला के प्रति बढ़ा है। हालांकि कलाकारों को ऐसे किसी बड़े मंच पर सम्मानित नहीं किया जाता है, जिससे उनका मनोबल बढ़े। प्रशासन को चाहिए कि बेहतर रोल निभाने वाले कलाकारों को सम्मानित जरूर करे। -दीपक कई स्थानों पर अब रामलीला का मंचन ही बंद हो गया है। इसके पीछे आर्थिक कारण तो है ही, साथ में कलाकारों का अभाव व व्यवस्थाओं को सम्हालने वाले जिम्मेदारों की कमीं है। जिसके चलते मंचन नहीं होता है। हालांकि अपनी परंपरा को जीवंत रखने के लिए ऐसे आयोजन का होना अत्यंत जरूरी है। -किशन यादव कलाकारों के अभाव के कारण कई स्थानों पर अयोध्या व वाराणसी से टीमें रामलीला मंचन के लिए आती हैं। जिससे दर्शकों की भी खूब भीड़ होती है। बाहर से आने वाली टीम को पैसे भी ज्यादा देना पड़ता है। जो हर समिति वहन नहीं कर सकती है। -अभिजीत चतुर्वेदी सरकार को चाहिए कि रामलीला मंचन के लिए एक कोष निर्धारित करे। जिससे न सिर्फ मंचन कार्य में समितियों को सहयोग दिया जाए बल्कि कलाकारों को भी आर्थिक मदद मिल सके। ऐसा होने से रामलीला आयोजन को बल मिलेगा, साथ ही कलाकारों व समिति पदाधिकारियों का भी मनोबल बढ़ेगा। -संजय चतुर्वेदी बोले जिम्मेदार- जिले में रामलीला का मंचन कई स्थानों पर होता है। वहां व्यवस्थाओं को दुरुस्त कराया जाता है। साफ सफाई कराने के साथ ही अन्य व्यवस्थाओं को चाक चौबंद किया जाता है। सुरक्षा व्यवस्था भी उपलब्ध कराई जाती है। जिससे कोई दिक्कत न हो। समितियों की जो भी मांग होती है, उसे ध्यान में रखकर निर्णय लिए जाते हैं। -डॉ सदानन्द गुप्ता, एडीएम, वित्त एवं राजस्व

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