12 साल बाद साहित्यकार संसद ने जीती कानूनी लड़ाई
साहित्यकार संसद ने बारह वर्ष बाद कानूनी लड़ाई जीत ली है। कोर्ट ने भवन खाली करने का सरकारी नोटिस निरस्त कर...
साहित्यकार संसद ने बारह वर्ष बाद कानूनी लड़ाई जीत ली है। कोर्ट ने भवन खाली करने का सरकारी नोटिस निरस्त कर दिया। यह आदेश अपर जिला जज निदेश चन्द्र ने साहित्यकार संसद तथा उसके जनरल सेक्रेटरी प्रद्युम्ननाथ तिवारी करुणेश के द्वारा पेश अपील पर उनके तथा सरकार के पक्ष की दलीलों को सुनकर दिया।
कोर्ट ने 5 अक्टूबर 2006 को प्रभारी अधिकारी राजकीय आस्थान के द्वारा साहित्यकार संसद भवन को खाली करने का नोटिस निरस्त कर दिया। कोर्ट ने कहा कि सरकारी पक्ष की ओर से नगर नियोजन एक्ट के तहत नोटिस जारी किया गया है। इसी आधार पर भवन खाली करने को कहा है जबकि यह भवन पुराना बना हुआ है और विकास कार्य में बाधा बन रहा अवैध निर्माण नहीं है।
कोर्ट ने सरकार को सलाह दी है कि यदि वह चाहे तो सार्वजनिक परिसर में अवैध कब्जेदारी बेदखली एक्ट के तहत कार्रवाई कर सकती है।
यह है मामला
रसूलाबाद मेंहदौरी उपरहार में साहित्यकार संसद स्थित है। इसे सार्वजनिक भूमि कहते हुए राजकीय आस्थान प्रभारी ने खाली करने का नोटिस जारी किया था। संसद द्वारा कहा गया कि उसे नोटिस नहीं दिया बल्कि प्रद्युम्ननाथ तिवारी को ही नोटिस दिया गया है। सरकारी अभिलेख में साहित्यकार संसद का नाम ही दर्ज है जो 1941 में बनाया गया। अध्यक्ष मैथिलीशरण गुप्त थे। महादेवी वर्मा, हजारी प्रसाद द्विवेदी, माखन लाल चतुर्वेदी, सूर्यकांत त्रिपाठी निराला, इन्द्रजीत जोशी आदि साहित्यकार इससे जुड़े रहे हैं।