Hindi NewsUP Newsअलीगढ़Teachers are angry over the compulsion of TET
टीईटी की बाध्यता पर शिक्षकों में आक्रोश

टीईटी की बाध्यता पर शिक्षकों में आक्रोश

संक्षेप: शिक्षक पात्रता परीक्षा (टीईटी) को लेकर दिए गए फैसले से शिक्षकों में भारी रोष है। शिक्षकों के लिए तय की गई टीईटी के नियम की बाध्यता गले की फांस बन गई है। इस नियम की जद में शहर के करीब तीन हजार से अधिक शिक्षक आ रहे हैं। 

Tue, 16 Sep 2025 06:07 PMSunil Kumar हिन्दुस्तान
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सुप्रीम कोर्ट के फैसले का सबसे ज्यादा प्रभाव प्राथमिक और उच्च प्राथमिक विद्यालयों में पढ़ाने वाले शिक्षकों पर पड़ेगा, जिन्होंने टीईटी पास नहीं किया। इनको दो साल के भीतर टीईटी पास करना होगा नहीं तो नौकरी चली जाएगी। वहीं, जिनकी नौकरी में पांच साल बचे हैं उनको बिना टीईटी प्रोन्नति नहीं मिलेगी। बड़ी समस्या यह है कि पूर्व में मृतक आश्रित शिक्षक, इंटरमीडिएट के साथ बीटीसी कर बने शिक्षक और जो प्रशिक्षित नहीं हैं उनके लिए संकट खड़ा हो गया है। हाल ही में लिए गए निर्णय से शिक्षकों में असमंजस की स्थिति उत्पन्न हो गई है कि वह स्कूलों में बच्चों को पढ़ाएं या फिर शिक्षक पात्रता परीक्षा की तैयारी करें। जनपद अलीगढ़ के 2115 स्कूलों में कार्यरत 9000 से अधिक शिक्षकों में से 3000 से ज्यादा सीधे तौर पर इस फैसले से प्रभावित होंगे। सुप्रीम कोर्ट के आदेश के अनुसार अब उन सभी बेसिक शिक्षकों को भी टीईटी (शिक्षक पात्रता परीक्षा) उत्तीर्ण करना अनिवार्य कर दिया गया है, जिन्हें आरटीई एक्ट 2009 लागू होने से पहले नियुक्त किया गया था। ऐसे में 15-20 वर्षों से पढ़ा रहे शिक्षक भी अब नौकरी बचाने की जद्दोजहद में उतर आए हैं। हिन्दुस्तान बोले टीम ने उन शिक्षकों के दर्द को जानने का प्रयास किया जो निर्णय को लेकर परेशान हैं। उनका कहना है कि इस नियम से एक-दो शिक्षक नहीं बल्कि हजारों शिक्षक तनाव में आ गए हैं। नियमों में उलझे तो बहुतों की नौकरी दांव पर लग जाएगी।

संकट में फंसे शिक्षक, कैसे हो समाधान

शिक्षकों का कहना है कि इस निर्णय ने शिक्षकों का चैन छीन लिया है। एक तो सरकार ने शिक्षकों पर सरकारी कामों का बोझ लाद रखा है, ऊपर से टीईटी का नियम उनके लिए जी का जंजाल बन गया है। सबसे बड़ी समस्या उन शिक्षकों के सामने है, जिन्होंने 12वीं के बाद बीटीसी कर नौकरी पाई थी। इनमें मृतक आश्रित कोटे से नियुक्त शिक्षक, इंटरमीडिएट के साथ बीटीसी कर पढ़ा रहे गुरुजन और वह शिक्षक भी शामिल हैं, जो स्नातक तक की पढ़ाई पूरी नहीं कर सके। जब कुछ शिक्षकों के पास स्नातक की डिग्री ही नहीं है, तो वे टीईटी कैसे देंगे?

न्यूनतम योग्यता है तो फिर टीईटी क्यों

अलीगढ़ समेत पूरे उत्तर प्रदेश के शिक्षक इस फैसले से आहत हैं। शिक्षकों का मानना है कि यह आदेश उनके जीवन के अधिकार और आजीविका के अधिकार का हनन है। शिक्षक संगठन संवैधानिक दायरे में रहकर कानूनी लड़ाई की तैयारी कर रहे हैं। शिक्षकों का कहना है कि वे शिक्षा व्यवस्था को बाधित नहीं करना चाहते, लेकिन अपने भविष्य और परिवार की आजीविका बचाने को संघर्ष करना मजबूरी है। अधिकतर शिक्षक आरटीई के तहत मिनिमम क्वालिफिकेशन को पूरा करते हैं, इसके बावजूद टीईटी का बोझ सिर पर लादा जा रहा है। पहले बीएड को प्राथमिक शिक्षा से अलग किया और अब इस बाध्यता ने परेशानी खड़ी कर दी है। भर्ती के दौरान पहले शिक्षकों को बीएड के साथ विशिष्ट बीटीसी भी करना था, कुछ ने ब्रिज कोर्स भी किया, नियम बदलते गए और शिक्षक उनमें ढलते गए, लेकिन अब नौकरी पर बात आ गई है।

नौकरी, पदोन्नति पर संकट से परेशान

शिक्षकों का कहना है कि फैसले के अनुसार जिन शिक्षकों ने अभी तक टीईटी पास नहीं किया है, उन्हें दो वर्षों के भीतर परीक्षा उत्तीर्ण करनी होगी अन्यथा नौकरी चली जाएगी। वहीं जिन शिक्षकों के सेवानिवृत्ति में मात्र पांच साल बचे हैं, उन्हें बिना टीईटी पास किए पदोन्नति नहीं मिलेगी। यह स्थिति उन शिक्षकों के लिए और भी अधिक परेशान करने वाली है जिन्होंने जीवन के सुनहरे साल बच्चों को शिक्षित करने में लगा दिए और अब बुढ़ापे की देहरी पर खड़े होकर असुरक्षा की खाई में धकेले जा रहे हैं।

इनके लिए सबसे ज्यादा दिक्कतें

शिक्षक संघों का कहना है कि कुछ लोग इंटरमीडिएट हैं और टीईटी के लिए स्नातक योग्यता है। कुछ लोगों के स्नातक में 45% से कम अंक हैं और टीईटी में 45% अंक अनिवार्य हैं। कुछ मृतक आश्रित बीटीसी नहीं हैं, उन्हें प्रशिक्षण मुक्त किया गया था, वह टीईटी का फार्म कैसे भर सकते हैं। कुछ लोग डीपीएड और कुछ बीपीएड हैं, वह लोग भी टीईटी के लिए अयोग्य हैं। बहुत से अध्यापकों के लिए अपनी नौकरी बचाना भी भारी होगा। इस संबंध में सरकार और सुप्रीम कोर्ट को फिर विचार करना होगा। इस मामले में शिक्षक संघ अध्यापकों के साथ बीएसए कार्यालय पर धरना प्रदर्शन करने की तैयारी कर रहे हैं।

अब तो न्यायालय का ही सहारा

उदाहरण : अध्यापक राम ने 2004 में और कुमार 1995 में नौकरी ज्वाइन की। इनका कहना है कि जिस शिक्षक ने दो दशक से ज्यादा गांव के स्कूल में बच्चों को पढ़ना-लिखना सिखाया, जो सुबह से शाम तक चॉक-डस्टर में लिपटा रहा, अब वही शिक्षक अपनी नौकरी बचाने के लिए अदालत की चौखट पर खड़ा है। क्या यह न्यायसंगत है कि जो कल तक ‘गुरु’ कहला रहा था, आज अपनी योग्यता पर सवालों से घिरा है। सरकार को इस बारे में सोचना होगा।

शिकायतें

- कुछ लोग इंटरमीडिएट हैं, वे टीईटी नहीं दे पाएंगे

- स्नातक में 45% से कम अंक वाले भी टीईटी नहीं दे सकते

- मृतक आश्रित बीटीसी नहीं हैं, वह फार्म नहीं भर सकते हैं

- डीपीएड और बीपीएड भी टेट के लिए अयोग्य होंगे

सुझाव

- इंटर के साथ बीटीसी कर लगे शिक्षकों पर लागू ना हो

- 2011 से पहले भर्ती शिक्षकों के लिए नियम में बदलाव हो

- मृतक आश्रित शिक्षक जो बीटीसी नहीं हैं उन्हें छूट मिले

- डीपीएड और बीपीएड वाले शिक्षकों के लिए नियम सुधार हो

शिक्षकों ने विरोध में किया प्रदर्शन, पीएम मोदी को प्रेषित ज्ञापन सौंपा

प्रदेश नेतृत्व के आह्वान पर राष्ट्रीय शैक्षिक महासंघ अलीगढ़ के जिलाध्यक्ष डॉ. राजेश चौहान एवं जिला मंत्री सुशील शर्मा के नेतृत्व में भारी संख्या में शिक्षक जिलाधिकारी कार्यालय पर एकत्र हुए। टेट परीक्षा के विरोध और सेवा समाप्ति से उत्पन्न आजीविका संकट को लेकर शिक्षकों ने जोरदार नारे लगाए। मार्च करते हुए जिलाधिकारी कार्यालय पहुंचे। शिक्षकों ने प्रधानमंत्री के नाम संबोधित ज्ञापन जिलाधिकारी अलीगढ़ को सौंपा। संगठन ने मांग रखी कि न्यायालय का निर्णय भविष्यलक्षी रूप से लागू किया जाए। वर्ष 2010 से पूर्व से नियुक्त शिक्षकों पर लागू न किया जाए। वैध नियमों के अंतर्गत नियुक्त अनुभवी शिक्षकों की सेवा-सुरक्षा एवं गरिमा सुनिश्चित की जाए। लाखों शिक्षकों की सेवा समाप्ति और आजीविका का संकट से बचाने हेतु आवश्यक नीतिगत एवं विधायी कदम शीघ्र उठाए जाएं। सभा को संबोधित करते हुए जिलाध्यक्ष ने सभी शिक्षक संगठनों को एक मंच पर आने के लिए आह्वान किया। इस अवसर पर डॉ. कैलाश रावत, संजय भारद्वाज, मनोज वार्ष्णेय,संदीप सिंह, सुनीता चौधरी, विपुल राजौरा, मुकेश उपाध्याय, पंकज अग्रवाल, नंदिता शर्मा, पूजा भटनागर, मुकेश सिंह, सुमित सिंह, विनीता वर्मा, डॉ. विजय पाल, उपेंद्र बधेल, अज़रा नाहिद, नीरज, मोनिका वर्मा, राधा गुप्ता, अनीता सक्सेना, अनिल भारती, मनुजी आदित्य, अनिल भारती, मेघा जैन, वर्षा सक्सेना, प्रदीप सिंह, राहुल पुरोहित, ब्रजपाल, मीनाक्षी शर्मा, राधारमण, गीता यादव, अंचल चौधरी, नूतन यादव, पुष्पेंद्र यादव, अशोक शर्मा, मयूर, मीनाक्षी, नीरज, मोनिका, पूनम, जुगेंद्र, प्रियंका, नीरू, सूरज प्रभा, राजवीर सैनी, रिंकी, अवनीत, अंजू बाला, अंजू राजपूत, धर्मेंद्र, परविंदर, बुशरा, प्रभात गुप्ता, आदि मौजूद रहे।

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महासंघ ने पत्र संख्या 59 का दिया हवाला

सभी से सेवारत शिक्षकों के लिए उनकी नियुक्ति की तिथि चाहे जो भी रही हो शिक्षक पात्रता परीक्षा को अनिवार्य कर दिया गया है। इस निर्णय से देश भर के लाखों शिक्षकों की सेवा-सुरक्षा और आजीविका को संकट में डाल दिया है। शिक्षा का अधिकार अधिनियम 2009 और राष्ट्रीय अध्यापक शिक्षा परिषद एनसीटीई की अधिसूचना दिनांक 23 अगस्त 2010 के अंतर्गत स्पष्ट रूप से दो श्रेणीयां मान्य की गई थी। (1) वर्ष 2010 पूर्व से नियुक्त शिक्षक जिन्हें टेट परीक्षा से छूट दी गई थी। (2) वर्ष 2010 के बाद नियुक्त शिक्षकों को एक निश्चित अवधि में टेट परीक्षा उत्तीर्ण करना अनिवार्य किया गया था। परंतु माननीय उच्च न्यायालय के निर्णय में इन तत्वों को अनदेखा कर दिया गया है जिसके परिणाम स्वरूप 2010 से पूर्व वैध रूप से नियुक्त शिक्षकों की सेवा भी असुरक्षित हो गई है। इस निर्णय से देश भर के लगभग 20 लाख से अधिक शिक्षक गहन चिंता और असमंजस की स्थिति में है।

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