औषधीय खेती: परंपरागत फसल छोड़कर औषधीय खेती में मुनाफा कमा रहे किसान
गन्ना, गेहूं, आलू सहित अन्य परंपरागत फसलों को छोड़कर जिले के किसान अब औषधीय खेती में भी मुनाफा कमा रहे हैं। जिले में कई किसान शतावर, सफेद मूसली, गिलोए की खेती में मुकाम हासिल कर रहे हैं। बीते दो...
गन्ना, गेहूं, आलू सहित अन्य परंपरागत फसलों को छोड़कर जिले के किसान अब औषधीय खेती में भी मुनाफा कमा रहे हैं। जिले में कई किसान शतावर, सफेद मूसली, गिलोए की खेती में मुकाम हासिल कर रहे हैं। बीते दो सालों में किसानों का औषधीय खेती की तरफ रूझान बढ़ा है। जिले में फल व औषधीय खेती का जिले में पांच हजार हेक्टेयर रकबा बढ़ चुका है। सरकार भी राष्ट्रीय औषधीय पौध मिशन के तहत सरकार को बढ़ावा दे रही है।
औषधीय खेती करने वाले वाले किसानों का रूझान सबसे ज्यादा कोरोना काल में बढ़ा है। दिल्ली, गाजियाबाद की कंपनियों से किसान संपर्क कर पौध लगे रहे हैं। किसानों के मुताबिक जून-जुलाई के महीने में खरीफ फसलों की खेती होती है। बारिश के साथ ही किसान अपनी तैयारियां शुरू कर देते हैं। खरीफ में आनी वाली फसलें पारंपरिक हैं। ऐसे में कुछ अलग कई किसान औषधीय पौधे की खेती रोपाई या बुवाई का काम कर रहे हैं। अलीगढ़ में वर्तमान में आठ किसान शतावर व अश्वगंधा की खेती कर रहे हैं। जिसका रकबा पांच हेक्टेयर से बढ़कर है। किसानों का रूझान शतावर की तरफ ज्यादा है। दरअसल इस फसल को किसी भी नाशीजीव से कोई खतरा नही है। इसलिए किसी भी कीटनाशक दवा की जरूरत नहीं पड़ती। शतावर की खेती में जंगली जानवरों, आवारा पशुओं से कोई क्षति नहीं होती है। इसका पौधा कटीला होता है।
यह होती है लागत
शतावर की प्रजाति दो प्रकार की होती हैं। एक पीला मोटी। दूसरी सफेद मोटी। इसका पौधा करीब तीन रुपये का मिलता है। एक हेक्टेयर में करीब 25 से 30 हजार पौधे लग जाते है। 75 से 90 हजार रूपये के पौधे खरीदकर लगाये जाते हैं। इसके बाद इनकी रोपाई करने में करीब मजदूरी व जैविक खाद सहित करीब बीस हजार रूपये की लागत आती है। कुल मिलाकर करीब एक लाख से सवा लाख रूपये तक की लागत आती है।
उपयोग
शतावर की जड़ का उपयोग मुख्य रूप से ग्लैक्टागोज के लिए किया जाता है जो स्तन दुग्ध के स्राव को उत्तेजित करता है। इसका उपयोग शरीर से कम होते वजन में सुधार के लिए किया जाता है तथा इसे कामोत्तेजक के रूप में भी जाना जाता है। इसकी जड़ का उपयोग दस्त, क्षय रोग तथा मधुमेह जैसी गंभीर बीमारी के उपचार में भी किया जाता है।
दो साल से औषधीय खेती करनी शुरू की है। अश्वगंधा, गिलोए, सफेद मूसली की पौध लगाई है। अन्य किसानों को भी इसके लिए जागरूक किया जा रहा है।
-आशुतोष, प्रगतिशील किसान, मुकुटपुर, खैर
गेहू, सरसों, गन्ना की खेती करने के साथ-साथ सतावर की भी खेती की है। पहले सफेद मूसली की भी खेती कर चुके हैं।
-अशोक कुमार, प्रगतिशील किसान, रूस्तमपुर, धनीपुर
जिले में किसान परंपरागत खेती से हटकर औषधीय खेती की तरफ बढ़ रहे हैं। कोरोना काल में इस खेती की तरफ किसानों का रूझान बढ़ा है।
-एनके सहानियां, जिला उद्यान अधिकारी