बोले आगरा: न्याय के लिए लड़ती हैं ये कानून की रक्षक
Agra News - शारदीय नवरात्रों में महिलाएं मां आदिशक्ति की पूजा कर रही हैं और न्यायालय में अधिवक्ता बनकर पीड़ितों को इंसाफ दिलाने का कार्य कर रही हैं। महिला अधिवक्ताओं ने अपने अनुभव साझा किए।

शारदीय नवरात्रों में घर-घर मां आदिशक्ति के सभी नौ स्वरूपों की पूजा की जा रही है। समाज को बदलने में कामकाजी महिलाएं महत्वपूर्ण भूमिकाएं निभा रही हैं। घर के अंदर मां बनकर जिम्मेदारियां निभा रही हैं, तो न्याय के मंदिर में ये देवियां कानून के ज्ञान से पीड़ितों को इंसाफ दिला रही हैं। मजबूर, बेबस महिलाओं का साथ देकर उन्हें सशक्त बना रही हैं। संवाद कार्यक्रम में महिला अधिवक्ताओं ने आपके अखबार हिन्दुस्तान के साथ वकालती पेशे से जुड़े अनुभव साझा किए। कहा कि ये पेशा नारी शक्ति का आत्मबल बढ़ाता है। अपने अधिकारों का ज्ञान कराता है। उन्होंने कहा कि अधिवक्ता बनना गर्व की बात है।
इस पेशे से जुड़कर आप सच का साथ दे सकते हैं। निर्दोष को बचाने के लिए कोर्ट में कानूनी लड़ाई लड़ सकते हो। आधुनिक युग में हर व्यवसायिक क्षेत्र में महिलाओं की सहभागिता तेजी से बढ़ रही है। इंसाफ के मंदिर में भी महिला अधिवक्ताओं की पूरी सक्रियता है। घर में गृहणी का किरदार निभाने वाली ये देवियां जब काला कोट पहनकर न्यायालय पहुंचती हैं तो अपराधियों को दंडित कराती हैं। उनका ममतामयी रूप देखकर पीड़ितों में इंसाफ मिलने की आस जागती है। सिविल कोर्ट में करीब 500 महिला अधिवक्ताओं का रजिस्ट्रेशन है। इनमें से करीब 250 महिला अधिवक्ता नियमित प्रैक्टिस के लिए दीवानी न्यायालय पहुंचती हैं। महिला अधिवक्ता अपने पेशे पर गर्व करती हैं। कहती हैं कि ये ऐसा पेशा है। जो सही को इंसाफ दिलाता है। गलत के लिए सजा की पैरवी कराता है। महिला अधिवक्ताओं ने कहा कि इस पेशे से जुड़ने के बाद उनके जीवन में बड़ा बदलाव हुआ है। उन्हें अपनी शक्ति का अहसास हुआ है। जब वो काला कोट पहनकर कोर्ट रूम में निर्दोष व्यक्ति को बचाने के लिए बहस करती हैं। तब उन्हें लगता है कि जीवन में इससे अच्छा कोई और काम नहीं। जब उनकी बहस पर पीड़ित को राहत मिलती है। तो लगता है कि मेहनत सफल हो गई है। महिला अधिवक्ताओं ने बताया कि ये पेशा महिलाओं को न सिर्फ सुरक्षा का अहसास दिलाता है बल्कि मानसिक रूप से मजबूत बनाता है। महिला अधिवक्ता हर मुश्किल से लड़ने की हिम्मत रखती हैं। अपराधियों को उनके किए की सजा दिलाती हैं। यही वजह है कि इस पेशे के प्रति महिलाओं का रुझान तेजी से बढ़ा है। विधि के पढ़ाई करने वाली लड़कियों की संख्या में इजाफा हो रहा है। संवाद के दौरान महिला अधिवक्ताओं ने काम के दौरान सामने आने वाली परेशानियों का भी बेबाकी से जिक्र किया। महिला अधिवक्ताओं ने बताया कि दीवानी परिसर में शौचालय की दिक्कत है। जो शौचालय हैं। वहां कभी सफाई नहीं होती। हर समय दुर्गंध उठती है। पास से निकलना भी दूभर हो जाता है। उन्होंने कहा कि अन्य जनपदों में महिला अधिवक्ताओं की समस्याओं, शिकायतों के निस्तारण के लिए कमेटी बनी हुई है। जबकि आगरा में अभी तक ऐसा नहीं हो पाया है। महिला अधिवक्ताओं ने स्थानीय स्तर पर कमेटी का गठन किए जाने की मांग उठाई है। जिससे किसी भी महिला अधिवक्ता की शिकायत पर तत्काल सुनवाई हो सके और जांच के बाद समस्या का समाधान हो पाए। महिला अधिवक्ताओं ने बताया कि वह रोजाना सुबह जल्दी उठ जाती हैं। पहले घरेलू कामकाज निपाटाती हैं। बच्चों को तैयार कर स्कूल भेजती हैं। लंच बनाती हैं। जब बच्चे स्कूल और पति ऑफिस चले जाते हैं। तब वो तैयार होकर न्यायालय पहुंचती हैं। शाम 5 बजे तक काम करती हैं। इसके बाद घर वापस लौटती हैं। दिनभर के काम की थकान को भूलकर शाम की रसोईं की तैयारी में जुट जाती हैं। किसी भी परिस्थिति में उफ तक नहीं करती हैं। यही कारण है कि महिलाएं शक्ति स्वरूपा कहलाती हैं। महिलाओं की मदद करके मिलती है खुशी दीवानी न्यायालय में प्रैक्टिस करने वाली अधिकांश महिला अधिवक्ताओं का कहना है कि वह पीड़ित महिलाओं को इंसाफ दिलाने को इस पेशे में आई हैं। जरूरत पड़ने पर वो महिलाओं की निशुल्क पैरवी करती हैं। इतना ही नहीं आर्थिक रूप से कमजोर महिलाओं को वो अपने पैरों पर खड़ा करने का प्रयास करती हैं। ऐसा करके उन्हें खुशी मिलती है। वो चाहती हैं कि हर महिला शिक्षित और सशक्त बनें। किशोरावस्था के दौरान सोशल मीडिया से दूर रहें। पूरा ध्यान अपनी पढ़ाई पर केंद्रित करें। विधि शक्ति से मिलती है जीवन में मजबूती महिला अधिवक्ता मानती हैं कि ज्ञान आपको शक्तिशाली बनाता है। जब आपको विधि का ज्ञान हो जाता है। तो अलग ही शक्ति महसूस होती है। अधिवक्ता बनकर जीवन में मजबूती आती है। वकालत के पेशे से जुड़कर महिलाएं आर्थिक रूप से सक्षम बन जाती हैं। उन्हें किसी पर आश्रित नहीं रहना पड़ता। वो अपने जीवन के फैसले खुद से ले सकती हैं। घर-गृहस्थी, परिवार सभी के बीच अच्छा तालमेल बैठा सकती हैं। मुसीबत के वक्त किसी भी परेशान महिला की मदद के लिए कदम आगे बढ़ा सकती हैं। न्यायलय परिसर में पुख्ता हो सुरक्षा व्यवस्था अदालत में कानूनी दांवपेंच से अपराधियों को चित कर देने वाली महिला अधिवक्ताओं ने न्यायालय परिसर में सुरक्षा व्यवस्था पुख्ता किए जाने की मांग की है। महिला अधिवक्ताओं ने बताया कि कुछ साल पहले परिसर के अंदर ही बार काउंसिल की पूर्व अध्यक्ष दरबेश यादव की गोली मारकर हत्या कर दी गई थी। इसके अलावा भी परिसर में आए दिन मारपीट, गाली गलौच की घटनाएं होती हैं। सजा होने पर अपराधी भी अधिवक्ताओं को धमकाते हैं। इससे अधिवक्ताओं में मन में असुरक्षा की भावना रहती हैं। महिला वकीलों के लिए बने वूमेंस विंग दीवानी न्यायालय की महिला अधिवक्ताओं में मूलभूत सुविधाएं न मिल पाने की नाराजगी दिखाई दी। उन्होंने कहा कि परिसर में ज्यादातर महिला अधिवक्ताओं के पास चैंबर नहीं हैं। परिसर में महिलाओं को कोई रेस्टरूम नहीं है। अलग से मीटिंग हॉल नहीं है। महिला अधिवक्ताओं ने परिसर में वूमेंस विंग बनाए जाने की मांग की। कहा कि परिसर में काफी सीसीटीवी कैमरे लगे हैं। इन्हें हर वक्त चालू रखा जाए। इससे परिसर में होने वाली हर एक गतिविधि पर निगरानी रहेगी। असमाजिक तत्वों पर अंकुश लगेगा। दुरुस्त हो वॉशरूम और पार्किंग व्यवस्था दीवानी परिसर में वॉशरूम की बदहाली से महिला अधिवक्ताओं को रोजाना परेशानी उठानी पड़ रही है। उन्होंने बताया कि परिसर में महिला अधिवक्ताओं के लिए अलग से वॉशरूम नहीं है। जो शौचालय है भी, वहां नियमित सफाई नहीं होती। गंदगी रहती हैं। दर्गंध उठती है। सभी ने महिला अधिवक्ताओं के लिए अलग वॉशरूम बनाए जाने की मांग की है। इसके साथ पार्किंग भी मुसीबत का कारण बनी हुई है। वाहन खड़े रहने की वजह से परिसर में पैदल चलना भी काफी मुश्किल रहता है। सुधार होना चाहिए। फर्जीवाड़ा करने वालों पर लगे अंकुश संवाद कार्यक्रम के दौरान महिला अधिवक्ताओं ने चौंका देने वाला खुलासा भी किया। उन्होंने बताया कि न्यायालय में फर्जी अधिवक्ताओं की संख्या तेजी से बढ़ रही हैं। कई ऐसे लोग हैं। जो रोजाना काला कोट पहनकर न्यायालय पहुंचते हैं। वकील की तलाश में घूम रहे फरियादी को घेर लेते हैं। उन्हें कम फीस में केस लड़ने का झांसा देकर ठग लेते हैं। उन्होंने बताया कि कुछ वरिष्ठ अधिवक्ताओं का इन लोगों को संरक्षण मिला हुआ है। ये लोग कोर्ट रूम के अंदर पहुंच जाते हैं। वहां भी साठ-गांठ रखते हैं। बोलीं महिला अधिवक्ता... - न्याय पालिका देश का मजबूत स्तंभ है। मैं 48 वर्षों से प्रैक्टिस कर रही हूं। ये सोचकर गर्व की अनुभूति होती है। अधिवक्ता बनना आसान नहीं है। इसके लिए विधि की नियमित पढ़ाई करनी पड़ती है। तब कहीं जाकर न्यायालय में काला कोट पहनकर आने का मौका मिल पाता है। ये जीवन में बहुत बड़ा अवसर मिलता है। मैं जरूरतमंदों की मदद करना जीवन का लक्ष्य मानती हूं। सुधा शर्मा, पूर्व अध्यक्ष आगरा बार एसोसिएशन - ये एक सम्मानित पेशा है। जो आपको अन्य लोगों से अलग बनाता है। समाज में अलग पहचान दिलाता है। सब जानते हैं कि कोर्ट कचहरी के काम आसान नहीं होते। ऐसे में हम महिला अधिवक्ताओं की यही कोशिश रहती है कि किसी भी फरियादी को इंसाफ के लिए भटकना नहीं पड़े। चाहे इसके लिए हमें कितनी ही मेहनत क्यों न करनी पड़े। मेरे अधिवक्ता होने पर परिवार को गर्व होता है। मधु शर्मा, एडीजीसी - एक दौर था जब वकालत के पेशे में महिलाओं की संख्या बहुत ज्यादा नहीं थी। अब समय बदल रहा है। काफी संख्या में युवतियां इस पेशे से जुड़ रही हैं। ये पेशा आपको जीवन में मजबूती का अहसास कराता है। समाज में सम्मान दिलाता है। ये ही वो पेशा है जिससे जुड़कर आप सत्य की लड़ाई लड़ सकते हो। अपराधियों को उनके किए की सजा दिला सकते हो। मुझे गर्व है मैं अधिवक्ता हूं। आभारानी अग्रवाल, पूर्व डीजीसी सिविल - अधिवक्ता बनना आसान नहीं है। इस काम में कई तरह की चुनौतियां रहती हैं। हर तारीख पर बहस के लिए जाना पड़ता है। वादकारी को केस जिताने के लिए जी जान लड़ानी पड़ती है लेकिन जब केस का फैसला आपके पक्ष में आता है। तब बहुत खुशी मिलती है। वास्तविक पीड़ित को इंसाफ दिलाना मेरे जीवन का लक्ष्य है। माता रानी से प्रार्थना करती हूं कि सत्य कभी पराजित न हो। अंजलि वर्मा, एडीजीसी सिविल - अधिवक्ता बनना मेरा बचपन का सपना था। मैं जब भी टीवी में किसी वकील को इंसाफ के लिए लड़ते देखती थी। बहुत खुशी मिलती थी। जब किसी के साथ नाइंसाफी होती थी। बड़ा दुख होता था। मैं यही सोचकर वकालत के पेशे में आई हूं कि किसी भी निर्दोष को सजा न होने दूं। पीड़ित महिलाओं को इंसाफ दिलाना ही मेरे जीवन का लक्ष्य है। हर अधिवक्ता समाज के लिए लड़ता है। अजरा राईन, संयुक्त सचिव साहित्य एवं क्रीड़ा, आगरा बार हमारी भी सुनिए... - महिला अधिवक्ता होने मेरे के लिए गर्व की बात है। विधि की पढ़ाई आपको सशक्त बनाती है। कानून का ज्ञान कराकर आत्मबल बढ़ाती है। गंगा धाकड़, वरिष्ठ अधिवक्ता - काला कोट पहनकर कोर्ट रूम में मुकदमें पर बहस करना आसान नहीं है। महिला अधिवक्ताओं ने मुश्किल काम को आसान कर दिखाया है। अमिता राजपूत, वरिष्ठ अधिवक्ता - विधि की पढ़ाई से महिला को शक्ति मिलती है। अधिवक्ता बनकर किसी को इंसाफ दिला सकते हो। जरूरत पड़ने पर मदद कर सकते हो। सुनीता सिंह, वरिष्ठ अधिवक्ता - वर्तमान दौर में महिला का शिक्षित, सशक्त और आत्मनिर्भर होना बेहद जरूरी है। विधि की पढ़ाई समाज में अलग पहचान दिलाती है। सोनिका शर्मा, अधिवक्ता - मेरा तो सभी महिलाओं से यही कहना है कि वो किसी पर निर्भर न रहें। अपनी शक्ति को पहचाने आत्मनिर्भर बने। समाज में मिसाल कायम करें। श्वेता शर्मा, अधिवक्ता - मैं महिलाओं की मदद करने के इरादे इस पेशे का हिस्सा बनी हूं। जब भी किसी परेशान महिला की मदद का मौका मिलता है। खुशी मिलती है। रश्मि अग्रवाल, अधिवक्ता - वकालत के पेशे से जुड़कर बहुत अच्छा लगता है। समाज,परिवार में सम्मान मिलता है। मेरा प्रयास रहता है कि किसी भी निर्दोष को सजा न हो। मानसी गुप्ता, अधिवक्ता - न्यायालय परिसर में वॉशरूम की दिक्कत है। महिला अधिवक्ताओं के लिए अलग से वॉशरूम नहीं है। इस समस्या का समाधान किया जाना चाहिए। शोभा सिंह, वरिष्ठ अधिवक्ता - न्यायालय परिसर में ज्यादातर महिला अधिवक्ताओं के पास अपने चैंबर नहीं हैं। इस वजह से दिक्कत होती है। हमें भी अलग चैंबर मिलने चाहिए। आशा परमार, अधिवक्ता - दीवानी न्यायालय में काफी संख्या में फर्जी लोग अधिवक्ता बनकर लोगों से ठगी करते हैं। ऐसे लोगों पर अंकुश लगे। इन पर कार्रवाई की जाए। शालिनी शर्मा, अधिवक्ता - न्यायालय परिसर में वूमेंस विंग की स्थापना होनी चाहिए। इससे महिला अधिवक्ताओं को सहूलियत मिलेगी। रेस्ट रूम की सुविधा भी मिलनी चाहिए। सलमा सुल्ताना, अधिवक्ता - न्यायालय परिसर में कई बार अपराधिक वारदातें घटित हुई हैं। फिर भी परिसर में सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम नहीं हैं। सुरक्षा व्यवस्था और पुख्ता हो। नेहा गुप्ता, अधिवक्ता - कई जनपदों में महिला अधिवक्ताओं की शिकायतों के निस्तारण के लिए कमेटियां बनी हुईं है। आगरा में ऐसा नहीं है। यहां भी कमेटी होनी चाहिए। बबिता शर्मा, वरिष्ठ अधिवक्ता - न्यायालय परिसर में महिला अधिवक्ताओं के लिए अलग से मीटिंग हॉल नहीं है। मेरी मांग है कि महिला अधिवक्ताओं के लिए अलग मीटिंग हॉल बने। लक्ष्मी लवानियां, वरिष्ठ अधिवक्ता - मेरा यही कहना है कि महिला अधिवक्ताओं के लिए परिसर में अलग कैंटीन, वॉशरूम, मीटिंग हॉल और चैंबर बनाए जाने चाहिए। इसकी जरूरत है। मंजू द्विवेदी, उपाध्यक्ष अधिवक्ता परिषद
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