कहीं आयुषी तो नहीं बन रहा आपका आयुष!
Agra News - आगरा। वरिष्ठ संवाददाता आपका बेटा अपनी बहन के कपड़े पहनता है। लिप्सटिक लगाने की कोशिश करता है। गुड़िया से खेलता है या लड़कियों की तरह व्यवहार करने लगा...
आपका बेटा अपनी बहन के कपड़े पहनता है। लिप्सटिक लगाने की कोशिश करता है। गुड़िया से खेलता है या लड़कियों की तरह व्यवहार करने लगा है। ऐसा है तो सतर्क हो जाने की जरूरत है। छह महीने तक यही चलता रहा तो बच्चे को उसके मूल स्वरूप में लाना नामुमकिन हो सकता है।
होटल समोवर क्रिस्टल में इंडियन एकेडमी आफ पीडियाट्रिक (आईएपी) और ग्रोथ डेवलपमेंट एंड बिहेवियरल पीडियाट्रिक की जीडीबीपीकान-21 के आखिरी दिन एसपीजीआई लखनऊ की बाल रोग विशेषज्ञ डा. पियाली भट्टाचार्य ने 'जेंडर डिस्फोरिया' के खतरे बताए। उन्होंने बताया कि भारत में यह बीमारी पहले लड़कों में अधिक थी। अब यह दिक्कत इसका उल्टा लड़कियों में बढ़ रही है। पाश्चात्य और विकसित देशों की लड़कियों में इस तरह की दिक्कतें तेजी से बढ़ रही हैं। डा. पियाली के मुताबिक तीन साल की उम्र से बच्चा सेक्स (लिंग) के बारे में सोचने लगता है। दूसरे लिंग के बारे में फर्क करने लगते हैं। सामान्य विकास इसी तरह होता है। लेकिन खुद को अलग लिंग का महसूस करने वाले बच्चों की दिक्कतें बढ़ जाती हैं। वह दूसरे लिंग की तरह आचरण करने लगता है। समाज के मानकों के मुताबिक नहीं चलता। बाद में उसे पछतावा होता है और डिप्रेशन में चला जाता है। कई बार आत्महत्या भी कर लेता है। जबकि बड़ी उम्र तक व्यवहार में बदलाव न आए तो उसे विपरीत लिंगी का जीवन जीना पड़ता है। भारत में इस तरह के मामलों का प्रतिशत फिलहाल 0.2 है। लेकिन आने वाले समय में यह और ऊपर जा सकता है।
शुरुआत में संभाल सकते हैं
डा. पियाली के मुताबिक, छोटी उम्र यानि तीन साल के बाद अगर बच्चों में ऐसे लक्षण दिखाई देते हैं तो उन्हें प्यार से समझाना चाहिए। लड़का और लड़की का भेद समझाना चाहिए। मगर इस तरह नहीं कि उनमें विपरीत लिंग के प्रति कोई हीन-भावना आए। डाक्टरों, मनो चिकित्सकों को भी दिखाने में कोई बुराई नहीं है। बाद में संभालना मुश्किल होता है।
शोषण का भी होते हैं शिकार
खुद को विपरीत लिंगी समझने या महसूस करने वालों के साथ शारीरिक शोषण की घटनाएं भी अधिक होती हैं। एक बार खुद को दूसरे जेंडर का समझ लेने के बाद वह ऐसे ही किसी ग्रुप की तलाश करता है। ग्रुप में जाने के बाद उसका शोषण हो सकता है। वह भावनात्मक रूप से फंस जाता है। डाक्टरों के पास ऐसे भी तमाम मामले लगातार आ रहे हैं।
बच्चे नहीं होते, गोद लेते हैं
विपरीत लिंगी समझने वाले असल में समान लिंग वाले व्यक्ति से विवाह करते हैं। जाहिर है कि यह प्राकृतिक अवस्था नहीं है। लिहाजा इनके बच्चे नहीं होते हैं। ऐसे युगल फिर बच्चों को गोद लेते हैं। कई मामलों में आपसी समझ से देखा गया है कि महिला युगल परखनली जैसी विधियों से बच्चा पैदा करते हैं। पुरुषों के लिए सिर्फ गोद लेना ही एकमात्र विकल्प है।
सर्जरी ही है एकमात्र विकल्प
बचपन से शुरू हुई बीमारी अगर व्यस्क बनने तक रही तो फिर सर्जरी ही एकमात्र विकल्प रह जाता है। पहले हार्मोनल थेरेपी की जाती है। इसके बाद सर्जन का काम शुरू होता है। सर्जरी से लिंग परिवर्तन करते हैं। इसमें प्लास्टिक सर्जन भी मदद करता है। साथ में फिजीशियन कन्सल्टेंट भी रखा जाता है। लिंग परिवर्तन से ऐसे लोग सामान्य जीवन जी सकते हैं।
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