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एक्सक्लूसिव: दुनियाभर में बजने लगा विवि का डंका

डॉ. भीमराव अंबेडकर विश्वविद्यालय का डंका फिर दुनिया भर में बजने लगा है। 'साइबर लाइब्रेरी' ने विवि को यह मुकाम दिलवाया है। इस लाइब्रेरी में विवि ने बीते दिनों 1.75 करोड़ किताबें अपलोड की थीं। दुनिया...

एक्सक्लूसिव: दुनियाभर में बजने लगा विवि का डंका
हिन्दुस्तान टीम,आगराThu, 14 Dec 2017 12:09 PM
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डॉ. भीमराव अंबेडकर विश्वविद्यालय का डंका फिर दुनिया भर में बजने लगा है। 'साइबर लाइब्रेरी' ने विवि को यह मुकाम दिलवाया है। इस लाइब्रेरी में विवि ने बीते दिनों 1.75 करोड़ किताबें अपलोड की थीं। दुनिया के लगभग हर हिस्से से साइबर लाइब्रेरी को देखा जा रहा है। इस कारण विश्वविद्यालय की वेबसाइट पर रिकार्ड 'हिट्स' बढ़ गई हैं। एक मिनट में औसतन आठ से 10 हिट्स आ रही हैं। बीती तीन दिसंबर को विश्वविद्यालय ने अपनी वेबसाइट www.dbrau.org पर साइबर लाइब्रेरी और सेंट्रल लाइब्रेरी को ऑनलाइन किया था। साथ ही समाचार पत्रों की कटिंग के लिए 'न्यूज पेपर क्लिपिंग' लिंक डाला था। साइबर लाइब्रेरी में विवि ने करीब दो करोड़ किताबें, रिसर्च जर्नल डाले थे। इसमें कला, विज्ञान और वाणिज्य से संबंधित पुस्तकों के अलावा लगभग हर विषय की पाठ्य सामग्री शामिल थी। वेबसाइट पर इसके लिंक भी बनाए गए। इनके अलावा दुनिया की चर्चित ऑनलाइन लाइब्रेरी के साथ विवि को जोड़ा गया था। इनमें 'इनफिलिबनेट' और 'शोधगंगा' जैसी लाइब्रेरी शामिल हैं। इस प्रयास के बहुत कम समय में शानदार नतीजे सामने आए हैं। सोमवार की शाम तक विवि की वेबसाइट से 10 हजार 294 स्थाई फालोवर्स जुड़ चुके हैं। जबकि वेबसाइट पर विजिट करने वालों की संख्या में ऐतिहासिक इजाफा हुआ है। यूएसए, यूके, यूएई, रूस, जापान, स्वीडन जैसे दुनिया के तमाम देशों के विजिटर लगभग हर मिनट पर वेबसाइट पर आने लगे हैं। विवि ने अपनी वेबसाइट पर हर विषय के लिए सब्जेक्ट गेटवे भी बनाया है। यहां जाकर मनचाही पाठ्य सामग्री का ऑनलाइन अध्ययन किया जा सकता है। यूजर इसे डाउनलोड भी कर सकता है। अच्छी बात यह कि कम्प्यूटर के साथ मल्टीमीडिया मोबाइल पर भी इसे समान रूप से एक्सेस किया जा सकता है।

इस तरह करें किताबों के संसार में प्रवेश

विश्वविद्यालय की वेबसाइट dbrau.org.in पर जाएं। यहां पेज खुलते ही दाएं हाथ पर ऊपर की ओर इन्फ्रास्ट्रक्टर का लिंक है। इस पर जाते ही साइबर और सेंट्रल लाइब्रेरी के दो लिंक दिखाई देंगे। पहले पर क्लिक करते ही किताबों का संसार सामने होगा। नए पेज पर आते ही बाएं हाथ पर डाटाबेस, ई-बुक्स, ई-जर्नल्स, ई-थीसिस, सॉफ्टवेयर, सब्जेक्ट गेटवे, यूजफुल बेवसाइट्स और वीडियो लेक्चर के लिंक मिलेंगे। इन पर क्लिक करने के बाद सामने खजाना चुनने की आजादी रहेगी।

1953 में बनकर तैयार हुई सेंट्रल लाइब्रेरी

सेंट्रल लाइब्रेरी की स्थापना 1927 में विश्वविद्यालय के साथ हुई। जबकि इसे अपना भवन 1953 में मिला। पालीवाल पार्क कैंपस में 2500 स्क्वायर मीटर भूमि पर चार मंजिला बिल्डिंग बनाई गई थी। इसमें पढ़ने के लिए 350 स्क्वायर मीटर के दो हॉल हैं। सात मार्च 1952 में शुरू हुआ निर्माण एक मार्च 1956 को पूर्ण हुआ था। चार साल में लाइब्रेरी पर कुल सात लाख रुपये का खर्चा आया था। इसके लोकार्पण के वक्त केएम मुंशी प्रदेश के गवर्नर थे। जबकि लेफ्टिनेंट कर्नल सीवी महाजन कुलपति थे। दिल्ली के आर्कीटेक्ट जीसी शर्मा एंड संस ने इसका डिजायन तैयार किया था। जबकि कांट्रेक्टर आगरा के अहमद हुसैन थे। बिल्डिंग का शिल्प अंग्रेजी और मुगलिया शासनकाल का मिला-जुला रूप है। भवन के साथ यहां की घड़ी भी ऐतिहासिक आगरा विश्वविद्यालय का यह पुस्तकालय देश के चुनिंदा पुस्तकालयों में से एक है। एक जमाने में एशिया भर में इसकी धमक थी। पुरातन काल के हाथ से लिखी पांडुलिपियां भी यहां थीं। बताते हैं कि कई दुर्लभ पांडुलिपियां आज भी लाइब्रेरी में हैं। बीते सालों में इसका रख-रखाव ठीक से नहीं हुआ। लिहाजा कई किताबें खराब हो गईं। लाइब्रेरी के ऊपर घंटाघर भी है। यहां लगी घड़ी भी ऐतिहासिक है। इसके लिए सबसे ऊपरी मंजिल में वाच हाउस है। इसमें घड़ी की मशीनरी लगी है। कई साल से खराब घड़ी की रिपेयरिंग भी मुश्किल है। 2010 में कोलकाता की एक कंपनी ने इसे ठीक करने का जिम्मा लिया था। हालांकि कंपनी के रेट विवि की समझ में नहीं आए। इसके बाद किसी ने इसमें रुचि नहीं दिखाई।

लंबे समय से लगे थे विवि के लाइब्रेरियन

कुलपति डॉ. अरविंद दीक्षित ने विवि को साइबर लाइब्रेरी का तोहफा दिया है। उन्होंने असिस्टेंट लाइब्रेरियन डॉ. केके केसरवानी को ऑनलाइन लाइब्रेरी बनाने का काम सौंपा था। इसमें जय प्रकाश सिंह ने सहयोग दिया। बहुत कम समय में इसे ऑनलाइन कर दिया गया। बता दें कि इससे पहले ऐसे प्रयास आईआईटी दिल्ली, बनारस हिंदू विवि, पांडिचेरी विवि, निजोरम केंद्रीय विवि में किए गए हैं। उत्तर प्रदेश के किसी राज्य विश्वविद्यालय में यह पहली बार हुआ है। बीएचयू ने इस पर पांच लाख रुपये खर्च किए हैं। आगरा विवि ने यह काम मुफ्त कर लिया है।

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