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समस्याओं के दांव-पेच में फंसे पहलवान हो रहे चित

Agra News - आगरा के पहलवान सुविधाओं की कमी से परेशान हैं। वे कुश्ती में उत्कृष्टता हासिल करने के लिए मेहनत कर रहे हैं, लेकिन उचित सुविधाएं और आर्थिक सहायता नहीं मिलने के कारण उनके सपने अधूरे रह जा रहे हैं।...

Newswrap हिन्दुस्तान, आगराTue, 15 April 2025 09:04 PM
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समस्याओं के दांव-पेच में फंसे पहलवान हो रहे चित

आगरा। अपने एक दांव से किसी को भी चारों खाने चित कर देने वाले जिले के पहलवान सुविधाएं न मिल पाने से परेशान हैं। पहलवान कुश्ती में दम दिखाने के लिए रोजाना अखाड़े जाते हैं। कड़ी प्रेक्टिस करके घंटों पसीना बहाते हैं। उम्मीद बस यही रहती है कि उनकी ये मेहनत रंग लाए। वो भी नामचीन पहलवानों की तरह देश के लिए पदक जीतें। घर, परिवार, शहर और प्रदेश का नाम रोशन करें। लेकिन बहुत से पहलवानों को ऐसा मौका नहीं मिल पाता। सुविधाओं के अभाव में ऐसे पहलवान कुश्ती से किनारा कर लेते हैं। संवाद कार्यक्रम में युवा पहलवानों ने अपनी परेशानियां साझा कीं। कहा कि पहलवानों को भी क्रिकेट खिलाड़ियों की तरह सुविधाएं मिलनी चाहिए। जिला स्टेडियम में पहलवानों के लिए अलग से हॉस्टल बनना चाहिए। पहलवानों को आर्थिक रूप से मजबूत करने के लिए प्रो रेसलिंग लीग प्रतियोगिता का आयोजन किया जाना चाहिए।

आगरा जिले का कुश्ती के खेल से पुराना नाता है। एक दौर ऐसा भी था। जब गांवों में घर-घर लोगों को पहलवानी का शौक था। पिता अपने बेटे को कुश्ती के दांव पेंच सिखवाने के लिए अखाड़े ले जाते थे। युवा पहलवान अखाड़े में कुश्ती के पैतरें सीखने के लिए घंटों पसीना बहाते थे। मल्ल युद्ध कला सीखने के लिए दिन रात अखाड़े में जमे रहते थे। अब समय के साथ कुश्ती का तरीका भी बदल रहा है। पहले अखाड़ों में मिट्टी पर कुश्ती हुआ करती थी। अब मिट्टी की जगह मैट ने ले ली है। कुश्ती की सभी प्रतियोगिताएं अब मैट पर होती है। पहलवानों के लिए पारंपरिक दंगलों की संख्या भी सीमित रह गई है। इसलिए जिले के पहलवानों को आर्थिक अभावों का सामना करना पड़ रहा है। कुश्ती के खेल में दम दिखाकर परिवार की जरूरतें पूरी नहीं हो रही हैं। इसलिए पहलवानों में निराशा का भाव है। बातचीत में पहलवानों ने बताया कि अधिकांश पहलवान ग्रामीण अंचल से आते हैं। इनमें ज्यादातर पहलवानों की आर्थिक स्थिति बहुत अच्छी नहीं है। मैट के जमाने में पहलवानों को मिट्टी में पसीना बहाना पड़ रहा है। डाइट के लिए भी इंतजाम पर्याप्त नहीं हैं। पहलवानों ने कहा कि गांवों में भी मैट पर कुश्ती को बढावा दिया जाना चाहिए। इससे युवा खिलाड़ियों को बहुत फायदा मिलेगा।

नौ विधानसभा सीटों वाले आगरा जिले में छोटे बड़े करीब पांच हजार पहलवान हैं। इनमें अधिकांश युवा पहलवानी के क्षेत्र में ही अपना करियर बनाना चाहते हैं। राष्ट्रीय, अंतरराष्ट्रीय स्तर की प्रतियोगिताओं में भाग लेकर देश-प्रदेश का नाम रोशन करना चाहते हैं। लेकिन सुविधाओं के अभाव में उनके सपने चकनाचूर हो रहे हैं। अखाड़े में कड़ी मेहनत करने के बाद भी पहलवान अपने मुकाम तक नहीं पहुंच पा रहे हैं। बातचीत में युवा पहलवानों ने सरकार और खेल मंत्रालय से मांगें उठाई हैं। उन्होंने कहा कि आगरा में लंबे समय से अंतरराष्ट्रीय स्तर के स्टेडियम की जरूरत है। जिले में जो स्टेडियम है। वहां सुविधाएं बढ़ाए जाने की जरूरत है। स्टेडियम में पहलवानों के लिए हॉस्टल का निर्माण होना चाहिए। कुश्ती सीखने वाले पहलवानों के लिए भी जिम के सामान का इंतजाम होना चाहिए। पहलवान आर्थिक रूप से संपन्न बनें, इसके लिए नियमित कुश्ती प्रतियोगिताएं आयोजित होनी चाहिए। गांवों के नजदीक मिनी स्टेडियमों का निर्माण होना चाहिए। जहां मैट पर युवा पहलवानों को कुश्ती के गुण सिखाए जाएं। प्रतियोगिता जीतने वाले पहलवानों को नकद पुरस्कार मिलना चाहिए। जिससे वह अपनी डाइट और अन्य जरूरतों को पूरा कर सकें। उन्हें किसी पर आश्रित न रहना पड़े।

कुश्ती खिलाड़ियों को मिले हॉस्टल की सुविधा

जिले में कुश्ती खिलाड़ियों की प्रेक्टिस एकलव्य स्पोर्ट्स स्टेडियम में होती है। देहात के युवा कुश्ती के दांव पेंच सीखने के लिए स्टेडियम पहुंचते हैं। स्टेडियम आने जाने में युवा पहलवानों का अच्छा खासा खर्चा हो जाता है। ऐसे में युवा पहलवानों ने स्टेडियम में कुश्ती खिलाड़ियों के लिए अलग से हॉस्टल बनाए जाने की मांग की है। उनका कहना है कि हॉस्टल बन जाने से युवाओं का आने जाने का खर्च और समय बच जाएगा। हॉस्टल स्टेडियम परिसर में होगा तो वह कुश्ती सीखने में ज्यादा समय दे पाएंगे। हर समय कुश्ती कोच के संपर्क में रह पाएंगे। हॉस्टल खुलने से युवा कुश्ती खिलाड़ियों को बुहत फायदा मिलेगा।

पदकवीर कुश्ती खिलाड़ियों को मिले सरकारी नौकरी

पहलवानों ने पदकवीर कुश्ती खिलाड़ियों को सरकारी नौकरी देने की मांग उठाई है। उन्होंने कहा कि बहुत सारे पहलवान ऐसे हैं। जिन्होंने प्रतियोगिताओं में पदक जीते हैं। इसके बाद भी उन्हें मेहनत का लाभ नहीं मिल पाया। उन्होंने कहा कि जो खिलाड़ी जिला स्तर पर प्रतियोगिता में पदक जीतें। उन्हें चतुर्थ श्रेणी में सरकारी नौकरी दी जाए। जो खिलाड़ी राज्य स्तर पर पदक जीतें। उन्हें तृतीय श्रेणी में सरकारी नौकरी दी जाए। जो कुश्ती खिलाड़ी राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पदक जीतें। उन्हें प्रथम और द्वितीय श्रेणी की सरकारी नौकरी प्रदान की जाए। ऐसा होने से युवा खिलाड़ियों का उत्साहवर्धन होगा।

गांवों में बने मिनी स्टेडियम, मैट का हो इंतजाम

समय के साथ कुश्ती का स्वरूप भी बदल गया है। पहले पहलवान मिट्टी पर दम दिखाते थे। कुश्ती प्रतियोगिताएं भी कच्ची मिट्टी पर होती थी। अब ऐसा नहीं होता है। अब सभी पेशेवर प्रतियोगिताएं मिट्टी के बजाय मैट पर होती हैं। इसलिए जिले के युवा पहलवान भी मिट्टी के बजाय मैट पर पसीना बहाना चाहते हैं। उनका कहना है कि कुश्ती के खेल को बढ़ावा देना है तो गांवों के आसपास मिनी स्टेडियम बनाने होंगे। वहां पहलवानों के लिए मैट का इंतजाम करना होगा। कोच की तैनाती करनी होगी। युवा खिलाड़ी जब रोजाना मैट पर प्रेक्टिस करेंगे। तो उनके प्रदर्शन में निखार आएगा। मैट पर दांव पेंच सीखने के बाद वो आसानी से पदक जीत पाएंगे।

इन क्षेत्रों में होते हैं दंगल, पहलवान दिखाते हैं दम

आगरा में अभी दंगल की परंपरा बरकरार है। ग्रामीण अंचल के कुछ इलाकों में हर साल दंगल होते हैं। देश के कोने कोने से आए पहलवान दंगलों में भाग लेते हैं। बाह बटेश्वर में हर साल दंगल मेले का आयोजन होता है। अकोला चाहरवाटी में भी दंगल होता है। खंदौली के दंगल में भी पहलवान अपना दमखम दिखाते हैं। किरावली में भी हर साल वार्षिक दंगल का आयोजन किया जाता है। युवा पहलवानों ने बताया कि दंगल में इनामी धनराशि जीतने के लिए पहलवान साल भर दंगल प्रतियोगिता का इंतजार करते हैं। दंगल जीतने के बाद जो धनराशि पुरस्कार के रूप में मिलती है। पहलवान उसी से अपनी डाइट और घर गृहस्थी चलाने का इंतजाम करते हैं।

जिले में किया जाए प्रो रेसलिंग लीग का आयोजन

युवा पहलवानों के सामने सबसे बड़ी परेशानी आर्थिक अभाव की है। उन्होंने कहा कि अधिकांश युवा पहलवान मध्यमवर्गीय परिवारों से ताल्लुक रखते हैं। ग्रामीण अंचल से जुड़े इन युवाओं के पास खेती बाड़ी भी बहुत ज्यादा नहीं है। ऐसे में उन्होंने मांग उठाई है कि जिले में नियमित रूप से कुश्ती प्रतियोगिताओं का आयोजन कराया जाए। साथ ही महानगरों की तर्ज पर प्रो रेसलिंग लीग की प्रतियोगिताएं आयोजित हों। जिससे पहलवानों को उन प्रतियोगिताओं में हिस्सा लेने का मौका मिले। पहलवान अपना दमखम दिखाकर पुरस्कार राशि जीत पाएं। इस तरह के आयोजनों से पहलवानों को बड़ी राहत मिलेगी। आर्थिक संकट भी खत्म हो जाएगा।

इन युवा खिलाड़ियों ने जीते हैं पदक

जिले के युवा कुश्ती खिलाड़ियों ने राष्ट्रीय स्तर की प्रतियोगिताओं में शानदार प्रदर्शन किया है। इनमें धर्मेंद्र चाहर और पवन चाहर को स्पोर्ट्स कोटे में सरकारी नौकरी भी मिली है। धर्मेंद्र चाहर ने नेपाल में आयोजित हुई साउथ एशियन चैंपियनशिप प्रतियोगिता में गोल्ड मेडल जीता था। इसके अलावा चित्रांशू ने राष्ट्रीय प्रतियोगिता में तृतीय स्थान, मंजीत ने राज्य स्तरीय प्रतियोगिता में गोल्ड मेडल और अभिषेक भगौर ने भी राज्य स्तरीय प्रतियोगिता में तृतीय स्थान प्राप्त किया है। इसके अलावा भी कुश्ती के कई सीनियर खिलाड़ी भी हैं। जिन्होंने अपनी मल्ल विद्या के दम पर अलग पहचान बनाई। कुश्ती के खेल में जिले का नाम रोशन किया ।

आगरा में हो अंतरराष्ट्रीय स्टेडियम का निर्माण

जिले के खिलाड़ी लंबे समय से आगरा में अंतरराष्ट्रीय स्टेडियम का निर्माण किए जाने की मांग कर रहे हैं। खिलाड़ियों का कहना है कि आगरा में अंतरराष्ट्रीय स्टेडियम का निर्माण होने से सभी खेलों के खिलाड़ियों का फायदा मिलेगा। अंतरराष्ट्रीय स्तर के कोच खिलाड़ियों को ट्रेनिंग देंगे तो उनके खेल में निखार आएगा। खिलाड़ियों को बहुत कुछ नया सीखने को मिलेगा। मिलने वाली सुविधाओं में भी इजाफा होगा। उन्होंने कहा कि आगरा में भाजपा के दो सांसद, नौ विधायक, एमएलसी, महापौर, राज्यसभा सांसद, जिला पंचायत अध्यक्ष हैं। यदि सभी सामूहिक रूप से प्रयास करें तो आगरा को अंतरराष्ट्रीय स्टेडियम की सौगात मिल सकती है।

हम पहलवानों को लगातार आर्थिक संकट का सामना करना पड़ रहा है। पहलवानों को सरकारी सुविधाओं का लाभ दिया जाए। जिससे पहलवानों के सामने खड़े आर्थिक संकट को खत्म किया जाए।

जगजीत, युवा पहलवान

सरकारी स्तर पर कुश्ती को बढावा देने के लिए कारगर प्रयास नहीं किए जा रहे हैं। इसके कारण इस खेल के प्रति युवाओं की रुचि कम होने लगी है। सरकार को इस खेल की तरफ भी ध्यान देना चाहिए।

अज्जो, सीनियर पहलवान

अगर सरकार कुश्ती के खेल पर ध्यान दे तो युवा पहलवान देश का नाम रोशन कर सकते हैं। पहलवानों को समुचित साधन और अवसर नहीं मिल पा रहे हैं। इससे कुश्ती दंगल सिमटते जा रहे हैं।

बनय सिंह, सीनियर पहलवान

जिला स्टेडियम में सभी व्यवस्थाएं दुरुस्त होनी चाहिए। पुराने पहलवानों को भी खेल प्रतियोगिताओं से जोड़ा जाना चाहिए। इसे बढ़ावा देने के लिए इनामी प्रतियोगिताएं आयोजित किए जाने की जरूरत हैं।

राजेंद्र सिंह, सीनियर पहलवान

आगरा में कुश्ती के क्षेत्र में प्रतिभाओं की कमी नहीं हैं। उचित प्रशिक्षण और पर्याप्त सुविधाएं दिए जाने की जरूरत है। युवा खिलाड़ी अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पदक जीतकर देश का नाम रोशन कर सकते हैं।

नेत्रपाल सिंह, सीनियर पहलवान

सुविधाओं के अभाव में बहुत से सीनियर खिलाड़ी कुश्ती के खेल से किनारा कर चुके हैं। अब वह घर गृहस्थी चलाने के लिए नौकरी कर रहे हैं। शासन प्रशासन को कुश्ती खिलाड़ियों को बढ़ावा देना होगा।

पुरषोत्तम, पहलवान

7)-मैट पर कुश्ती की प्रेक्टिस करने के लिए पहलवानों को दूर दराज के क्षेत्रों से स्टेडियम आना पड़ता है। इसमें काफी खर्चा होता है। स्टेडियम में ही हॉस्टल की सुविधा मिल जाए तो बहुत राहत मिल जाएगी।

नजीर, पहलवान

बारिश के दिनों में पहलवानों को अभ्यास करने में सबसे ज्यादा दिक्कत होती है। खुले मैदान में पानी भर जाने के कारण पर अभ्यास नहीं हो पाता। दिक्कत को प्राथमिकता से दूर किए जाने की जरूरत है।

छोटू, पहलवान

प्रदेश सरकार ने कुश्ती के खेल को गोद लिया है। लेकिन खेल को बढ़ावा देने के लिए ठोस प्रयास नहीं किए जा रहे हैं। इस खेल में भी युवा खिलाड़ियों को सरकारी सुविधाओं का लाभ दिया जाना चाहिए।

हुसैन, पहलवान

कई अच्छे खिलाड़ी सुविधाओं के अभाव से कुश्ती का खेल छोड़ चुके हैं। अन्य पहलवानों की भी हालत कुछ ऐसी ही है। सरकार ने इन दिक्कतों पर ध्यान नहीं दिया तो युवा भी इस खेल से दूर हो जाएगा।

करमवीर, पहलवान

देहात के क्षेत्रों में कुश्ती कोचों का अभाव है। इस कारण से भी युवा पहलवान अपने खेल में निखार नहीं ला पाते हैं। अगर देहात में मिनी स्टेडियम और अच्छे कोच मिल जाए तो खेल में बहुत सुधार आएगा।

गोपाल चाहर, पहलवान

युवा कुश्ती खिलाड़ियों को स्पोर्ट्स कोटे में सरकारी नौकरी मिलनी चाहिए। जो भी खिलाड़ी जिला, मंडल, राज्य और राष्ट्रीय स्तर पर पदक जीतें। उन्हें प्राथमिकता के साथ सरकारी नौकरी मिलनी चाहिए।

राना प्रताप, पहलवान

अधिकांश युवा पहलवान मध्यमवर्गीय परिवारों से ताल्लुक रखते हैं। ग्रामीण अंचल से जुड़े इन युवाओं के पास खेती बाड़ी भी बहुत ज्यादा नहीं है। ऐसे सभी खिलाड़ियों को सरकारी मदद मिलनी चाहिए।

आकाश, पहलवान

कुश्ती के खेल को बढ़ावा देने के लिए नियमित प्रतियोगिताएं आयोजित कराए जाने की जरूरत है। इससे पहलवानों में उत्साह बढेगा। प्रतियोगिता में प्रदर्शन कर उन्हें पुरस्कार राशि जीतने का मौका मिलेगा।

भोला धाकड़, पहलवान

जो भी खिलाड़ी कुश्ती के खेल में अपने करियर को आगे बढाना चाहते हैं। सरकार को उनकी मदद के लिए आगे आना होगा। ऐसा होने पर युवाओं का रुझान बढ़ेगा। पारंपरिक कुश्ती का अस्तित्व जिंदा रहेगा।

अंकित, पहलवान

महानगरों की तर्ज पर प्रो रेसलिंग लीग की प्रतियोगिताएं आयोजित हों। जिससे पहलवानों को उन प्रतियोगिताओं में हिस्सा लेने का मौका मिले। पहलवान अपना दमखम दिखाकर पुरस्कार राशि जीत पाएं।

धर्मवीर, पहलवान

कुश्ती दंगल देश का पारंपरिक खेल है। इस खेल को क्रिकेट, फुटबाल, कबड्डी और हॉकी की तरह इसे तरजीह नहीं दी जाती है। कुश्ती के खेल को भी अन्य खेलों की तरह बढावा दिए जाने की जरूरत है।

साहिल सिंह, पहलवान

हलवानों को भी क्रिकेट खिलाड़ियों की तरह सुविधाएं मिलनी चाहिए। स्टेडियम में पहलवानों के लिए हॉस्टल बनना चाहिए। कुश्ती को बढावा देने के लिए प्रो रेसलिंग लीग का आयोजन किया जाना

नैतिक, पहलवान

मेरी यही मांग है कि देहात क्षेत्रों में कुश्ती को बढावा देने के लिए मिनी स्टेडियम का निर्माण किया जाना चाहिए। वहां सभी सुविधाएं होनी चाहिए। अनुभवी कोच से खिलाड़ियों को प्रशिक्षण मिलना चाहिए।

हेमंत कुमार शर्मा, पहलवान

आगरा में कई खिलाड़ियों ने राष्ट्रीय स्तर की प्रतियोगिताओं में शानदार प्रदर्शन किया है। पदक जीतकर प्रदेश को गौरवांवित किया है। पदक विजेता खिलाड़ियों की मदद के लिए सरकार को आगे आना होगा।

कुश्ती के खेल में महिला खिलाड़ियों की संख्या बहुत ज्यादा नहीं है। सरकार को इसके लिए सकारात्मक प्रयास करने होंगे। जिससे बेटियां भी कुश्ती के खेल में हिस्सा लें। भागीदारी सुनिश्चित करें।

श्वेता पारस, महिला पहलवान

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