बैक हड़ताल से 300 करोड़ के लेन देन अटके
वेतन समझौते एवं अन्य मांगों को लेकर यूनाइटेड फोरम ऑफ बैंक यूनियंस के आह्वान पर राष्ट्रव्यापी बैंक हड़ताल के समर्थन में शनिवार को भी आगरा के बैंकों में ताले पड़े रहे। जनपद भर की कुल 510 बैंकों में से...
वेतन समझौते एवं अन्य मांगों को लेकर यूनाइटेड फोरम ऑफ बैंक यूनियंस के आह्वान पर राष्ट्रव्यापी बैंक हड़ताल के समर्थन में शनिवार को भी आगरा के बैंकों में ताले पड़े रहे। जनपद भर की कुल 510 बैंकों में से लगभग 400 में कामकाज न होने से व्यवसायिक एवं व्यक्तिगत लेन-देन प्रभावित रहे।
सुबह से ही विभिन्न बैंकों के एटीएम खाली होने का सिलसिला जो शुरू हुआ, वह देर रात तक कायम रहा। एटीएम भरने की जिम्मेदारी हालांकि आऊटसोर्सिंग एजेंसियों की है, लेकिन इनके पास भी नकदी की उपलब्धता को लेकर संदेह है। ऐसे में रविवार को लोग नकदी के लिए परेशान हो सकते हैं। हड़तालियों के अनुसार दो दिन की हड़ताल से 300 करोड़ रुपये के लेन देन अटक गए। ऑनलाइन ट्रांजेक्शन बड़े पैमाने पर प्रभावित हुए। सबसे ज्यादा असर क्लियरिंग पर पड़ा है। देश के तीनों बड़े सीटीएस बंद रहने से यह स्थिति आ गई। हड़ताल के कारण लोगों को नकदी की जमा-निकासी, लोन आवेदन, लोन किश्त समायोजन, एनईएफटी, लॉकर ऑपरेशन आदि का मौका नहीं मिला।
सरकार के खिलाफ जमकर नारेबाजी की
हड़ताली कर्मचारी संजय प्लेस में जीवन बीमा निगम की पार्किंग में एकत्रित हुए। सरकार के खिलाफ प्रदर्शन किया। प्रधानमंत्री और केन्द्रीय वित्तमंत्री के खिलाफ जम कर नारेबाजी की। सभा को संबोधित करते हुए एआईबीईए के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष एमएन राय ने सरकार पर निशाना साधा। कहा कि जब जरूरत होती है, पब्लिक सेक्टर का दोहन कर लिया जाता है। अब तो हालत यह है कि पब्लिक सेक्टर को कमजोर करके प्राइवेट सेक्टर में बैंकिंग लाने का प्रयास किया जा रहा है। सवाल उठाया कि चीन में वायरस हमले से पीड़ित लोगों को निकालने के लिए एयर इंडिया ही काम आई। निजी क्षेत्र की एयरलाइन आगे नहीं आईं।
उन्होंने कहा कि सरकार जिन योजनाओं का श्रेय ले रही है, उनको पूरा कराने में पब्लिक सेक्टर के बैंकों का योगदान रहा। इनके बिना पांच ट्रिलियन अर्थव्यवस्था का सपना देखना बेमानी है। उन्होंने कहा कि दो दिन की हड़ताल करने के बावजूद बैंकरों की मांगों पर ध्यान नहीं दिया जा रहा, जबकि कर्मी इस हड़ताल के लिए अपना वेतन कटाते हैं। तर्क दिया कि राष्ट्र हित में सबसे ज्यादा बैंकों ने काम किया। मुद्रा से लेकर नोटबंदी, जीएसटी, आधार कार्ड लिंक कराना, डीबीटीएल सहित अन्य योजनाओं में सरकारी बैंकों का ही योगदान रहा। कहा कि बैंकों में काम कई गुना बढ़ गया है, लेकिन नयी भर्ती नहीं हो रही। अवकाश के दिन भी लोगों को काम करना पड़ता है। मांग रखी कि जल्द से जल्द वेतन समझौता किया जाए।
अंकित सहगल ने कहा कि सरकार निजी और सार्वजनिक क्षेत्र की बैंकों में तुलना करती है, लेकिन यहां यह भूल जाते हैं कि निजी बैंक सामाजिक दायित्व से दूर रहती हैं। सुदूर क्षेत्रों में तो वे लोग अपनी शाखा तक नहीं खोलते। प्रदर्शन में अशोक सारस्वत, एचएन चतुर्वेदी, श्रवण कुमार, सौरभ शर्मा, वकील अली, प्रेमचंद, मनीष शर्मा, आदर्श सक्सेना, अनिल सक्सेना, पुनीत कुमार, प्रियंका सिंह, इरा सक्सेना, मोनिका, पारुल, अमिता सिंह, रीता हसीजा, तृप्ति दुबे, लाइका गोयल शामिल रहे।