छठ पूजा

भगवान भास्कर को समर्पित लोक आस्था का महापर्व छठ पूजा कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी को मनाया जाता है। छठ पर्व सूर्य की उपासना का पर्व है, इसलिए इसे सूर्य षष्ठी व्रत के नाम से भी जाना जाता है। चार दिनों का यह पर्व चतुर्थी से ही शुरू होकर सप्तमी की सबुह उगते सूर्य को अर्घ्य देने के साथ खत्म होता है। ऐसी मान्यता है कि इन दिनों में सूर्य देव और छठी मईया की अराधना करने से व्रती को सुख, सौभाग्य और समृद्धि की प्राप्ति होती है और उसकी सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं। षष्ठी देवी की पूजा से संतान को स्वास्थ्य, सफलता और दीर्घायु होने का आशीर्वाद भी मिलता है।छठ पूजा का पहला दिन नहाय खाय होता है। छठ पूजा के दूसरे दिन खरना में व्रती पूरे दिन के उपवास करते हैं। शाम के समय गुड़ की खीर, घी लगी हुई रोटी और फलों का सेवन करते हैं। तीसरे दिन यानी कार्तिक शुक्ल षष्ठी को संध्या के समय सूर्य देव को अर्घ्य दिया जाता है। बाँस की टोकरी में फलों, ठेकुआ, चावल के लड्डू आदि से अर्घ्य का सूप सजाया जाता है और नदी, तालाब या पोखर के किनारे सूर्य देव को जल और दूध से अर्घ्य दिया जाता है।