
हसीना ने कहा, 'भारत बांग्लादेश का सहयोगी है। अगर बांग्लादेश की सुरक्षा और समृद्धि बरकरार रखनी है तो ऐसा ही रहना चाहिए। यदि भारत और डॉ. यूनुस की गैर-निर्वाचित प्रशासन के बीच कोई तनाव है, तो इसका मुझसे कोई लेना-देना नहीं है।'

हसीना ने उस छात्र आंदोलन को एक आतंकी कार्रवाई बताया जिसने उनकी सरकार के खिलाफ जनविरोध खड़ा किया था। उन्होंने दावा किया कि यूनुस ने इसे विदेशी सहयोग से अंजाम दिया। हसीना ने और क्या कहा?

नाइक चरमपंथ भड़काने के आरोप में भारतीय प्राधिकारियों द्वारा वांटेड है। वह 2016 में भारत छोड़कर चला गया था। नाइक को मलेशिया में महातिर मोहम्मद के नेतृत्व वाली पूर्ववर्ती सरकार ने स्थायी निवास की अनुमति दी थी।

बांग्लादेश की पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना ने दिल्ली में निर्वासन में रहकर अपने देश लौटने की इच्छा व्यक्त की है। उन्होंने कहा है कि वे केवल तब लौटेंगी जब वहां लोकतंत्र और संविधान का सम्मान हो। उनका लक्ष्य स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव की बहाली है।

बांग्लादेश की पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना को पिछले साल देश में हुए हिंसक विरोध प्रदर्शनों के बाद पद और देश दोनों छोड़ने पर मजबूर होना पड़ा था। उन्होंने अलग-अलग मुद्दों पर अपनी बेबाक राय रखी है।

प्रदर्शनकारी नए चार्टर से नाराज हैं। उसी के खिलाफ अपना गुस्सा जाहिर करने उतरे थे। उनके अनुसार, चार्टर में उनकी चिंताओं का समाधान नहीं किया गया है। शुक्रवार को सैकड़ों लोग ढाका में संसद परिसर के बाहर जमा हो गए और प्रदर्शन करने लगे।

पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना को बीते साल देश भर में हुए हिंसक विरोध प्रदर्शनों के बाद इस्तीफा देना पड़ा था। उन्हें पद के साथ देश भी छोड़ना पड़ा था, जिसके बाद से उन्होंने भारत में शरण ली है। अब उनके खिलाफ अरेस्ट वारंट जारी किया गया है।

पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना के करीबी सहयोगी और अवामी लीग के वरिष्ठ नेता नुरुल मजीद महमूद हुमायूं 2024 में छात्र-नेतृत्व वाले आंदोलन के दौरान हत्या और तोड़फोड़ के मामलों में गिरफ्तारी के बाद जेल में थे।

शेख हसीना के वकील ने इंटरनेशनल क्राइम ट्राइब्यूनल ने कहा कि बांग्लादेश में हुए तख्तापलट के पीछे विदेशी ताकत ऐक्टिव थी। उन्होंने कहा कि आंदोलन के खिलाफ शेख हसीना ने किसी घातक हथियार का इस्तेमाल नहीं किया।

बांग्लादेश के कट्टरपंथियों ने देश भर में 100 जगहों पर सूफी संतों की मजारों पर हमले किए हैं। इससे पहले हिंदू मंदिरों, ईसाई समुदाय की चर्चों और अहमदिया समुदाय की मस्जिदों को टारगेट किया जाता रहा है। बांग्ला संस्कृति में सूफी संतों की मजारों और दरगाहों का एक लंबा इतिहास रहा है।