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मरेंगे तो वहीं जाकर जहां पर जिंदगी है... यहां तो जिस्म लाकर प्लग लगाए थे! चलो अब घर चलें... प्रवासी मजदूरों पर गुलजार की लिखी इन मार्मिक पंक्तियों ने कॉरपोरेट घरानों को भी द्रवित कर दिया है।...