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जाति का जहर। सोच की जकड़न। राजनीति का छलिया चरित्र। बाहुबल-धनबल की ठसक। झूठे सपनों का सब्जबाग। सब कुछ इतना हावी है कि असल चुनावी मुद्दे गौण हो गए हैं। जहां विकास की बात होनी चाहिए थी, पांच साल का...