
क्यों होता है ‘बर्नआउट सिंड्रोम?’ यह एक ऐसी परिस्थिति है, जो अक्सर अत्यधिक काम के दबाव से उपजती है। वे लोग, जिनके निजी जीवन में पेशेगत अनिवार्यताएं दखल देने लगती हैं, वे अवसाद अथवा हिंसक मनोवृत्ति की चपेट में आ जाते हैं…

भारत की गिनती संसार के उन देशों में होती है, जहां सर्वाधिक लोग मौसमी अति के शिकार होते हैं। यह इस सदी का रजत जयंती वर्ष है और दुख के साथ याद करना पड़ रहा है कि गुजरे 25 वर्षों में मौसम के मारे लोगों की संख्या में 269 प्रतिशत का इजाफा हुआ है…

रोटी और रोजगार की नारेबाजी करने वाले नेता चुनाव जीतने के बाद इस दिशा में क्या कोई सार्थक काम कर सकेंगे? या, इस बार भी बिहारी नौजवानों को नाउम्मीदी का सामना करना पड़ेगा? कुछ साल पहले बिहार की एक छात्रा ने पूछा था- क्या अब बिहार की बारी है?…

हम अपने आदिकालीन त्योहार को मनाते वक्त भला एक ‘विदेशी आक्रांता’ के साथ लाई बला को प्रयोग में लाकर इतने खुश क्यों होते हैं? संयुक्त राष्ट्र संघ ने पिछले दिनों चेतावनी जारी की है कि हमारा पर्यावरण तेजी से बदल रहा है और हालात हाथ से निकलने वाले हैं…

कांग्रेस और उसके सहयोगी अगर फिर से दिल्ली के तख्त पर राज करना चाहते हैं, तो उन्हें राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की इस रणनीति की काट ढूंढ़नी होगी। नागपुर में बैठे संचालकों ने इसके लिए विचार, संस्कार, स्वधर्म और संगठन का एक साथ उपयोग किया…

चुनाव आयोग ने पिछले हफ्ते जो अंतिम मतदाता सूची जारी की, उसमें 65 लाख नाम हटाकर नए 21.5 लाख जोड़े गए हैं। महागठबंधन महीनों से एसआईआर को मुद्दा बनाए हुए है। एनडीए के मजबूत जातीय समीकरणों के साथ अप्रत्याशित सौगातों के जखीरे…

साफ है, हमें अपने युवाओं को सही दिशा देने के साथ विदेशी साजिशों की काट खोजनी होगी। पर यह हो कैसे? हमारे मतों से ‘माननीय’ बने लोग अब राष्ट्रहित के मुद्दों पर भी एकमत नहीं होते।... हमारी राजनीतिक बिरादरी को ध्यान रखना चाहिए…

सन् 1981 में अंतरराष्ट्रीय शांति दिवस की घोषणा करते हुए संयुक्त राष्ट्र संघ ने अपेक्षा की थी कि कम से कम इस मौके पर एक दिन के लिए युद्ध थम जाएंगे, आतंकवादी वारदातें नहीं होंगी और अमन को लेकर आम राय बनेगी। ऐसा नहीं हुआ। अतीत की गलियों में भटके बिना…

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आज तक समाज की निचली सीढ़ी पर खड़े लोगों के लिए नई योजनाएं बनाने और उनके सरल क्रियान्वयन के तरीकों की खोज में जी-जान एक करते हैं। यही वजह उनकी लोकप्रियता को सदाबहार बनाए रखती है…

भारतीयों को सोचना ही होगा कि हम खुद तेजी से तरक्की करने वाला देश हैं, तो ऐसे में जॉर्जिया जैसे अपेक्षाकृत कमजोर अर्थव्यवस्था वाले देश में बसकर हमें भला क्या लाभ होगा? जिस देश का अतीत रक्त-रंजित गुलामी से आक्रांत, वर्तमान आशंकित…