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Hindi News खेल'अगर मेरे जीवन पर बायोपिक बने तो दीपिका पादुकोण करे मेरा किरदार'

'अगर मेरे जीवन पर बायोपिक बने तो दीपिका पादुकोण करे मेरा किरदार'

हरियाणा के शाहबाद से निकलकर 'वर्ल्ड गेम एथलीट ऑफ द ईयर' और पद्मश्री जीतने तक रानी रामपाल का उतार-चढ़ाव से भरा सफर किसी बालीवुड पटकथा से कम नहीं और भारतीय हॉकी टीम की कप्तान की इच्छा है कि अगर...

'अगर मेरे जीवन पर बायोपिक बने तो दीपिका पादुकोण करे मेरा किरदार'
एजेंसी,नई दिल्लीFri, 07 Feb 2020 03:52 PM
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हरियाणा के शाहबाद से निकलकर 'वर्ल्ड गेम एथलीट ऑफ द ईयर' और पद्मश्री जीतने तक रानी रामपाल का उतार-चढ़ाव से भरा सफर किसी बालीवुड पटकथा से कम नहीं और भारतीय हॉकी टीम की कप्तान की इच्छा है कि अगर उनके जीवन पर कोई बायोपिक बने तो दीपिका पादुकोण उनका रोल करे। खिलाड़ियों के बायोपिक के इस दौर में रानी का जीवन एक सुपरहिट बालीवुड फिल्म की पटकथा हो सकता है। इस बारे में उन्होंने भाषा को दिए इंटरव्यू में कहा ,''मेरे जीवन पर बायोपिक बने तो दीपिका पादुकोण मेरा रोल करे, क्योंकि वह खेलों से प्यार करती हैं। खेलों से प्रेम उन्हें परिवार से विरासत में मिला है और दीपिका में मुझे एक खिलाड़ी के गुण नजर आते हैं।

रूढिवादी समाज और गरीबी से लड़कर इस मुकाम तक पहुंची रानी अपने संघर्षों और अप्रतिम सफलता के दम पर लड़कियों की रोल मॉडल बन गई हैं। उन्हें हाल ही में 'वर्ल्ड गेम एथलीट आफ द ईयर' चुना गया और यह पुरस्कार पाने वाली वह पहली भारतीय और दुनिया की इकलौती हॉकी खिलाड़ी हैं। महज सात साल की उम्र से हॉकी खेल रही रानी ने कहा,''यह सफर अच्छा और संघर्ष से भरपूर रहा। यह पुरस्कार एक साल की मेहनत का नतीजा नहीं बल्कि 18-19 साल की मेहनत है। मैं कर्म में विश्वास करती हूं। यह सिर्फ किस्मत से नहीं मिला है।

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रानी के घर की आर्थिक स्थिति किसी जमाने में इतनी खराब थी कि उनके पास हॉकी किट खरीदने और कोचिंग के पैसे नहीं थे। यही नहीं समाज ने उसके खेलों में आने का भी कड़ा विरोध किया था, लेकिन अब उसी समाज की वह रोल मॉडल बन गईं हैं। उन्होंने कहा ,''आज से 20 साल पहले हरियाणा जैसे राज्य में लड़कियों को इतनी आजादी नहीं थी, लेकिन अब तो हालात बिल्कुल बदल गए हैं। बहुत अच्छा लगता है कि मुझे देखकर कइयों ने अपनी लड़कियों को खेलने भेजा। जहां पहले घर में लड़की होना अभिशाप माना जाता था, वहां यह बड़ा बदलाव है और उसका हिस्सा होना अच्छा लगता है।

पुरस्कारों के बारे में उन्होंने कहा, ''अच्छा लगता है जब आपके प्रयासों को सराहा जाता है। इससे देश के लिए और अच्छा खेलने की प्रेरणा मिलती है। ऐसे पुरस्कारों से महिला हॉकी को पहचान मिलती है, जो सबसे खास है। मैं हमेशा से टीम के लिए शत प्रतिशत देती आई हूं और आगे भी यह जारी रहेगा। रानी का बचपन आम बच्चों की तरह नहीं रहा और पार्टी, कालेज, सिनेमा की जगह सुबह उठने से रात को सोने तक हॉकी स्टिक ही उनकी साथी रही। यही नहीं, अपने दोनों भाइयों के विवाह में भी वह शामिल नहीं हो सकी।

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रानी ने कहा, ''मैं सात साल की उम्र से खेल रही हूं और कोच बलदेव सिंह काफी सख्त कोच थे। पूरे साल छुट्टी नहीं होती थी। मैंने बचपन में अपने रिश्तेदार नहीं देखे और अभी भी घर से बाहर ही रहती हूं। कई बार घर में कोई आता है तो मम्मी बताती है कि वह कौन हैं। उन्होंने कहा, ''मैं अपने दोनों भाइयों की शादी नहीं देख सकी क्योंकि शिविर में थी। मैंने इस सफलता के लिए काफी कुर्बानियां दी है, लेकिन मुझे कोई खेद नहीं है।

उम्र के इस पड़ाव पर जहां शादी को लेकर दबाव बनना शुरू हो जाता है, रानी की नजरें सिर्फ तोक्यो ओलंपिक में पदक पर लगी हैं। उन्होंने कहा, ''शादी का दबाव नहीं है, ओलंपिक का है और पदक जीतना ही लक्ष्य है। कुछ और सोच ही नहीं रही। तोक्यो में भारतीय हॉकी को वह पदक दिलाना है, जिसका इंतजार पिछले कई दशक से हम कर रहे हैं। मुझे यकीन है कि मेरी टीम ऐसा कर सकती है। इस आत्मविश्वास की वजह पूछने पर उन्होंने कहा, ''हमने ऊंची रैंकिंग वाली टीम से खेला और प्रदर्शन अच्छा रहा। भारतीय टीम संयोजन अच्छा है। फिटनेस और कौशल दोनों है, जबकि तीन चार साल पहले ऐसा नहीं था।

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