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FIFA WC 2018:एक फुटबॉलर ऐसा भी जो मजदूरी करते हुए महान खिलाड़ी बना

द्वितीय विश्व युद्ध और गरीबी की मार भी लेव इवानोविच यशिन के फुटबॉल खेलने की ललक कम नहीं कर सकी। रूस के महान गोलकीपर को बचपन में फैक्टरी में मजदूरी करनी पड़ी। तकलीफों के बावजूद वह दुनिया के महानतम...

FIFA WC 2018:एक फुटबॉलर ऐसा भी जो मजदूरी करते हुए महान खिलाड़ी बना
लाइव हिन्दुस्तान टीम,नई दिल्लीThu, 24 May 2018 06:51 PM
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द्वितीय विश्व युद्ध और गरीबी की मार भी लेव इवानोविच यशिन के फुटबॉल खेलने की ललक कम नहीं कर सकी। रूस के महान गोलकीपर को बचपन में फैक्टरी में मजदूरी करनी पड़ी। तकलीफों के बावजूद वह दुनिया के महानतम गोलकीपर बने। वह रूस में हो रहे वर्ल्डकप का प्रमुख चेहरा हैं....

12 साल की उम्र से मजदूरी
यशिन का जन्म मास्को में 22 अक्तूबर, 1929 को एक गरीब परिवार में हुआ। माता-पिता कारखाने में काम करते थे। वह 12 साल के थे, तब यूरोप द्वितीय विश्व युद्ध की चपेट में आ गया। यशिन को भी फैक्टरी में काम करना पड़ा। 18 साल की उम्र में उन्हें मास्को में ही एक मिलिट्री कारखाने में काम मिल गया।

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मंदी की मार में जुनून कायम
यशिन पहले ही गरीब थे, पर विश्व युद्ध के बाद पूरे रूस ने भयानक रूप से मंदी की मार झेली। तमाम तकलीफों के बावजूद यशिन का जुनून कम नहीं हुआ। वह पूरे दिन काम करते और बीच में मिले समय में फुटबॉल खेलते। उनकी लगन से फैक्टरी की टीम में पहला मौका मिला।

डॉयनमो से शुरुआत और अंत
फैक्टरी की टीम में खेलते हुए यशिन का खेल निखरा। इस बीच, मास्को के प्रसिद्ध क्लब डॉयनमो मास्को की नजर उन पर पड़ी। यहां से उनकी जिंदगी ने यू-टर्न लिया। डॉयनमो की टीम में वह 1950 से 1953 तक खेले। पर ज्यादा मौके नहीं मिले। इसके बावजूद उन्होंने सीनियर टीम में जगह बनाने का इंतजार किया और मौका मिलने पर चमक बिखेरी। वह जिंदगी भर इसी क्लब से खेले।

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ब्लैक स्पाइडर मैन का जादू
1954 में यशिन ने पहला अंतराष्ट्रीय मैच खेला। उन्होंने तीन ओलंपिक खेलों में भाग लिया। उनका प्रदर्शन हमेशा ही शानदार रहा लेकिन टीम कभी खिताब नहीं जीत सकी। 1958 वर्ल्ड कप में उन्होंने पहली बार शिरकत की। यह पहला वर्ल्ड कप था, जिसके मैचों का अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रसारण हुआ। उन्होंने 1962 और 1966 में भी शिरकत की। यशिन काले रंग के कपड़े पहनते थे। इस कारण उन्हें ब्लैक स्पाइडर मैन भी कहा जाता था। 1990 में पेट के कैंसर के कारण उनकी मृत्यु हुई। उन्होंने 74 अंतररष्ट्रीय और 326 क्लब मैच खेले।

सबसे बड़ा अवार्ड बैलन डि ऑर पाने वाले अकेले गोलकीपर
यशिन फुटबॉल के सबसे प्रतिष्ठित पुरस्कार 'बैलन डि ऑर' पुरस्कार पाने वाले दुनिया के एकमात्र गोलकीपर हैं। यह अवॉर्ड उन्हें 1963 में मिला। 2002 में फीफा ने जब इतिहास की ड्रीम टीम का चयन किया, तब यशिन को भी उसमे जगह दी गई। फीफा के मुताबिक यशिन ने प्रोफेशनल करियर में 150 से ज्यादा पेनल्टी किक का बचाव किया। 

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