asian games 2018: शूटर सौरभ ने हर रोज 17 km धक्के खाकर तय किया गोल्ड मेडल तक का सफर
अभावों से जूझते हुए मेरठ के सौरभ चौधरी ने बहुत कम उम्र में दुनिया में अपनी अलग पहचान बना ली है। इंडोनेशिया के जकार्ता में जारी एशियाई खेलों में गोल्ड मेडल जीतकर 16 वर्षीय सौरभ ने सिर्फ मेरठ ही नहीं...
अभावों से जूझते हुए मेरठ के सौरभ चौधरी ने बहुत कम उम्र में दुनिया में अपनी अलग पहचान बना ली है। इंडोनेशिया के जकार्ता में जारी एशियाई खेलों में गोल्ड मेडल जीतकर 16 वर्षीय सौरभ ने सिर्फ मेरठ ही नहीं पूरे देश का सिर गर्व से ऊंचा कर दिया है।
सौरभ के परिवार में जश्न का माहौल बना हुआ है। परिवार को बधाई देने के लिए भीड़ लगी हुई है। सौरभ छोटे से किसान परिवार से है और उसके लिए यहां तक का सफर तय करना बिल्कुल आसान नहीं था। पढ़ाई के साथ-साथ वो शूटिंग में भी दिन-रात मेहनत करता रहा। परिवार ने भी बेटे को आगे बढ़ाने के लिए अपने खर्चे कम किए और उसका पूरी तरह से सपोर्ट किया। घर के सारे खर्चे कम करके बेटे को एक लाख दस हजार की नई राइफल भी दिलाई।
हर रोज 17 किलोमीटर का सफर कर पाई गोल्ड की मंजिल
एशियन गेम्स में गोल्ड जीतने वाले कालीना गांव के शूटर सौरभ चौधरी के संघर्षों की कहानी भी उसकी उपलब्धि की तरह बड़ी है। किसान परिवार से ताल्लुक रखते हुए भी सौरभ चौधरी ने देश के लिए इंटरनेशनल स्पर्धा में गोल्ड लाने के ख्वाब को कभी कम नहीं होने दिया। जनपद मेरठ के कलीना गांव से 17 किलोमीटर दूर का सफर तय कर सौरभ प्रतिदिन जनपद बागपत के बिनोली की वीर शाहमल शूटिंग रेंज पर प्रशिक्षण करने के लिए आता है। किसी दिन बस मिल जाती है तो किसी दिन डग्गामार वाहन में लटक कर ही उसे यह सफर तय करना पड़ता।
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अपनी पढ़ाई के साथ-साथ निशानेबाजी का प्रशिक्षण करना काफी चुनौती भरा रहा है। सौरभ के साथ शूटिंग सीखने वाले उसके साथ ही निशानेबाज विक्रांत, सचिन, राहुल, राजेश, दीपेंद्र व सन्नी आदि बताते हैं कि सौरभ के अंदर का उत्साह और जुनून देखकर वो भी काफी उत्साहित रहते थे। जिस तरह का प्रदर्शन वो रेंज पर और बाहर आयोजित होने वाली प्रतियोगिताओं में करता था, वो काफी काबिले तारीफ है। हम सौरव के एशियन गोल्ड मेडल जीतने पर बेहद उत्साहित हैं, उसका वापस लौटने पर नायकों की तरह स्वागत किया जाएगा।
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अपने इरादे से नहीं हटा पीछे
सौरभ के जीवन में तमाम परेशानियां आईं, लेकिन उसने हार नहीं मानी। उसके पास पर्याप्त संसाधन भी नहीं थे। मुसीबतों से जूझते हुए वो रोजाना घर से दूर शूटिंग रेंज में प्रैक्टिस के लिए जाता था। वहां पर भी अंतर्राष्ट्रीय सुविधाएं नहीं थीं। इसके अलावा पढ़ाई भी पूरी करने का दबाव था। लेकिन तमाम परेशानियों को झेलते हुए उसने खुद की पहचान बनाई और पूरे विश्व में तिरंगा फहरा दिया।
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पिता ने बच्चों को बनाया कामयाब
सौरभ चौधरी भीतरी गाजियाबाद हाईस्कूल कर रहा है। परिवार में पिता जगमोहन सिंह, मां ब्रजेश देवी, बहन साक्षी, बड़ा भाई नितिन है। पिता ने मेहनत कर बच्चों को पढ़ा-लिखाकर काम किया। सौरभ का बड़ा भाई नितिन इन दिनों पुलिस भर्ती की तैयारी कर रहा है।
छोटी उम्र में बड़ा टारगेट
महज 16 साल की उम्र में बड़ा टारगेट हासिल कर पाना चुनौती भरा था, लेकिन सौरभ की हिम्मत उसके काम आई और उसने शूटिंग में नया इतिहास रच दिया। इससे पहले भी वह नेशनल में गोल्ड और अंतर्राष्ट्रीय प्रतिस्पर्धा में मेडल ला चुका है।