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सबसे सुरक्षित साधन की गंभीर चूक

एविएशन यानी हवाई परिवहन एक ऐसा उद्योग है, जिसे ‘जीरो एरर इंडस्ट्री’ कहते हैं। इसका अर्थ है कि यहां छोटी से छोटी गलती भी अक्षम्य है, क्योंकि एक मामूली चूक भी तमाम लोगों के जीवन पर भारी पड़...

सबसे सुरक्षित साधन की गंभीर चूक
हर्षवर्धन, पूर्व प्रबंध निदेशक, वायुदूत Thu, 20 Sep 2018 11:37 PM
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एविएशन यानी हवाई परिवहन एक ऐसा उद्योग है, जिसे ‘जीरो एरर इंडस्ट्री’ कहते हैं। इसका अर्थ है कि यहां छोटी से छोटी गलती भी अक्षम्य है, क्योंकि एक मामूली चूक भी तमाम लोगों के जीवन पर भारी पड़ सकती है। ऐसे में मुंबई-जयपुर जेट एयरवेज की फ्लाइट में गुरुवार को जो कुछ हुआ, वह काफी गंभीर मामला है। पहली नजर में इसे मानवीय चूक कहा जा सकता है, हालांकि पूरा सच तो जांच के बाद ही सामने आएगा।

आज जितनी भी दुर्घटनाएं होती हैं, उनमें से 70 फीसदी मानवीय चूक का नतीजा होती हैं। शेष हादसे मशीनी और तकनीकी खराबी या कुछ अन्य वजहों से होते हैं। दरअसल, विमान सेवा का लगातार विस्तार हो रहा है। छोटी-छोटी जगहों तक के लिए कई उड़ानें हैं। आकलन यह है कि देश में हर महीने एक-डेढ़ लाख विमान लैंड (रनवे पर उतरना) और टेक-ऑफ (हवा में उड़ान भरना) करते हैं। फ्लाइट्स की लगातार बढ़ती संख्या ने जहाज और केबिन क्रू (पायलट और को-पायलट), दोनों पर बेहतर प्रदर्शन का दबाव बढ़ा दिया है। यही दबाव चूक को न्योता दे रहे हैं। गुरुवार की घटना में ही यह पूछा जा रहा है कि केबिन क्रू को आराम का पर्याप्त मौका मिला था या नहीं?

पिछले हफ्ते एअर इंडिया की एक इंटरनेशनल फ्लाइट भी इसी तरह हादसे का शिकार होते-होते बची थी। नई दिल्ली से न्यूयॉर्क जा रहे उस विमान में ‘इंस्ट्रूमेंट लैंडिंग सिस्टम’ (आईएलएस) सहित कई महत्वपूर्ण उपकरण नाकाम हो गए थे। यह स्थिति बहुत भयावह हो सकती थी, मगर पायलट ने सूझ-बूझ दिखाते हुए अनहोनी टाल दी। वह पूरी तरह से तकनीकी चूक का मसला था और कहीं ज्यादा गंभीर  भी, मगर जेट एयरवेज की घटना को भी हल्के में नहीं ले सकते। आरोप है कि पायलट केबिन में मौजूद एयर प्रेशर संतुलित करने वाला स्विच दबाना भूल गया। हालांकि बाद में वह इस गलती को दुरुस्त कर सकता था, पर उसने यह भी नहीं किया। अब यह तो जांच के बाद ही पता चलेगा कि इस सबकी वजह क्या थी, मगर एयर प्रेशर अगर काम न करे, तो स्थिति कितनी गंभीर हो सकती है, यह बात इस विमान के यात्रियों की तस्वीरें देखकर समझी जा सकती है। विमान में हवा का दबाव न रहने पर यात्रियों को सांस लेने में दिक्कत आ सकती है, उन्हें घबराहट हो सकती है, और उनके नाक व कान से खून निकल सकता है। अस्थमा या दमा के मरीजों के लिए तो यह स्थिति काफी घातक मानी जाती है। हृदय-रोग वालों के लिए यह जानेलवा होती है। हालांकि इस चूक की तत्काल पहचान संभव है, इसलिए विमान में ऑक्सीजन मास्क तत्काल नीचे आ गए थे। 

विमान यात्रियों की सुरक्षा एक महत्वपूर्ण विषय है। इसके लिए विमान सेवा में कदम-कदम पर जांच-पड़ताल की जाती है। हर छोटे से छोटे उपकरण को जांचा जाता है। बावजूद इसके, नागर विमानन महानिदेशालय जैसे निगरानी तंत्र और विमानन कंपनियों के लिए यह भरोसा दिलाना काफी मुश्किल है कि कहीं कोई चूक नहीं होगी। इसकी बड़ी वजह यह है कि हवाई जहाजों की उड़ान या उसका ‘ऑपरेटिंग एनवायरमेंट’ (संचालन से जुड़ी तमाम गतिविधियां) इंसानी कौशल और विवेक पर निर्भर करता है। पायलट को इतना अधिक वेतन इसीलिए दिया जाता है, क्योंकि उसका काम बहुत  जिम्मेदारी का होता है और उसी पर यात्रियों की सुरक्षा का पूरा दारोमदार होता है।
किसी भी हवाई जहाज को उड़ान की अनुमति तमाम जांच-पड़ताल के बाद दी जाती है। मसलन, जब विमान खड़ा रहता है, तो इंजीनियर उसकी पूरी पड़ताल करते हैं। ‘रिलीज’ करने से पहले उसके तमाम उपकरणों की जांच की जाती है। जहाज के हर उपकरण की एक समय-सीमा तय है, जिन्हें नियत घंटे की उड़ान के बाद बदल दिया जाता है। इंजीनियर जब अपनी रिपोर्ट पायलट को सौंपता है, तो पायलट उसके तमाम उपकरणों की फिर से जांच पड़ताल करता है। टेक-ऑफ के समय पायलट और को-पायलट दी गई ‘चेक लिस्ट’ के अनुसार सभी जरूरी उपकरणों को फिर से परखते हैं। टेक-ऑफ के बाद भी एक ‘चेक-लिस्ट’ होती है, जिसमें उन उपकरणों की जांच की बात होती है, जिन्हें उड़ान भरते समय ऑन करना अनिवार्य माना जाता है। विमान के नियत ऊंचाई पर पहुंचने के बाद भी उपकरणों पर नजर रहती है। कदम-दर-कदम इस जांच-पड़ताल का एकमात्र उद्देश्य यही होता है कि यात्रियों को सुरक्षित यात्रा दी जाए। बेशक केबिन क्रू इतना कुशल होता है कि उसे किसी ऐसी चेक-लिस्ट की जरूरत नहीं होती, फिर भी यह उसे इसलिए दी जाती है, ताकि कोई भूल न हो जाए। जेट एयरवेज की इस ताजा घटना में भी इन तमाम नियमों का पालन हुआ ही होगा। इंजीनियर और पायलट ने एयर प्रेशर जरूर जांचा होगा। इसीलिए अभी हमें किसी नतीजे पर पहुंचने से बचना चाहिए।

भले ही विमान में कोई भी गलती एक खतरा होती है, मगर दूसरा सच यह भी है कि यदि उसके एक उपकरण ने काम करना बंद कर दिया, तो उससे कई दूसरी परेशानियां भी खड़ी हो जाती हैं। यानी यहां एक ‘एरर’ से दूसरी ‘एरर’ बनती है। इसे हम ‘कंपार्उंंडग ऑफ फॉल्ट्स’ (गलतियों का योग) कहते हैं। जैसे कि यदि पायलट कोई एक उपकरण ऑन करना भूल जाए, तो उसके ऑन न होने से दूसरे उपकरणों के काम-काज पर भी बुरा असर पड़ता है और वे भी नाकाम हो सकते हैं। 

इन तमाम चुनौतियों के बाद भी एविएशन एक संगठित और व्यवस्थित उद्योग है। मुझे याद है कि कुछ साल पहले हॉर्वर्ड के एक डॉक्टर मेरे पास आए थे। वह एक महत्वपूर्ण विषय पर शोध कर रहे थे। उनका कहना था कि कई बार डॉक्टरों की लापरवाही से ऑपरेशन के समय मरीज के साथ कुछ अनहोनी हो जाती है, तो क्यों न ऐसी कोई ‘चेक-लिस्ट’ बने, ताकि डॉक्टर ऐसी गलती न कर सकें। वह एविएशन के ‘चेक-लिस्ट सिस्टम’ को अपने पेशे में उतारना चाहते थे। मैं इसे एविएशन इंडस्ट्री की उपलब्धि मानता हूं। दूसरे क्षेत्र के लोग भी इसके सुरक्षा मानकों को स्वीकार कर रहे हैं, तभी तो हवाई जहाज यातायात का सबसे सुरक्षित साधन माना जाता है। (ये लेखक के अपने विचार हैं)

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