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स्लिम दिखने के लिए सेहत से खिलवाड़

नॉर्वे की स्की जंपिंग स्टार मारेन लुंडबी ने प्रतिस्पर्धी खेलों में जानबूझकर कम खाने के बारे में चर्चा को हवा दी है. विशेषज्ञों का कहना है कि जानबूझकर कम खाने से ईटिंग डिसऑर्डर हो सकता है और इसके...

स्लिम दिखने के लिए सेहत से खिलवाड़
डॉयचे वेले,दिल्लीFri, 22 Oct 2021 05:30 PM
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नॉर्वे की स्की जंपिंग स्टार मारेन लुंडबी ने प्रतिस्पर्धी खेलों में जानबूझकर कम खाने के बारे में चर्चा को हवा दी है. विशेषज्ञों का कहना है कि जानबूझकर कम खाने से ईटिंग डिसऑर्डर हो सकता है और इसके गंभीर परिणाम हो सकते हैं.खेल, भूख, ईटिंग डिसऑर्डर, ओलंपिक, सेहत, स्वास्थ्य, डायटिंग, मोटापा, वजन सबरीना मॉकेनहॉप्ट ने डीडब्ल्यू को बताया, "मुझे हमेशा अतीत में भी कहा गया था कि सामने पेंसिल चलती हैं, रबड़ नहीं. यह बात आपको कभी-कभी ही सुनने को मिल सकती है, लेकिन जल्दी ही आपकी दिमाग में बैठ सकती है.Ó 40 वर्षीय मॉकेनहॉप्ट लंबी दूरी की धावक रह चुकी हैं. इन्होंने अपने करियर में 40 जर्मन चैंपियनशिप खिताब जीते हैं. वह कहती हैं, "मैं कभी बहुत पतली नहीं थी. शायद इसलिए मेरा करियर इतना लंबा था. मुझे नहीं लगता कि 20 साल की उम्र के जो धावक अभी पतले-दुबले हैं वे 35 साल की उम्र तक दौड़ रहे होंगे" नॉर्वे की स्की जंपिंग स्टार मारेन लुंडबी ने हाल ही में शीर्ष स्तर के खेल में कम खाने की वजह से होने वाले ईटिंग डिसऑर्डर के खतरे के बारे में चर्चा को फिर से हवा दी है. ओलंपिक और विश्व स्तर पर चैंपियन रह चुकीं लुंडबी ने सभी को हैरान करते हुए अक्टूबर की शुरुआत में, चीन में 2022 में होने वाले शीतकालीन ओलंपिक के पूरे सेशन को छोड़ने का फैसला किया. 27 वर्षीय लुंडबी ने एक टीवी चैनल को दिए साक्षात्कार में कहा, "मेरा वजन सीमा से कुछ किलो ज्यादा है. मैं वजन कम करने के लिए बेवजह की चीजें नहीं करूंगी" लुंडबी ने कहा कि वह युवा एथलीटों को भी एक संदेश देना चाहती हैं, "सामान्य तौर पर नियंत्रित वजन कोई समस्या नहीं होनी चाहिए. आप उसके साथ सब कुछ कर सकते हैं" खतरनाक है ईटिंग डिसऑर्डर जर्मनी के ट्यूबिंगेन यूनिवर्सिटी हॉस्पिटल में प्रोफेसर और ईटिंग और वेट डिसऑर्डर की विशेषज्ञ कटरीन गील ने डॉयचे वेले को बताया, "मुझे लगता है कि वह बिल्कुल सही काम कर रही हैं. वह स्वस्थ और बेहतर तरीके से व्यवहार कर रही हैं" गेल ने विस्तार से बताया, "शीर्ष स्तर के खेल में हमेशा बेहतर प्रदर्शन करने का दबाव होता है.

प्रतिस्पर्धी एथलीट बेहतर प्रदर्शन करने के लिए, कुछ हद तक खुद को प्रताड़ित भी करते हैं और दर्द भी सहते हैं. शायद कभी-कभी सीमा से आगे भी निकल जाते हैं. इसमें खाने पर सख्ती से नियंत्रण करना भी शामिल है" वह कहती हैं, "अगर आप ईटिंग डिसऑर्डर की चपेट में आ गए, तो इससे बाहर निकलना काफी मुश्किल हो जाता है" ट्यूबिंगेन क्लिनिक में अभिजात वर्ग के एथलीटों के लिए रेड-एस (RED-S) परामर्श है. इसमें RED-S का मतलब है, ‘रिलेटिव एनर्जी डेफिसिट इन स्पोर्ट्स'. जो लोग अपने शरीर का बहुत ज्यादा इस्तेमाल करते हैं और पर्याप्त कैलरी नहीं लेते हैं, तो उन्हें स्वास्थ्य से जुड़ी गंभीर समस्या हो सकती है. इस परामर्श केंद्र की प्रमुख और स्पोर्ट्स मेडिसिन विशेषज्ञ क्रिस्टीन कोप्प कहती हैं, "उदाहरण के लिए, अगर 20 के दशक की उम्र वाली किसी महिला एथलीट को पीरियड नहीं आता है, तो यह उसके लिए खतरे की घंटी है. इसके अलावा अगर उन्हें हाइपोथायरॉयडिज्म है, तो थकान और अवसाद हो सकता है. ऐसा वजन कम होने की वजह से भी हो सकता है" स्की जंपिंग के अलावा, ईटिंग डिसऑर्डर के ज्यादा खतरे वाले खेलों में जिमनास्टिक, डाइविंग, ट्रायथलॉन, लंबी दूरी की दौड़, बायथलॉन, क्रॉस-कंट्री स्कीइंग वगैरह शामिल हैं. सोशल मीडिया पर रोल मॉडल स्की जंपिंग स्टार लुंडबी के साथ साक्षात्कार की तरह ही, ट्यूबिंगेन में परामर्श के दौरान अक्सर अपने बारे में चिंतित लोगों या उनके माता-पिता की आंखों से आंसू बहते हैं. कोप्प ने डॉयचे वेले को बताया, "उन्हें अपने बेटे या बेटी पर गर्व था जिन्होंने खेल में सफलता पाई. लेकिन अचानक घर पर बना हर खाना समस्या बन जाता है" वह आगे कहती हैं, "कई मामलों में, बच्चों की जान जा सकती है. वहीं, दूसरी ओर उनका बेटा या बेटी खेल के बिना नहीं रह सकते हैं. यह लगभग किसी नशे जैसा हो जाता है. ऐसे में इसका इलाज सिर्फ पेशेवर चिकित्सक ही कर सकते हैं" कोप्प के रेड-एस परामर्श में सलाह लेने वालों में, औसतन अगर एक पुरुष होता है, तो 10 महिलाएं होती हैं.

यह मोटे तौर पर ईटिंग डिसऑर्डर में महिला और पुरुष का अनुपात है. मनोवैज्ञानिक गील कहती हैं कि रोगी के दृष्टिकोण और व्यवहार के अलावा समाजिक कारण भी बड़ी भूमिका निभाते हैं. वह कहती हैं, "एनोरेक्सिया क्लासिक फीमेल डिसऑर्डर है. स्लिम बने रहना भी एक आदर्श की तरह स्थापित होता जा रहा है. यह स्थिति महिलाओं और लड़कियों पर विशेष रूप से दबाव डाल सकती है. हमारे पश्चिमी देशों में सोशल मीडिया के जरिए भी स्लिम रहने को काफी बढ़ावा दिया जा रहा है" खेल चिकित्सक कोप्प को भी ऐसा अनुभव हुआ है. वह ‘स्टूपिड इमेज ऑफ ब्यूटी' का दोष देती हैं जिसे सोशल मीडिया के जरिए और अधिक बढ़ावा दिया जा रहा है. वह कहती हैं, "मेरे सामने युवा महिला एथलीट बैठी हैं जिनके रोल मॉडल कुछ प्रभावशाली लोग हैं. ये लोग यूट्यूब पर दावा करते हैं कि आपको पतला और चुस्त होना चाहिए, शरीर में फैट नहीं होना चाहिए, एक विशेष तरीके से खाना चाहिए! लड़कियां खुद को आईने में देखती हैं और कहती हैं कि मुझे भी उनके जैसा ही बनना है और वे फिर उसी तरह काम करने लगती हैं" प्रतिद्वंदियों से तुलना गेल के मुताबिक, इस प्रक्रिया को अक्सर बाहर से मजबूती दी जाती है. खाने को लेकर शुरू किए गए प्रयोग से शुरुआत में उपलब्धि की भावना मिलती है. जैसे, जब प्रदर्शन में सुधार होता है या जब कोच या टीम के साथी कहते हैं, ‘अरे वाह! आपने तो वजन कम कर लिया है.' आसपास के माहौल से भी दबाव बन सकता है. जैसे कि लंबी दौड़ की खिलाड़ी मॉकेनहॉप्ट कहती हैं, "जब मुझे एक बार ट्रेनिंग के दौरान पहाड़ पर चढ़ने में परेशानी हुई, तो कोच ने कहा, 'अपने आप को देखो!' जब आपके शरीर के आधार पर कोई ऐसे बोलता है, तो दबाव बढ़ जाता है" वह कहती हैं कि यह स्थिति उस समय और भी कठिन हो जाती है जब आप अपनी तुलना अपने प्रतिद्वंदियों से करते हैं. व्यक्तिगत उदाहरण के तौर पर वह लंदन में 2012 में हुए ओलंपिक की एक घटना का जिक्र करती हैं.

वह कहती हैं, "मैं वाकई उससे ईर्ष्या करती थी. वह काफी पतली थी, लेकिन वह मुझसे तेज दौड़ सकती थी. मुझे आश्चर्य हुआ कि वह यह कैसे कर सकती है. और उसने यह कहा कि, ‘मैं अभी भी बहुत मोटी हूं.' इससे मैं और असहज महसूस करने लगी" कोई बदनाम नहीं होना चाहता मॉकेनहॉप्ट ने कहा कि उस धावक ने लंदन में अच्छा प्रदर्शन किया, लेकिन एक साल बाद उसका करियर समाप्त हो गया. खुद मॉकेनहॉप्ट ने अपने करियर में एक बार ज्यादा प्रशिक्षण लेने और कम खाने की कोशिश की थी, लेकिन इसका उल्टा असर हुआ और उनका प्रदर्शन खराब हो गया. ईटिंग डिसऑर्डर के खतरे के बारे में खेल संघों के बीच हाल के वर्षों में जागरूकता बढ़ी है. यह बात अंतर्राष्ट्रीय ओलंपिक समिति तक पहुंच गई है. मनोवैज्ञानिक गील कहती हैं, "कई एथलीट ईटिंग डिसऑर्डर की समस्या से जूझते हैं और इसे जाहिर नहीं करना चाहते हैं. वे इसे बदनामी के तौर पर देखते हैं. इससे उनके आसपास मौजूद लोगों को भी इस समस्या के बारे में पता लगाना मुश्किल हो जाता है" कोप्प भी इस बात से सहमत हैं. वह कहती हैं, "कोई भी मीडिया के सामने यह कहना पसंद नहीं करता है कि मुझे ईटिंग डिसऑर्डर है. और मैं केवल तभी खेल सकता हूं जब मैं बाथरूम जाकर आऊं और पहले से तीन बार ज्यादा थूकूं. कोई भी बदनाम नहीं होना चाहता है".

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