सांप्रदायिक सौहार्द की अनूठी मिसाल, राजस्थान के इन गांवों में हिन्दू भी रखते हैं रोजे
हिन्दू-मुस्लिम सांप्रदायिक सौहार्द की मिसाल पेश करते हुए बाड़मेर जिले के कई गांवो में हिंदू पूरे रमज़ान के दौरान रोजे रखते हैं और ईद पर मुस्लिम भाइयों के साथ पूरी शिद्दत से खुशियां बांटते हैं।
जहां एक ओर देश-प्रदेश के विभिन्न इलाकों से हिन्दू-मुस्लिम तनाव की खबरें सामने आ रही हैं, वहीं दूसरी ओर राजस्थान के सीमावर्ती बाड़मेर जिले के कई गांव हिन्दू-मुस्लिम सांप्रदायिक सौहार्द की अनूठी मिसाल पेश कर रहे हैं। इन गांवों के हिन्दू-मुस्लिम संस्कृति की ऐसी साझाी विरासत पेश करते हैं कि दोनों समुदायों मे अंतर पता कर पाना भी मुश्किल लगता है। यहां के कई गांवो में हिंदू पूरे रमज़ान के दौरान रोजे रखते हैं और ईद पर मुस्लिम भाइयों के साथ पूरी शिद्दत से खुशियां बांटते हैं।
सालों से चली आ रही है परंपरा
अपने मुस्लिम पड़ोसियों के साथ रमजान के दौरान रोजे रखने की यह परंपरा बरसों से चली आ रही है। यहां के हिन्दू परिवारों के लोग पांच रोजे रखकर भाईचारे की मिसाल पेश करते हैं। विभाजन के बाद इन सीमावर्ती गांवों में सिंध और पाकिस्तान से आए हिन्दू और मुस्लिम परिवारों में आज भी वैसे ही रिश्ते हैं, जैसे विभाजन से पहले थे। उनके पहनावे, बोलचाल, खान-पान सबकुछ लगभग एक जैसे हैं।
पीर पिथोरा के हैं अनुयायी
1947 में भारत-पाक विभाजन के बाद हजारों की तादाद में हिन्दू परिवार पाकिस्तान से विस्थापित होकर भारत आ गए थे और राजस्थान के सीमावर्ती जिलों में बस गए। इनमें से अधिकांश लोग पीर पिथोरा के अनुयायी है, जो पाकिस्तान में सिंधी मुसलमानों के ईष्ट हैं। सिंध में बड़ी तादाद में हिन्दू भी पीर पिथोरा में आस्था रखते हैं। सामाजिक कार्यकर्ता नरेन्द्र तनसुखानी ने बताया कि बाड़मेर जिले के गोहड़ का तला, सरूपे का तला, आरबी की गफन, नवातला जैसे कई सरहदी गांवों में पाक विस्थापित हिन्दू परिवार पीर पिथोरा के अनुयायी हैं और वे रोजे रखते हैं।
ना रीति रिवाजों मे फर्क, ना पहनावे में
आरबी की गफन के मोहम्मद हनीफ ने बताया कि हमारे गांवों में हिन्दू-मुस्लिम परिवारों में भेद करना बड़ा मुश्किल है। बकौल हनीफ हमारे रीति रिवाजों में भी कोई ज्यादा फर्क नहीं है। शादी-विवाह, मृत्यु, त्योहार, खान-पान पहनावा यहां तक की हमारी भाषा में भी एक जैसी समानता है। गांव के ही पाताराम ने बताया कि उनके पिताजी भी बरसों से रोजे रखते आए है और वे भी रोजे रखते है। पाताराम के मुताबिक पीर पीथौरा के सारे मानने वाले रोजे रखते है। उनमे से कुछ पुरा महीना रोजे रखते है तो कुछ एक सप्ताह या दो सप्ताह, लेकिन रखते जरूर है।
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