गहलोत के 2020 के घाव नहीं भरे, पायलट को अब भी कह देते हैं निकम्मा, बगावत वाली जुलाई का 'दर्द' नहीं भूल पा रहे सीएम गहलोत; जानें वजह
राजस्थान की राजनीति में 12 जुलाई की खास अहमियत है। दो साल पहले सचिन पायलट ने बगावत की थी। पायलट के मैसेज से हड़कंप मच गया था। राजस्थान गिरने वाली है। इस सियासी भूचाल की शुरुआत 11 जुलाई को हुई थी।

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राजस्थान की राजनीति में 12 जुलाई की खास अहमियत है। दो साल पहले सचिन पायलट ने बगावत की थी। पायलट के मैसेज से पूरे देश में हड़कंप मच गया था। राजस्थान गिरने वाली है। इस सियासी भूचाल की शुरुआत 11 जुलाई को हुई। जब सचिन पायलट 19 विधायकों को लेकर गुड़गांव के होटल में जा बैठे। बगावत के 2 साल बाद भी सीएम गहलोत और सचिन पायलट के बीच मधुर संबंध नहीं बन पाए है। सीएम गहलोत पायलट को अब भी गाहे-बगाहें निकम्मा कह देते हैं। डिप्टी सीएम के पद से बर्खास्त करने के बाद सचिन पायलट आज भी बिना किसी पद के है। हालांकि, पायलट अपने समर्थक विधायकों और नेताओं को कैबिनेट और राजनीतिक नियुक्तियों में एडजस्ट कराने में सफल रहे हैं।
गहलोत सियासी संकट को नहीं भूल पाते
बगावत के बाद 2 साल बाद भी गहलोत कैंप और पायलट कैंप में सुलह हो गई। लेकिन दिल नहीं मिल पा रहे हैं। सीएम गहलोत की पायलट को लेकर अब तक बनी नाराजगी बनी हुई है। 2020 के घाव आज भी हरे हैं। वह न खुद उस सियासी संकट के समय को भूलते हैं और न ही पायलट समेत राजस्थान के सभी विधायकों को ये भूलने देते हैं। गहलोत सियासी संकट के समय को याद भी करते हैं। उस समय विधायकों की खरीद-फरोख्त के आरोप लगाते हुए सचिन पायलट को न केवल सियासी संकट के लिए जिम्मेदार ठहराते हैं। यही नहीं जो नकारा-निकम्मा शब्द उन्होंने साल 2020 में सचिन पायलट के लिए इस्तेमाल किया था, आज भी वह उस शब्द का इस्तेमाल पायलट के लिए करने से नहीं चूकते हैं। आज भी गहलोत और पायलट के बीच कुर्सी की लड़ाई पहले की तरह बनी हुई है।
पायलट को दो साल बाद भी बिना किसी पद
सचिन पायलट को दो साल बाद भी कोई पद नहीं मिला है। लेकिन आलाकमान की नजरों में पायलट के भाव जरूर बढ़ गए है। किसी भी राज्य का विधानसभा चुनाव हुआ हो या फिर उपचुनाव, सचिन पायलट हर राज्य में कांग्रेस के स्टार प्रचारक के तौर पर भेजे गए हैं। पार्टी की जीत के लिए संघर्ष करते नजर आए हैं। सचिन पायलट के संघर्ष को कांग्रेस आलाकमान भी देख रहा है। हाल ही में राहुल गांधी ने भी पायलट के धैर्य की तारीफ की है। इसके बावजूद अब तक इंतजार इस बात का है कि पायलट को उनके धैर्य का सियासी लाभ कब मिलेगा? 2 साल बाद भी राजस्थान की राजनीति का सबसे बड़ा यक्ष प्रश्न यही बना हुआ है।
