'मौसम वैज्ञानिक भी फेल', कुछ ऐसे हैं गहलोत-पायलट कैंप के नेता; पढ़िये ये रिपोर्ट
राजस्थान की राजनीति में भी मौसम वैज्ञानिक कम नहीं है। गहलोत-पायलट कैंप के नेताओं ने जिस तरह से पाला बदल रहे हैं उनके सामने मौसम वैज्ञानिक भी फेल है। ये नेता सुविधा के हिसाब से पाला बदलते रहे हैं ।
Ashok Gehlot News:राजस्थान की राजनीति में भी पूर्व केंद्रीय मंत्री रामविलास पासवान की तरह मौसम वैज्ञानिक कम नहीं है। गहलोत-पायलट कैंप के नेताओं ने जिस तरह से पाला बदल रहे हैं। उससे उनकों मौसम वैज्ञानिकों की श्रेणी में रखा जा सकता है। प्रदेश को नया मुख्यमंत्री मिलने की चर्चाओं के बीच दोस्त और सियासी दुश्मन बदल गए। राजस्थान के सियासी संकट में गहलोत-पायलट गुट के नेताओं के पाला बदलने की खबरें चल रही है। पायलट की बगावत के समय गहलोत सरकार को बचाने वाले बसपा मूल के 6 विधायक अब पायलट कैंप साथ खुलकर खड़े हैं। जबकि पायलट गुट के माने जाने वाले दो मंत्रियों का झुकाव गहलोत कैंप की तरफ है।
मंत्री गुढ़ा कांग्रेस की विचारधार को नहीं मानते, अब बदल गए
गहलोत का गुणगान करने से नहीं थकने वाले मंत्री राजेंद्र सिंह गुढ़ा ने सबसे बड़े मौसम विज्ञान बन गए। राजेंद्र गुढ़ा ने खुलकर पायलट का समर्थन कर दिया है। जबकि ये ही राजेंद्र गुढ़ा है जिनकी वजह से पायलट गहलोत की सरकार को नहीं गिरा पाए थे। गहलोत गुट के विधायक खिलाड़ी लाल बैरवा खुलकर गहलोत का विरोध कर रहे हैं। बैरवा विरोध को हवा देने के लिए अजय माकन और दिग्विजय सिंह से मिल चुके हैं। हालांकि, बसपा से कांग्रेस में शामिल हुए विधायकों का कहना है कि हम कांग्रेस आलाकमान के साथ है। लेकिन मंत्री राजेंद्र सिंह गुढ़ा को कांग्रेसी नहीं मानते हैं। नाम बहुत है। जिनके सामने बड़े-बड़े मौसम वैज्ञानिक भी फेल है। राजस्थान प्रदेश कांग्रेस कार्यालय में जनसुनवाई के दौरान राजेंद्र गुढ़ा ने मीडिया से बात करते हुए कहा कि वह कांग्रेस की विचारधारा का नहीं है। लेकिन अब उनके लिए पार्टी आलाकमान ही सबकुछ है। आपकों बता दें राजेंद्र गुढ़ा समेत 6 विधायक बसपा छोड़ कांग्रेस में शामिल हुए थे।
पायलट गुट के नेता अब गहलोत के साथ
दूसरा उदाहरण पायलट गुट का है। पायलट गुट के माने जाने वाले पर्यटन मंत्री विश्वेंद्र सिंह ने तो दावा किया है कि सीएम अशोक गहलोत अपना तीसरा कार्यकाल भी पूरा करेंगे। वर्ष 2020 में विश्वेंद्र सिंह उन विधायकों में शामिल थे जो पायलट कैंप के साथ गुड़गांव के मानेसर में एक होटल में ठहरे थे। लेकिन अब हालात बदल गए है। जबकि विश्वेंद्र सिंह का बेटा खुलकर पायलट का समर्थन कर रहा है। मंत्री विश्वेंद्र सिंह और उनके बेटे के बीच अदावत जगजाहिर है। पंचायती राज मंत्री रमेश मीना ने खुलकर पत्ते नहीं खोले हैं। लेकिन उनकी खामोशी पायलट का विरोध करने की ओर संकेत कर रही है। दोनों मंत्रियों को 2020 में पायलट की बगावत की वजह से मंत्री पद से बर्खास्त कर दिया था। पायलट की बगावत के समय मंत्री विश्वेंद्र सिंह ने सीएम गहलोत का मुखर होकर विरोध किया था। राजनीति में कोई किसी का हमेशा दोस्त नहीं होता न ही हमेशा दुश्मन, सब समय पर निर्भर करता है। बिहार के बाद राजस्थान में भी यह वाक्या एकदम सच साबित हो रहा है।
प्रदेश प्रभारी अजय माकन की भूमिका संदिग्ध
सोशल मीडिया पर राजस्थान प्रभारी अजय माकन से जुड़ा वीडियो सोशल मीडिया पर तेजी से वायरल हो हो रहा है। अजय माकन के कमरे में पायलट कैंप के विधायक खिलाड़ी लाल बैरवा भी दिखाई दे रहे हैं। आरोप है कि अजय माकन गहलोत सरकार को अस्थिर करने का षड्यंत्र रच रहे हैं। लाइव हिंदुस्तान वीडियो की सत्यता की पुष्टि नहीं करता है। गहलोत कैंप के नेता अजय माकन के वीडियो को जमकर शेयर कर रहे हैं। चर्चा है कि सीएम गहलोत ने अजय माकन का राजस्थान से राज्यसभा सदस्य बनाने से इंकार कर दिया था। गहलोत का झुकाव रणदीप सिंह सुरजेवाला की तरफ था। अजय माकन हरियाणा से चुनाव लड़े और हार गए।
संख्या बल के हिसाब से गहलोत का पलड़ा भारी
राजस्थान विधानसभा में कांग्रेस के पास 102 विधायक है। 200 सदस्यीय विधानसभा में स्पष्ट बहुमत के लिए 101 विधायकों की आवश्यकता होती है। संख्या गणित के हिसाब से सीएम गहलोत का पलड़ा भारी है। पूरी कैबिनेट गहलोत के साथ खड़ी है। स्पीकर सीपी जोशी भी गहलोत के पक्ष में खड़े हो सकते हैं। हालांकि, इन गहलोत कैंप के नेताओं का कहना है कि हम पार्टी आलाकमान के फैसले का सम्मान करेंगे, लेकिन हम चाहते हैं कि मानेसर गैंग का सीएम नहीं बने। पार्टी आलाकमान 102 विधायकों में से किसी को भी मुख्यमंत्री बना दें। हमें कोई एतराज नहीं है। विधायकों के मन की बात पार्टी आलाकमान सुनेगा या नहीं यह देखना होगा। हालांकि, प्रदेश की सियासी तस्वीर पूरी तरह साफ नहीं हो पाई है। लेकिन संकेत मिल रहे हैं कि सचिन पायलट की राजस्थान के सीएम बन सकते है। सीएम गहलोत ने गुरुवार को दिल्ली में सोनिया गांधी से मिलकर सियासी घटनाक्रम पर माफी मांग ली है। ऐसे में ऊपरी तौर पर भले ही संकट टल गया हो, लेकिन संकट के बादल उमड़-घुमड़ कर राजस्थान पर छाए रहेंगे।