अशोक गहलोत-सचिन पायलट में समझौते के मायने क्या, जादूगर का फिर चल गया जादू?
राजस्थान में कांग्रेस की सियासी तकदीर ने एक बार फिर करवट ली है। मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और सचिन पायलट के बीच बगावत थमती नजर आ रही है। करीब दो महीने के समय के फेर में यहां कांग्रेस ने बहुत कुछ देखा है।

राजस्थान में कांग्रेस की सियासी तकदीर ने एक बार फिर करवट ली है। मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और सचिन पायलट के बीच बगावत थमती नजर आ रही है। करीब दो महीने के समय के फेर में यहां कांग्रेस ने बहुत कुछ देखा है। समर्थकों की बगावत के बाद गहलोत यहां विलेन भी बने। सचिन पायलट के ऊपर गद्दार की टिप्पणी करके उन्होंने तमाम लोगों को बेचैन भी किया। लेकिन तमाम उठापटक के बीच एक बार फिर वह पार्टी के लिए ‘एसेट’ घोषित हो चुके हैं। मंगलवार को जब अशोक गहलोत ने केसी वेणुगोपाल की उपस्थिति में सचिन पायलट के साथ हाथ उठाकर एकता का संदेश दिया तो लोगों के जेहन में एक ही सवाल उठ रहा था, क्या जादूगर का जादू फिर चल गया?
ऐसा हुआ था दो महीने पहले
करीब दो महीने पहले की बात है। राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत कांग्रेस अध्यक्ष पद के तगड़े दावेदार बताए जा रहे थे। कांग्रेस आलाकमान के आदेश दिल्ली से अजय माकन और मल्लिकार्जुन खड़गे जयपुर पहुंच चुके थे। यहां कांग्रेस विधायक दल की बैठक में सचिन पायलट को अगला सीएम चुनने के लिए एक प्रस्ताव पास होना था। लेकिन यह बैठक कभी शुरू ही नहीं हो सकी। गहलोत गुट के 92 विधायक बैठक में शामिल होने की जगह, स्पीकर सीपी जोशी के घर पहुंच गए। इन लोगों ने स्पीकर को सामूहिक इस्तीफा सौंप दिया। अजय माकन और मल्लिकार्जुन खड़गे को कुछ समझ में नहीं आया। दोनों दिल्ली पहुंचे। अगले कुछ दिनों में सीएम अशोक गहलोत की इमेज बदल चुकी थी। उन्होंने सोनिया गांधी वह अध्यक्ष पद की रेस से हट गए। सोनिया गांधी से सॉरी बोला और राजस्थान सीएम की कुर्सी पर बने रहे।
आलाकमान को भी चुनौती
माना गया था कि इसके बाद अशोक गहलोत खामोशी का रुख अख्तियार कर लेंगे। लेकिन बजाए इसके गहलोत का रवैया और ज्यादा आक्रामक हो गया। वह गाहे-बगाहे सचिन पायलट पर हमला बोलते रहे। कभी उन्होंने सचिन पायलट को निकम्मा-नकारा कहा तो कभी गद्दार तक कह डाला। सिर्फ इतना ही नहीं, जिस अडाणी को राहुल गांधी पानी-पीकर कोसते रहे हैं, उनके साथ ही मंच शेयर करके गहलोत ने आलाकमान को भी चुनौती दे डाली। इतना ही नहीं, उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ भी मंच शेयर किया था।
राहुल की हिदायत का असर? गद्दार विवाद के बाद गहलोत-पायलट पहली बार साथ
फिर ऐसी क्या मजबूरी
अब मंगलवार को जयपुर में कांग्रेस संगठन सचिव केसी वेणुगोपाल के सामने अशोक गहलोत ने सचिन पायलट के साथ एकता का ऐलान कर दिया। दोनों नेताओं ने हाथ उठाकर संदेश दिया कि दोनों के बीच सब ठीक है। इसके पीछे कई वजहें हैं। सबसे अहम वजह है राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा। यह यात्रा चार दिसंबर को झालावाड़ होते हुए राजस्थान में एंट्री करेगी। इसके बाद यात्रा कोटा, बूंदी, सवाईमाधोपुर, दौसा, अलवर आदि जिलों से गुजरेगी। भारत जोड़ो यात्रा 17 दिन तक राजस्थान में रहेगी और इस दौरान कुल 521 किलोमीटर का सफर तय होगा। ऐसे में राहुल गांधी और कांग्रेस नहीं चाहती थी कि इस अहम यात्रा से पहले राजस्थान में किसी तरह का विवाद रहे। माना जा रहा है कि इसीलिए एक दिन पहले ही राहुल ने दोनों नेताओं को पार्टी की धरोहर बताकर संकेत दे दिया था। ऐसे में गहलोत ने भी विवाद को आगे न बढ़ाते हुए सचिन पायलट से समझौता करने में ही समझदारी दिखाई।
फिर से चला दिया जादू
जिस तरह से बीते दो महीनों में हालात रहे हैं, उसमें लगातार सीएम की कुर्सी पर बने रहना। सचिन पायलट के खिलाफ बयान और आलाकमान को चुनौती देते रहना, बहुत बड़ी बात मानी जाएगी। इसके बाद बदले हुए हालात में उस शख्स के साथ फिर से दोस्ती कर लेना, जिसे दो दिन पहले ही गद्दार माना कहा हो, गहलोत की जादूगरी से जोड़ा जा रहा है। बता दें कि गहलोत के पिता लक्ष्मण सिंह बेहतरीन जादूगर थे और खुद अशोक गहलोत ने भी कई जगहों पर जादू का प्रोग्राम किया है। ऐसे में 25 सितंबर से 29 नवंबर तक चले राजस्थान कांग्रेस में चले घटनाक्रम को देखकर लोग एक बार फिर कहने पर विवश हैं कि जादूगर ने जादू चला दिया।