
वो हज-उमरा के लिए जाना चाह रहा, कैसे कर दें इनकार; मीलॉर्ड ने दे दी दो महीने की छूट
संक्षेप: HC ने कहा कि आपराधिक मामला लंबित होने के कारण किसी आरोपी को उसे धार्मिक अनुष्ठान में भाग लेने से नहीं रोक सकते। ऐसा करना संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत मिले अधिकारों का उल्लंघन होगा। इस आधार पर कोर्ट ने उसे दो महीने की मोहलत मंजूर कर दी।
राजस्थान हाई कोर्ट ने बुधवार (30 जुलाई) को भारतीय दंड संहिता की धारा 498ए यानी घरेलू हिंसा मामले के एक आरोपी को धार्मिक अनुष्ठान के लिए मक्का-मदीना जाने की इजाजत दे दी है। इसके साथ ही अदालत ने हज और उमरा जैसे धार्मिक अनुष्ठान करने के लिए आरोपी की उस अर्जी को स्वीकार कर लिया, जिसमें उसने विदेश जाने के लिए दो महीने की मोहलत मांगी थी। अदालत ने उसकी अर्जी मंजूर करते हुए कहा कि आपराधिक मामला लंबित होने के कारण धार्मिक उद्देश्यों के लिए विदेश यात्रा की अनुमति देने से इनकार करना संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत प्रदत्त अधिकारों का उल्लंघन है। कोर्ट ने कहा कि

जस्टिस अनूप कुमार ढांड की पीठ ने इसके साथ ही सभी अधीनस्थ न्यायालयों को न्यायिक निर्देश जारी करते हुए कहा कि जब भी किसी अभियुक्त द्वारा विदेश यात्रा के लिए आवेदन प्रस्तुत किया जाता है, तो अनुमति देने/न देने का स्पष्ट आदेश पारित किया जाना चाहिए, ताकि पासपोर्ट प्राधिकरण को उस पर उचित निर्णय लेने में सहायता मिल सके।
निचली अदालतों को साफ संदेश
लाइव लॉ की रिपोर्ट के मुताबिक, पीठ ने अपने फैसले में कहा, “इस अदालत ने कई अवसरों पर यह देखा है कि स्पष्ट और विशिष्ट आदेश पारित नहीं होने के कारण, पासपोर्ट प्राधिकरण उचित निर्णय लेने की स्थिति में नहीं होता है। इसलिए, सभी अधीनस्थ न्यायालयों से यह अपेक्षा की जाती है कि जब भी कोई अभियुक्त द्वारा विदेश जाने की अनुमति के लिए ऐसा आवेदन पेश किया जाए, तो पासपोर्ट प्राधिकरण के मन में किसी भी प्रकार की उलझन से बचने के लिए स्पष्ट और विशिष्ट आदेश पारित करें।”
क्या है मामला?
दरअसल, याचिकाकर्ता कोटा निवासी मोहम्मद मुस्लिम खान पर IPC की धारा 498-ए और 406 के तहत मुकदमा चल रहा है। जब उसने हज और उमरा के लिए मक्का-मदीना जाने की अनुमति देने के लिए अदालत से इजाजत मांगी तो उसके आवेदन को तकनीकी आधार पर निचली अदालत और भारतीय पासपोर्ट प्राधिकरण, दोनों ने खारिज कर दिया। इसके बाद आरोपी ने हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था। सरकारी एजेंसी की ओर से की गई कार्रवाई को अनुच्छेद 21 के तहत याचिकाकर्ता के स्वतंत्रता के अधिकार का उल्लंघन बताते हुए, हाई कोर्ट ने कहा कि उपरोक्त प्रावधानों के तहत आपराधिक मामले का लंबित होना धार्मिक उद्देश्यों (हज, उमरा जियारत) के लिए विदेश यात्रा की अनुमति देने से इनकार करने का आधार नहीं हो सकता। कोर्ट ने कहा कि भारत के हरेक नागरिक को विदेश जाने का अधिकार है।
हाई कोर्ट ने रखीं ये शर्तें
इसके साथ ही हाई कोर्ट ने आरोपी को दो धार्मिक अनुष्ठानों में भाग लेने के लिए सशर्त दो महीने की मोहलत मंजूर कर दी। कोर्ट ने कहा कि उसे हर हाल में 30.09.2025 को या उससे पहले भारत लौटना होगा और लौटकर आने के बाद मुकदमे में भाग लेने के लिए निचली अदालत के सामने उपस्थित होना होगा। हाई कोर्ट ने कहा कि उसे इस न्यायालय के साथ-साथ निचली अदालत के समक्ष इस पर एक अंडरटेकिंग देनी होगी। कोर्ट ने यह भी कहा है कि वह मक्का-मदीना के अलावा किसी अन्य स्थान पर नहीं जाएगा।





