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फीस में देरी के चलते नहीं मिला था प्रेवश, राजस्थान HC ने नीट कैंडिडेट को दी बड़ी राहत

संक्षेप: याचिकाकर्ता के वकील तनवीर अहमद ने कहा कि कोर्ट ने अधिकारियों को छात्र को काउंसलिंग के तीसरे चरण में भाग लेने की अनुमति देने का निर्देश दिया और आदेश दिया कि उसकी जमानत राशि को योग्यता के आधार पर आवंटित होने वाले किसी भी कॉलेज की फीस के मुकाबले समायोजित किया जाए।

Sun, 12 Oct 2025 12:09 PMUtkarsh Gaharwar लाइव हिन्दुस्तान, जयपुर
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फीस में देरी के चलते नहीं मिला था प्रेवश, राजस्थान HC ने नीट कैंडिडेट को दी बड़ी राहत

राजस्थान हाई कोर्ट (HC) ने एक नीट कैंडिडेट को बड़ी राहत दी है। अदालत ने छात्र को काउंसलिंग में भाग लेने की अनुमति दे दी है, उसे फीस जमा करने में मामूली देरी के कारण प्रवेश देने से मना कर दिया गया था। यही नहीं उक्त छात्र की जमानत राशि भी जब्त कर ली गई थी। यह आदेश बुधवार को उम्मीदवार नरेंद्र महला की ओर से दायर याचिका की सुनवाई के दौरान जारी किया गया था। न्यायमूर्ति समीर जैन की पीठ ने फैसला सुनाया कि काउंसलिंग बोर्ड की ओर से याचिकाकर्ता की 5 लाख रुपये की जमानत राशि को जब्त करना मनमाना था और यह "अनुचित लाभ" (unjust enrichment) के बराबर है।

याचिकाकर्ता के वकील तनवीर अहमद ने कहा, "कोर्ट ने अधिकारियों को छात्र को काउंसलिंग के तीसरे चरण में भाग लेने की अनुमति देने का निर्देश दिया और आदेश दिया कि उसकी जमानत राशि को योग्यता के आधार पर आवंटित होने वाले किसी भी कॉलेज की फीस के मुकाबले समायोजित किया जाए।"

वकील अहमद ने बताया कि नरेंद्र महला एक ऐसे छात्र हैं जिनके पिता नहीं हैं और उनका परिवार सामान्य आर्थिक पृष्ठभूमि से है। 29 सितंबर को उनकी परदादी के निधन और बीच में आए सार्वजनिक अवकाशों के कारण वह निर्धारित समय सीमा के भीतर पूरी कॉलेज फीस जमा नहीं कर पाए। अहमद ने कहा, "कोर्ट ने कुछ घंटों की देरी को वास्तविक और उचित पाया।" न्यायमूर्ति जैन ने कहा कि कठोर समय सीमा को न्याय और कल्याण के सिद्धांतों पर हावी नहीं होना चाहिए, खासकर शिक्षा के मामले में। कोर्ट ने टिप्पणी की, "योग्यता और पैसे की इस लड़ाई में, वास्तविक उम्मीदवारों का भविष्य खतरे में नहीं पड़ना चाहिए।"

इस मामले को "अनुचित लाभ (unjust enrichment) को नियंत्रित करने वाले सिद्धांतों का एक स्पष्ट उदाहरण" बताते हुए, कोर्ट ने यह भी निर्देश दिया कि आदेश की एक प्रति राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग (National Medical Commission), स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय के सचिव, और राजस्थान सरकार के मुख्य सचिव को उचित जांच के लिए भेजी जाए। अहमद ने बताया कि कोर्ट ने यह भी अनुरोध किया कि इस मामले में उसके आदेश को एक मिसाल (precedent) के तौर पर माना जाए।