20 मिनट पहले बताया था आग लगी है, पर भाग गए वार्ड बॉय ; SMS में आग की पूरी कहानी

20 मिनट पहले बताया था आग लगी है, पर भाग गए वार्ड बॉय ; SMS में आग की पूरी कहानी

संक्षेप: जयपुर के सवाई मानसिंह (SMS) अस्पताल का ट्रॉमा सेंटर रविवार देर रात किसी नर्क से कम नहीं था। रात 11:20 बजे न्यूरो आईसीयू से उठता धुआं देखते ही देखते मौत की खबरों में बदल गया। जिन मशीनों पर जिंदगी टिकी थी, वही जहर उगलने लगीं।

Mon, 6 Oct 2025 10:31 AMSachin Sharma लाइव हिन्दुस्तान, जयपुर
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जयपुर के सवाई मानसिंह (SMS) अस्पताल का ट्रॉमा सेंटर रविवार देर रात किसी नर्क से कम नहीं था। रात 11:20 बजे न्यूरो आईसीयू से उठता धुआं देखते ही देखते मौत की खबरों में बदल गया। जिन मशीनों पर जिंदगी टिकी थी, वही जहर उगलने लगीं। हर तरफ अफरा-तफरी मच गई, और मिनटों में पूरा आईसीयू धुएं से भर गया।

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भरतपुर के रहने वाले शेरू की आंखों के सामने उनकी मां जिंदगी और मौत के बीच जूझ रही थीं। “धुआं उठना 20 मिनट पहले ही शुरू हो गया था। हमने स्टाफ को बताया, पर किसी ने ध्यान नहीं दिया,” वार्ड बॉय भाग गए शेरू की आवाज कांप जाती है। “धीरे-धीरे प्लास्टिक की ट्यूब पिघलने लगी, और वार्ड बॉय वहां से भाग गए। हमने खुद अपनी मां को बाहर निकाला।” शेरू बताते हैं कि हादसे के दो घंटे बाद उनकी मां को ग्राउंड फ्लोर पर शिफ्ट किया गया, लेकिन अब तक उन्हें यह नहीं बताया गया कि उनकी हालत कैसी है।

फायरकर्मी अवधेश पांडे उस रात की भयावह तस्वीर बयां करते हैं — “अलार्म बजते ही हमारी टीम मौके पर पहुंची। पूरा वार्ड धुएं से भरा था। अंदर जाना नामुमकिन था। बिल्डिंग के दूसरी ओर से कांच तोड़कर पानी की बौछार की गई। आग पर काबू पाने में डेढ़ घंटे लग गए। तब तक कई मरीज दम तोड़ चुके थे।”

आईसीयू में उस वक्त 11 मरीज थे। ट्रॉमा सेंटर के नोडल ऑफिसर डॉ. अनुराग धाकड़ बताते हैं, “हमारे पास अपने अग्निशमन उपकरण थे, हमने कोशिश की, लेकिन जहरीली गैस इतनी तेजी से फैली कि स्टाफ के लिए अंदर रहना नामुमकिन हो गया। पांच मरीजों को किसी तरह बचाया, बाकी छह की जान नहीं बचाई जा सकी।”

इस हादसे में पिंटू (सीकर), दिलीप (आंधी, जयपुर), श्रीनाथ (भरतपुर), रुकमणि (भरतपुर), कुषमा (भरतपुर), सर्वेश (आगरा), बहादुर (सांगानेर) और दिगंबर वर्मा की मौत हुई। यह महज एक सूची नहीं, बल्कि आठ परिवारों की दुनिया उजड़ जाने की कहानी है।

आग लगने के बाद ट्रॉमा सेंटर के बाहर परिवारों का गुस्सा फूट पड़ा। लोग रो रहे थे, चिल्ला रहे थे — “डॉक्टर कहां हैं? हमें बताओ, हमारे अपने जिंदा हैं या नहीं?” गृह राज्य मंत्री जवाहर सिंह मौके पर पहुंचे तो भीड़ ने घेर लिया। परिजनों का कहना था, “हमने स्टाफ को 20 मिनट पहले आग की सूचना दी थी, लेकिन किसी ने ध्यान नहीं दिया। अगर समय रहते कार्रवाई होती, तो शायद हमारे लोग बच जाते।”

ट्रॉमा सेंटर के उपाधीक्षक डॉ. जगदीश मोदी बताते हैं, “ऑन-ड्यूटी रेजिडेंट ने बताया कि अचानक चिंगारी उठी और वार्ड धुएं से भर गया। नर्सिंग स्टाफ और वार्ड बॉय ने मरीजों को बाहर निकाला। भगदड़ मच गई। अब सभी मरीजों को दूसरे वार्डों और आईसीयू में शिफ्ट किया गया है।”

एसएमएस मेडिकल कॉलेज के प्रिंसिपल डॉ. दीपक माहेश्वरी ने बयान दिया आग लगने के कारणों की जांच की जा रही है, सभी मरीजों को अन्य यूनिट्स में शिफ्ट कर दिया गया है।

लेकिन सवाल अभी भी वही है — क्या यह हादसा टाला जा सकता था?

कई परिजनों का कहना है कि आईसीयू का डिज़ाइन ही मौत का जाल बन गया। आईसीयू का ग्लासवर्क और सील्ड स्ट्रक्चर धुआं बाहर नहीं निकलने देता। धुआं और जहरीली गैस भीतर ही भरती चली गई।

पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने भी इस हादसे पर गहरी संवेदना जताई और उच्चस्तरीय जांच की मांग की है। उन्होंने कहा, “सरकार यह सुनिश्चित करे कि भविष्य में कहीं भी ऐसे हादसे दोबारा न हों।”

लेकिन उन परिवारों के लिए अब कोई जांच मायने नहीं रखती, जिनके अपने आईसीयू की आग में खो गए। एक मां, एक पिता, एक बहन — सब कुछ मिनटों में राख हो गया। अस्पताल के गलियारों में अब भी जली हुई तारों की गंध है, और दीवारों पर धुएं के निशान — जो हर गुजरते शख्स को याद दिलाते हैं कि उस रात, जिंदगी ने तड़पकर दम तोड़ा था।

Sachin Sharma

लेखक के बारे में

Sachin Sharma
इलेक्ट्रॉनिक और डिजिटल मीडिया में पिछले 5 साल का अनुभव है। लाइव हिंदुस्तान से पहले, जी राजस्थान, महानगर टाइम्समें सेवा दे चुके हैं। राजस्थान विश्विद्यालय से पत्रकारिता में पोस्ट ग्रेजुएशन की है। गुलाबी नगरी जयपुर में ही जन्म हुआ। राजस्थान की राजनीति और समृद्ध कला, संस्कृति पर लिखना पसंद है। और पढ़ें

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