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राजस्थान: वार्ड पंच से मंत्री तक…हाड़ौती के कांग्रेस नेता पूर्व मंत्री भरत सिंह कुंदनपुर का निधन

संक्षेप: राजस्थान की राजनीति में सोमवार रात एक ऐसा दीपक बुझ गया, जिसकी रोशनी ने दशकों तक ईमानदारी, सादगी और जनसेवा का रास्ता रोशन किया। पूर्व मंत्री भरत सिंह कुंदनपुर—नाम ही काफी था।

Tue, 7 Oct 2025 01:34 PMSachin Sharma लाइव हिन्दुस्तान, जयपुर
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राजस्थान: वार्ड पंच से मंत्री तक…हाड़ौती के कांग्रेस नेता पूर्व मंत्री भरत सिंह कुंदनपुर का निधन

राजस्थान की राजनीति में सोमवार रात एक ऐसा दीपक बुझ गया, जिसकी रोशनी ने दशकों तक ईमानदारी, सादगी और जनसेवा का रास्ता रोशन किया। पूर्व मंत्री भरत सिंह कुंदनपुर—नाम ही काफी था। कुर्सी पर बैठकर नहीं, ज़मीन पर उतरकर काम करने वाले इस नेता ने सोमवार रात करीब 10 बजे जयपुर के एसएमएस अस्पताल में अंतिम सांस ली। वे लंबे समय से बीमार थे। कोटा मेडिकल कॉलेज से रेफर होकर जयपुर आए, लेकिन किस्मत को कुछ और ही मंज़ूर था।

15 अगस्त 1950 को हाड़ौती की मिट्टी में जन्मे भरत सिंह ने कभी राजनीति को सत्ता का खेल नहीं, सेवा का अवसर माना। गांव के सरपंच से लेकर राजस्थान सरकार के मंत्री तक का सफर उन्होंने बिना समझौते और बिना चमक-दमक के तय किया। उनके साथ काम करने वाले कहते हैं—“भरत सिंह वो नेता थे, जो खुद गांव की गलियों में गड्ढे भरते देखे जाते थे, और अगले ही दिन मंत्री बनकर फाइलों पर सख्त आदेश लिखते थे।”

पंचायती राज और ग्रामीण विकास मंत्री रहते हुए उन्होंने सिस्टम को झकझोरने वाले कई फैसले लिए। वे उन गिने-चुने नेताओं में थे जो भ्रष्टाचार के खिलाफ अपनी ही पार्टी के मंच से भी खुलकर बोल जाते थे। कई बार उनके बयान पार्टी हाईकमान को असहज कर देते, लेकिन जनता की नज़रों में उनकी इज्जत बढ़ती चली जाती थी।

2007 में भरत सिंह को सर्वश्रेष्ठ विधायक पुरस्कार से नवाज़ा गया। लेकिन असली मिसाल उन्होंने तब पेश की जब 2018-23 के कार्यकाल में खुद ही घोषणा कर दी—“अब अगला चुनाव नहीं लड़ूंगा।”

ऐसे समय में जब नेता टिकट के लिए रात-दिन लॉबी करते हैं, भरत सिंह ने राजनीति में ‘स्वैच्छिक संन्यास’ लेकर नई परंपरा गढ़ दी। उन्होंने कहा था—“जब जनता से जुड़ाव सिर्फ भाषणों में रह जाए, तो समझो अब घर जाने का वक्त है।

वे सचमुच ‘भरत’ थे—मर्यादा और निष्ठा के प्रतीक। कोटा-बूंदी की जनता उन्हें सिर्फ नेता नहीं, परिवार का सदस्य मानती थी। जब कोई शिकायत लेकर उनके पास पहुंचता, तो वे कुर्सी नहीं, चारपाई पर बैठकर सुनते। एक किस्सा मशहूर है—एक बार गांव का बुजुर्ग अपनी समस्या लेकर आया, तो भरत सिंह ने कहा, “पहले चाय पी लो, फिर बताओ क्या तकलीफ है।” राजनीति में ये अपनापन अब दुर्लभ है।

उनके निधन से हाड़ौती क्षेत्र में सन्नाटा है। अशोक गहलोत, ओम बिरला और हीरालाल नागर समेत सभी नेताओं ने श्रद्धांजलि दी। गहलोत ने कहा—“राजस्थान ने एक सच्चा जनसेवक खो दिया, जो पद से नहीं, अपने कर्मों से बड़ा बना।”

आज दोपहर एक बजे उनका अंतिम संस्कार उनके पैतृक गांव कुंदनपुर में होगा। उनकी पार्थिव देह कोटा कांग्रेस कार्यालय में अंतिम दर्शन के लिए रखी जाएगी, जहां उनके चाहने वाले, समर्थक और विरोधी तक श्रद्धा से नतमस्तक होंगे।

भरत सिंह कुंदनपुर की कहानी सिर्फ एक नेता के निधन की नहीं है—ये उस दौर की याद है जब राजनीति सेवा थी, व्यापार नहीं। उन्होंने दिखाया कि सच्चा नेता वो होता है जो कुर्सी से नहीं, चरित्र से बड़ा होता है।

“भरत सिंह चले गए, लेकिन हाड़ौती की हवा में उनकी सादगी और ईमानदारी अब भी गूंजती रहेगी।”

Sachin Sharma

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