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Hindi Newsपंजाब न्यूज़High Court takes a tough stand on live-in relationships deprives married couples of the right to protection

लिव-इन रिलेशनशिप पर हाई कोर्ट का कड़ा रुख, शादीशुदा जोड़ों को सुरक्षा के अधिकार से वंचित किया

लिव-इन रिलेशनशिप जोड़ों को सुरक्षा देने से इनकार करते हुए जस्टिस संदीप मौदगिल ने कहा कि विवाहित पुरुष और महिला या शादीशुदा महिला और पुरुष के बीच लिव-इन रिलेशनशिप विवाह के समान नहीं है।

Himanshu Tiwari लाइव हिन्दुस्तान, चंडीगढ़Fri, 26 July 2024 06:18 PM
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पंजाब व हरियाणा हाईकोर्ट ने पहले से शादीशुदा लिव-इन जोड़ों को उनके परिवार के सदस्यों से खतरे की आशंका के चलते सुरक्षा देने से इनकार कर दिया है। कोर्ट ने कहा कि जो शादीशुदा जोड़े अपने माता-पिता के घर से भागकर लिव-इन रिलेशनशिप में रहते हैं, वे अपने माता-पिता का नाम खराब कर रहे हैं और माता-पिता के सम्मान के साथ जीने के अधिकार का भी उल्लंघन कर रहे हैं। भारत लिव-इन रिलेशनशिप की पश्चिमी संस्कृति को अपना रहा है। यदि वह यह मानता है कि याचिकाकर्ताओं के बीच संबंध विवाह की प्रकृति का संबंध है, तो यह उस पत्नी और बच्चों के साथ अन्याय होगा, जिन्होंने उस रिश्ते को सम्मानपूर्वक निभाया है। 

लिव-इन रिलेशनशिप जोड़ों को सुरक्षा देने से इनकार करते हुए जस्टिस संदीप मौदगिल ने कहा कि विवाहित पुरुष और महिला या शादीशुदा महिला और पुरुष के बीच लिव-इन रिलेशनशिप विवाह के समान नहीं है, क्योंकि यह व्यभिचार और दूसरी शादी के बराबर है जिसे गैरकानूनी माना जाएगा। ऐसी महिलाएं किसी भी सुरक्षा की हकदार नहीं हैं। याचिकाकर्ता इस तथ्य से पूरी तरह अवगत हैं कि वे दोनों पहले से शादीशुदा हैं, इसलिए वे लिव-इन रिलेशनशिप में नहीं आ सकते। 

इसके अलावा याचिकाकर्ता संख्या 2 ने अपनी पिछली पत्नी से तलाक नहीं लिया है। सभी लिव-इन-रिलेशनशिप विवाह की प्रकृति के नहीं होते। याचिकाकर्ता संख्या 1 की स्थिति पत्नी की स्थिति से कम है और वह संबंध डीवी अधिनियम के तहत घरेलू संबंध की परिभाषा के अंतर्गत नहीं आता। 

उक्त टिप्पणियां ऐसे मामलों में आई हैं, जिनमें जोड़ों ने लिव इन में रहते हुए सुरक्षा की मांग की थी। पहले मामले में 40 वर्षीय महिला 44 वर्षीय पुरुष के साथ लिव-इन रिलेशनशिप में थी। कोर्ट  ने कहा कि पुरुष और महिला दोनों पहले से ही अन्य व्यक्तियों से विवाहित थे और उनके बच्चे भी हैं। महिला ने 2013 में अपने पति से तलाक ले लिया था, पुरुष की अभी भी पत्नी है और उस विवाह से एक बच्चा भी है। याचिकाओं को खारिज करते हुए जस्टिस मौदगिल ने कहा कि विवाह एक पवित्र रिश्ता है, जिसके कानूनी परिणाम और महान सामाजिक सम्मान हैं, जिसे पश्चिमी संस्कृति के चलते ठुकराया नहीं जा सकता।

विवाह और परिवार की संस्थाएं महत्वपूर्ण सामाजिक संस्थाएं
पहले से शादीशुदा याचिकाकर्ताओं का जिक्र करते हुए कोर्ट ने कहा कि अगर यह कोर्ट यह मानता है कि याचिकाकर्ता नंबर 1 और याचिकाकर्ता नंबर 2 के बीच का रिश्ता शादी की प्रकृति का रिश्ता है, तो हम उस पत्नी और बच्चों के साथ अन्याय करेंगे, जिन्होंने उस रिश्ते का सम्मान किया है। शादी करना एक ऐसे रिश्ते में प्रवेश करना है, जिसका सार्वजनिक महत्व भी है। विवाह और परिवार की संस्थाएं महत्वपूर्ण सामाजिक संस्थाएं हैं, जो सुरक्षा प्रदान करती हैं और बच्चों के पालन-पोषण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। 

विवाह का उत्सव नैतिक और कानूनी दायित्व को जन्म देता है, विशेष रूप से पति-पत्नी पर समर्थन का पारस्परिक कर्तव्य और विवाह से पैदा हुए बच्चों का पालन-पोषण और पालन-पोषण करने की उनकी संयुक्त जिम्मेदारी सुनिश्चित है। जस्टिस  मौदगिल ने  कहा कि भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत प्रत्येक व्यक्ति को शांति, सम्मान और सम्मान के साथ जीने का अधिकार है, इसलिए इस प्रकार की याचिकाओं को अनुमति देकर हम गलत काम करने वालों को प्रोत्साहित कर रहे हैं और कहीं न कहीं दो विवाह की प्रथा को बढ़ावा दे रहे हैं जो अन्यथा धारा 494 आई.पी.सी. के तहत एक अपराध है, जिसमें दूसरे पति या पत्नी और बच्चों के सम्मान के साथ जीने के अधिकार का उल्लंघन होता है।

रिपोर्ट: मोनी देवी
 

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