इतनी आसानी से कैसे मिल जाती है ड्रग्स? 48 घंटों में एक ही गांव के 4 लोगों ने तोड़ा दम, भड़का गुस्सा
संक्षेप: पीड़ित उमेदू का हाल और भी खराब था। नशे के लिए उसने अपने घर का सामान तक बेच दिया और कर्ज में डूब गया। उसकी पत्नी और बच्चा भी उसे छोड़कर चले गए थे। महीनों से वह अकेला और बिस्तर पर पड़ा हुआ था।

फिरोजपुर-फाजिल्का रोड पर स्थित 'लाखो के बेहराम' गांव में 48 घंटे के भीतर चार युवकों की मौत से पूरे क्षेत्र में शोक और आक्रोश का माहौल है। मंगलवार को एक युवक की मौत हुई थी, जबकि बुधवार को तीन और युवकों ने दम तोड़ दिया। मृतकों की पहचान संदीप सिंह, रमणदीप सिंह उर्फ राजन, रणदीप सिंह और उमेद सिंह उर्फ उमेदू के रूप में हुई है। मात्र 48 घंटों के अंदर हुई इन मौतों ने गांव वालों में गुस्से को हवा दे दी है, जो अब नशीले पदार्थों की आसान उपलब्धता के खिलाफ सड़कों पर उतर आए हैं।
ट्रिब्यून की रिपोर्ट के मुताबिक, गांव के बुजुर्ग कुलवंत सिंह ने बताया, “शायद पहली बार ऐसा हुआ है कि अलग-अलग परिवारों के चार युवा एक ही इलाके में इतने कम समय में चल बसे। मौतें आपस में जुड़ी नहीं थीं, लेकिन दो दिनों में यह त्रासदी गांव पर टूट पड़ी।” ग्रामीणों का आरोप है कि गांव में सात ड्रग्स दुकानें हैं, लेकिन कोई अस्पताल या क्लिनिक नहीं, और ये दुकानें अवैध रूप से नशीले पदार्थ बेच रही हैं। सभी मृतकों की उम्र 21 से 28 वर्ष के बीच बताई जा रही है।
नशे से जुड़ी पृष्ठभूमि
रिपोर्ट में सूत्रों के हवाले से लिखा गया है कि सभी मृतकों का नशे से जुड़ा लंबा इतिहास रहा है। वे कई बार नशा मुक्ति केंद्रों में भी भर्ती रहे, मगर किसी को स्थायी सफलता नहीं मिली। ग्रामीणों का कहना है कि लगातार समझाने और रोकने के बावजूद नशे की लत ने युवाओं को घेर लिया था।
रमणदीप सिंह की मौत बुधवार सुबह उस समय हुई जब उसने उन टैबलेट्स को इंजेक्शन के जरिए ले लिया जिन्हें उसे केवल मुंह से लेना था। वहीं, उमेदू और रणदीप ने नशा छोड़ दिया था लेकिन स्वास्थ्य बिगड़ता चला गया। एक को बेडसोर हो गए थे, जबकि दूसरे की टांगों ने जवाब दे दिया था।
परिजनों का दर्द और विरोध
घटना के बाद गुस्साए परिजन और ग्रामीणों ने शवों को सड़क पर रखकर तीन घंटे तक हाईवे जाम किया। प्रदर्शनकारियों ने गांव की सात दवा दुकानों पर नशीले पदार्थ बेचने का आरोप लगाया।
गांव पंचायत सदस्य सुखदीप कौर ने कहा, “कई परिवार नशे की समस्या से तबाह हो चुके हैं। पुलिस की सख्ती के बावजूद मेडिकल स्टोर खुलेआम चल रहे हैं। मेरा बेटा भी पिछले साल नशे से मर गया। अफसोस की बात है कि प्रशासन इस पर ठोस कदम नहीं उठा रहा।”
रमनदीप के पिता बचित्तर सिंह ने बताया कि बेटा वर्षों से नशे से जूझ रहा था और कई बार नशा मुक्ति केंद्र में भर्ती हुआ, लेकिन आखिरकार लत ने उसकी जान ले ली। उनके चाचा परमहजीत सिंह ने बताया कि रमणदीप पिछले नौ सालों से नशा कर रहा था और 10 बार डि-एडिक्शन सेंटर गया, मगर वापसी के बाद फिर उसी रास्ते पर लौट गया।
दूसरे पीड़ित उमेदू का हाल और भी खराब था। नशे के लिए उसने अपने घर का सामान तक बेच दिया और कर्ज में डूब गया। उसकी पत्नी और बच्चा भी उसे छोड़कर चले गए थे। महीनों से वह अकेला और बिस्तर पर पड़ा हुआ था। उसकी मौसी प्रकाश कौर ने कहा कि उमेदू की हालत बेहद दयनीय थी और इलाज के पैसे भी नहीं थे।
पुलिस का बयान
एसपी (डी) मंजीत सिंह ने कहा कि गांव के कई युवा लंबे समय से नशे के शिकार हैं। पुलिस लगातार ऐसे युवाओं को समझा रही है और नशा मुक्ति केंद्र भेज रही है। उन्होंने स्वीकार किया कि नशे की समस्या गहरी है और इसे पूरी तरह खत्म करने में समय लगेगा।
फार्मेसी दुकानों पर आरोपों को लेकर एसपी ने कहा कि पुलिस ने कई दुकानों को बंद करवाया है और स्वास्थ्य विभाग को छापेमारी के आदेश दिए गए हैं। उन्होंने यह भी बताया कि 4,500 की आबादी वाले इस गांव में जहां कोई अस्पताल या क्लिनिक नहीं है, वहां सात मेडिकल दुकानें चल रही हैं, जो अब संदेह के घेरे में हैं।

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