जब कभी व्यक्ति के मन पर नकारात्मक या सकारात्मक प्रभाव पड़ता है तो इसका असर हमारे ब्रेन यानि मस्तिष्क और शरीर पर भी पड़ता है। ऐसे में इसका सुचारू रूप से काम करना जरूरी है। माइंड चेतना, कल्पना, हमारी धारणा, हमारे विचार, बुद्धि, निर्णय, भाषा और मेमोरी यानि स्मृति जैसे संज्ञानात्मक पहलुओं से मिलकर बना है। वहीं इसमें कुछ नॉन संज्ञानात्मक पहलु जैसे भावनाएं और स्वभाव आदि भी शामिल हैं। दिमाग को सबसे रहस्य माना जा सकता है। ऐसा इसलिए क्योंकि ना तो इसका कोई आकार है और ना ही संरचना। ऐसे में इसके बारे में समझना थोड़ा मुश्किल है।
लोग अक्सर यह सोच कर चौंक जाते हैं कि हमारा मन न केवल शरीर और मस्तिष्क को सकारात्मक रूप से बदल सकता है बल्कि यह ऊर्जा के साथ साथ फिजिकल रियालिटी पर भी प्रभाव डाल सकता है। माना कि हमारे पास कई ऐसे उपकरण मौजूद है जो माइंड तक पहुंचने और उसे सशक्त बनाने में हमारे काम आ सकते हैं। लेकिन अभी भी न जानें इसके ऐसे कितने अनगिनत पन्ने हैं, जिनका खुलना बाकी है। आज हम आपको उन्हीं में से 5 ऐसे पहलुओं के बारे में बता रहे हैं, जिनके बारे में अक्सर लोगों को नहीं पता होता। इन पहलुओं के बारे में जानते हैं गेटवे ऑफ हीलिंग साइकोथेरेपिस्ट डॉ. चांदनी (Dr. Chandni Tugnait, M.D (A.M.) Psychotherapist, Lifestyle Coach & Healer) से...
मन बदल सकता है आपकी जिंदगी- हमारा जीवन हमारी सोच पर निर्भर करता है। अगर हमारे मन में अच्छे विचार आ रहे हैं तो व्यक्ति सकारात्मक रूप से जीवन जीने की कोशिश करेगा। वहीं अगर व्यक्ति के मन में बुरे विचार आ रहे हैं तो उसका जीवन नकारात्मक रूप से प्रभावित होगा। उदहारण के रूप में, जब भी किसी व्यक्ति के दिमाग में कोई विचार आता है तो माइंड उस विचार का रिजल्ट पहले से ही सोचकर रखता है। जब उस विचार को दोबारा से व्यक्ति मन में लाता है तो व्यक्ति को अपने मन से केवल वहीं रिजल्ट बार-बार प्राप्त होता है। ऐसे में अगर आप जीवन के तरीके से खुश नहीं हैं तो अपने विचारों को बदलना भी जरूरी है। जब आप नए विचारों को अपने मन में लाएंगे तो पुराने न्यूरॉन्स नए तरीके से काम करना सीखेंगे और आपकी भावनाओं, व्यवहारों, कार्यों, प्रतिक्रियाओं और जीवन सभी को एक नए रूप में दर्शाएंगे, जिससे जीवन में भी बदलाव आ सकता है।
क्या है Self-Talk- क्या आप जानते हैं कि जो हम सोच रहे हैं असलियत में वह खुद से बात करने का एक तरीका है? जी हां, अब चाहे आप इसे गुप्त भाषा बोल सकते हैं या आंतरिक भाषा। चाहे आप इसे अपनी सोच की भाषा बोल सकते हैं या self-talk यानि खुद से बातें, सब का अर्थ केवल एक निकलता है और वह है खुद से बातें करना। कोई भी व्यक्ति सेल्फ टॉक यानि खुद से बात किए बिना सोच ही नहीं सकता। इससे संबंधित कई प्रयोग भी सामने आए हैं जो यह साबित करते हैं कि ना केवल मन हमें सुन सकता है बल्कि यह हमारे जीवन को अच्छा बनाने के लिए हमारे विचारों को पैदा भी कर सकता है। इसी के साथ हमारा मन हमारे जीवन के विभिन्न पहलुओं को बदलने के लिए परिवर्तनों को पेश भी कर सकता है। मन की महत्वपूर्ण कुंजी की बात की जाए तो दिमाग को नियंत्रित रखने वाली कुंजी प्रैक्टिसिंग माइंडफूलनेस, सेल्फ टॉक, जर्नलिंग करना, नॉन जजमेंटल स्टेट एंड चॉइसलेस ऑब्जर्वेशन है।
हमारा माइंड मल्टीटास्किंग नहीं है- लोगों को लगता है कि हमारा माइंड मल्टीटास्किंग है। बता दें कि यह मात्र एक मिथक है। हमारा दिमाग एक समय में केवल एक चीज पर फोकस कर पाता है। वहीं कोई और नेटवर्क उसी फोकस की मांग करता है तो दिमाग अपना ध्यान वहां पर केंद्रित नहीं कर पाता। अगर कोई व्यक्ति यह सोच रहा है कि मैं मल्टीटास्किंग काम कर रहा हूं तो वो असल में केवल दोनों कामों पर अपना फोकस नहीं लगा रहा बल्कि एक समय पर केवल एक काम पर ही ध्यान लगा पा रहा है। आसान भाषा में समझा जाए तो हमारे मस्तिष्क को स्टार्ट और स्टॉप स्विच का संकेत मिलता है, जिससे वह व्यक्ति को कई कार्य करने में सक्षम बनाता है। लेकिन व्यक्ति एक काम को रोककर दूसरा काम करता है ना कि एक समय पर कई काम करता है। ऐसे में व्यक्ति को अच्छी गुणवत्ता के साथ-साथ अपनी उर्जा और समय बचाने के लिए एक समय में केवल एक ही काम करना चाहिए, इससे परिणाम भी बेहतर मिलेगा।
हमारा मन मस्तिष्क को रख सकता है खुश- हमारा मस्तिष्क किसी भी तरह की समस्या, खतरा या एरर्स (Errors) यानी त्रुटियों को बुरा मानता है। ऐसे में वह उसके खिलाफ स्ट्रांग्ली प्रतिक्रिया देता है। वहीं मस्तिष्क के लिए कुछ चीजें अच्छी हैं जैसे अवसर, संभावनाएं, खुशी वाला माहौल आदि। ऐसे में ऊपर बताए गई नकारात्मक चीजें व्यक्ति को तनाव और चिंता की ओर ले जाती है और उसे खुश रहने से रोकती हैं। बता दें कि एनएलपी, विजुलाइजेशन, ग्रेटीट्यूड, सेल्फ लव आदि कई ऐसी तकनीक हैं जो हमारे माइंड को नए तंत्रिका पथ बनाने के लिए प्रोत्साहित करती हैं, जिससे मस्तिष्क को खुश रह सकता है। जब हमारा माइंड सकारात्मक चीजों पर ध्यान केंद्रित करता है तो हमारा ब्रेन प्रतिक्रिया देता है, जिससे जीवन में बदलाव आ सकता है।
भावनाओं को लेबल करने से मन रह सकता है शांत- जब हम किसी संकट में होते हैं या हमारे आसपास कुछ गलत हो रहा होता है तो हमारे मस्तिष्क में फाइट फ्लाइट फ्रीज (fight-flight-freeze - amygdala) जैसी गतिविधियां पैदा होती हैं। वहीं जब हम अपनी भावनाओं को लेबल करते हैं तो मस्तिष्क की गतिविधियां हमारी योच में यानि प्रिफ्रंटल कॉर्टेक्स (prefrontal cortex) में बदल जाती हैं, इसके कारण व्यक्ति उदास, अपमानित, थका हुआ, डरा हुआ आदि महसूस कर सकता है। इन भावनाओं के चलते व्यक्ति आवेश में कोई प्रतिक्रिया नहीं करता और शांत रहने कू कोशिश करता है। ऐसे में हम कह सकते हैं कि लेबलिंग हमें अपने लक्ष्य से विचलित होने से रोकती हैं और इससे आत्म नियंत्रण बढ़ता है।